प्रथम इंटरनेशनल के संविधान में, विश्व सर्वहारा के महान नेता कार्ल मार्क्स और फ्रेडेरिक एंगेल्स द्वारा दी गई एक बुनियादी सीख मज़दूरों को हमेशा याद रखना चाहिए, “मज़दूरों की मुक्ति की लड़ाई मज़दूर वर्ग ने ख़ुद ही जीतनी है…” मज़दूरों का हाथ लगे बगैर कोई भी उत्पादन/ निर्माण नहीं हो सकता, भले परियोजना में कितनी भी जड़ पूंजी क्यों ना लगी हो। मज़दूर और मेहनतक़श किसान ही किसी देश को बना या मिटा सकते हैं। उनकी श्रम शक्ति की चोरी से ही ना सिर्फ मालिकों के पूंजी के पहाड़ खड़े होते हैं, बल्कि इस लूट को सुचारु और संरक्षित रखने वाला, उसे कुचलने वाला, ये सारा भारी भरकम शासन तंत्र भी उसी का एक हिस्सा खाकर मोटाता जाता है। मोदी सरकार कौन सी भाषा समझती है, देश के जांबाज़ किसान, हज़ारों कुर्बानियों से हासिल, ये सीख देश को दे ही चुके हैं। नया क़ानून बनाकर, हाथ जोडक़र माफ़ी मांगते हुए, मोदी सरकार को काले कृषि कानून हटाने पड़े।
किसानों के हाथों मिली उसी हार का नतीज़ा है कि लेबर कोड अभी तक लागू नहीं हुए हैं। मोदी सरकार फूंक-फूंक कर क़दम बढ़ा रही है, कहीं ऐसा ना हो कि ‘लेबर कोड बिल’ का भी कृषि बिलों जैसा ही हाल हो जाए। मज़दूरों की मार किसानों से ज्यादा चोट पहुंचाती है, ये बात शासक वर्ग भी अच्छी तरह जानता है। मज़दूरों के पास खोने को अक्षरसह कुछ नहीं बचा, सिवा गंदे नाले-सीवर के नज़दीक, मक्खी-मच्छरों के बीच जि़ल्लत भरी जि़न्दगी जीने के। उनकी वे झोंपडिय़ाँ भी ‘अवैध’ हैं, जहाँ शौच तक की व्यवस्था नहीं, जहाँ उनकी बहन-बेटियां खुले में शौच करने जाने को मज़बूर हैं, और कई बार, आज़ाद नगर की गुडिय़ा की तरह, उनके लहूलुहान मृत शरीर ही वापस घर लौटते हैं। मज़दूर वर्ग के कन्धों पर ना सिफऱ् अपनी मुक्ति की जि़म्मेदारी है, शासन तंत्र के ज़ालिम पंजों से अपने असीम कुर्बानियों से हासिल 44 अधिकारों को बचाना है, लेबर कोड रद्द कराने हैं, संवैधानिक-जनवादी अधिकार लुटने से बचाने हैं, बल्कि सारे समाज को इस अँधेरी फासीवादी गुफा से आज़ाद कराने की ऐतिहासिक जि़म्मेदारी भी उन्हीं के कन्धों पर है। ‘संघर्ष’ मज़दूरों की जि़न्दगी का दूसरा नाम है, लेकिन उसकी आवश्यक शर्त है; मज़दूरों का अपना क्रांतिकारी संगठन और उनका अटूट एका।
मज़दूर साथियो, शोषण-दमन के हालात का दिलेरी से मुकाबला करने और हार ना मानने की जि़द, मुसीबतों के इस पहाड़ को तोडक़र, मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी। वर्ग-चेतना आधारित उनकी मुक्ति की तहरीक, आगे मेहनतक़श किसानों की तहरीक की धारा से मिलकर एक अजेय शक्ति बनेगी, जो श्रम के निर्मम शोषण और उसके साथ ही जातिगत दमन, धार्मिक भेदभाव, अल्पसंख्यक समुदाय के साथ बढ़ते जा रहे अत्याचार, पुरुषवादी-ब्राह्मणवादी सोच द्वारा महिलाओं को उपभोग की वस्तु बना डालने वाली, सड़ती जा रही इस पूंजीवादी व्यवस्था को ही उखाड़ फेंकेगी और उसकी जगह शोषण-मुक्त, सच्ची बराबरी और श्रम और इंसानियत का सम्मान करने वाली, समाजवादी व्यवस्था का सूरज उगेगा।