मज़दूर मोर्चा ब्यूरो दिल्ली। राम मंदिर और अपराध मुक्त रामराज का सपना साकार करने का ढोल पीट रही योगी सरकार में न्यायाधीश जैसे गरिमापूर्ण पद पर बैठी एक महिला सीता की तरह अग्नि परीक्षा देकर जीवनलीला समाप्त करने को विवश की जा रही है। वरिष्ठों द्वारा यौन उत्पीडऩ की शिकार इस महिला जज की खुली चिट्ठी मिलने के बावजूद बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का ढिंढोरा पीटने वाले मोदी और योगी दोनों चुप हैं। कानून के राज में सब समान हैं ऐसे मेें यौन उत्पीडऩ का शिकार आम महिला हो या कोई न्यायाधीश, सब इंसाफ पाने के हकदार हैं, कार्यपालिका केवल इसलिए केस दर्ज करने से खुद को अलग नहीं कर सकती कि उत्पीडऩ किसी न्यायिक अधिकारी का हुआ है इसलिए उसके क्षेत्राधिकार में नहीं आता। न्यायपालिका का काम इंसाफ देना है, मामले की जांच करना नहीं, ये काम तो कार्यपालिका के अंग यानी पुलिस का ही है।
कानून की पढ़ाई और राज्य न्यायिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर न्यायाधीश के पद पर पहुंची इस काबिल महिला जज के मुताबिक वरिष्ठों ने उसे बार-बार प्रताडि़त किया, उसके खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया। वरिष्ठ जजों के घर पर उसे रात को बुलाए जाने जैसे गंभीर आरोप भी लगाए। कार्यस्थल पर महिलाओं का उत्पीडऩ रोकने के लिए बनाई गई कमेटी में शिकायत करने का कोई परिणाम नहीं निकला। उन्होंने जुलाई 2023 में उच्च न्यायालय की आंतरिक कमेटी से शिकायत की, छह महीने में अनेकों रिमाइंडर भेजने के बावजूद आंतरिक कमेटी की जांच लंबित ही पड़ी है। पीडि़ता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया लेकिन महज चंद सेकेंड में उसकी याचिका ठुकरा दी गई।
यूपी में रामराज लाने में जुटे योगी महिला जज की चिट्ठी सार्वजनिक होने के बाद चुप्पी साधे हैं। उन्हें महिला जज को इंसाफ दिलाने में शायद इसलिए रुचि नहीं है क्योंकि इससे उनके वोट बैंक पर कोई असर नही पडऩे वाला। संघ-भाजपा की संस्कृति ही बलात्कारियों, महिलाओं का शोषण करने वालों का बचाव करने की रही है। नाबालिग का दुष्कर्म और उसके पिता की हत्या कराने वाला विधायक कुलदीप सिंह सेंगर हो या अपने ही कॉलेज की छात्रा से दुष्कर्म करने वाला स्वामी चिन्मायानंद, महिला पहलवानों का यौन उत्पीडऩ करने वाला सांसद ब्रजभूषण सिंह या कठुआ में मासूम बच्ची से दुष्कर्म और हत्या करने वाले, संघ-भाजपा ने इनका खुलकर समर्थन किया। किशोरी से दुष्कर्म का आरोप होने के बावजूद 2022 विधानसभा चुनाव में योगी-मोदी ने राम दुलार गोंड को विधायकी का टिकट दिया, हाल में न्यायालय ने उसे दोषी ठहरा कर 25 साल कैद की सजा सुनाई है।
खुद बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का पाखंड करने वाले नरेंद्र मोदी की छवि भी महिलाओं के मामले में स्वच्छ नहीं है। गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन पर एक महिला की जासूसी कराने और उसके निजी जीवन में ताक झांक कराने का आरोप लग चुका है।
संविधान की जगह मनुस्मृति लागू करने का सपना देखने वाले संघी-भाजपाई महिला-दलित विरोधी इस ग्रंथ में वर्णित श्लोकों के आधार पर ही न्यायिक-सामाजिक व्यवस्था लागू करने के पक्षधर हैं। मोदी-योगी राज में न्यायपालिका में संघ और उसकी विचारधारा का समर्थन करने वाले न्यायाधीशों की संख्या तेजी से बढ़ी है। ऐसे में समझा जा सकता है कि पीडि़त महिला जज जिन वरिष्ठों पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगा रही है संभवत: उन्हें कुलदीप सिंह सेंगर, स्वामी चिन्मयानंद आदि की तरह संघ-भाजपा का वरद्हस्त प्राप्त हो, इसी कारण पॉश कमेटी और सुप्रीम कोर्ट तक में पीडि़ता की सुनवाई नहीं हुई। जो न्यायपालिका अपने जज को इंसाफ नहीं दे पा रही उससे आम आदमी को न्याय की क्या आस रहेगी? जाहिर है कि इस प्रकरण से आम जनता में न्यायापालिका की गरिमा घटी है और छवि पर दाग लगा है।
योगी के रामराज में सिर्फ महिला जज ही वरिष्ठों के उत्पीडऩ का शिकार नहीं हैं। एक महिला आईपीएस ने भी एडीजी और आईजी पर उसे मानसिक प्रताडि़त करने का आरोप लगाया है। इस आईपीएस की शिकायत का भी यही लब्बोलुबाब है कि पुरुष एडीजी और आईजी उसे नीची जाति की महिला होने के कारण कमतर समझते हैं। ये अधिकारी उसे बाईपास करके उसके मातहतों को आदेश देते हैं, यह उसकेे पद और गरिमा को ठेस पहुंचाता है। डीजीपी से शिकायत करने के बाद ये महिला आईपीएस लंबी छुट्टी पर चली गई है। दलित आरक्षण विरोधी संघी विचारधारा के समर्थक योगी को सूबे के मुखिया होने के नाते इस महिला आईपीएस की शिकायत को गंभीरता से लेना चाहिए लेकिन महिला जज की ही तरह वह इस मामले में भी खामोश हैं। समझा जा सकता है कि भाजपा का सबका साथ सबका विकास नारा भी खोखला ही है।