युवा पीढ़ी की भावनाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे संसद में प्रदर्शन करने वाले

युवा पीढ़ी की भावनाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे संसद में प्रदर्शन करने वाले
December 17 14:56 2023

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
नई दिल्ली। 13 दिसंबर को संसद में स्मोक कैनिस्टर के जरिए अंधी-बहरी सरकार के सामने युवा पीढ़ी की कराह को अभिव्यक्त करने वाले सागर शर्मा और मनोरंजन ने 93 वर्ष पूर्व भगत सिंह द्वारा गोरी सरकार को देश की भावनाओं से अवगत कराने के लिए सेंट्रल असेंबली में पटाखा चलाने की घटना की याद दिला दी। फर्क इतना है कि भगत सिंह ने जन विरोधी गोरे शासन के खिलाफ आवाज उठाई थी जबकि संसद में चुनी हुई सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले ये युवा कभी प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी के प्रशंसक रहे थे। उच्च स्तर तक पढ़ाई करने के बाद रोजगार नहीं मिलने और नौकरी छूट जाने के बाद अंधभक्ति में डूबे इन युवाओं की आंख खुली, दर्द का अहसास हुआ तो लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था में आवाज उठाने पहुंच गए।

संसद मेे पहुंचने वाला सागर शर्मा लखनऊ यूपी से जबकि मनोरंजन डी मैसूर कर्नाटक का हैं। उनके प्रदर्शन से करीब डेढ़ घंटे पहले ही संसद भवन केे बाहर हिसार हरियाणा की नीलम और लातूर महाराष्ट्र के अमोल ने स्मोक कैनिस्टर जला कर नारे बाजी की थी। सभी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। नीलम एमफिल है और नेट क्वालीफाई कर चुकी है लेकिन आज तक उसे नौकरी नहीं मिली। मनोरंजन इंजीनियर है, इसी तरह सागर शर्मा भी बैंंगलुरू में जॉब छूटने के बाद लखनऊ आकर ई रिक्शा चला कर अपनी बेरोजगारी छिपा रहा था। अमोल भी शिक्षित बेरोजगार बताया जा रहा है। विभिन्न प्रदेशों से आने वाले इन युवाओं ने प्रदर्शन के जरिए एक बात तो बता दी कि पूरे देश के युवा, महिला, छात्र-छात्राओं की समस्या एक समान है और पूरा देश ही सरकार की जन विरोधी नीतियों के कारण परेशान है।

उन्होंने जो नारे लगाये वे महत्वपूर्ण हैं। तानाशाही नहीं चलेगी, बेरोजगारी खत्म की जाए, भारत माता की जय, मणिपुर की महिलाओं को न्याय दिया जाए, जय भीम, जय भारत, वंदे मातरम। संसद के बाहर नारेबाजी कर रही नीलम ने चारों के एक साथ होने लेकिन किसी संगठन से नहीं जुड़े होने और बेरोजगार होने के कारण प्रदर्शन करने की बात कही। सरकार पर तानाशाह होने, छात्र, मजदूर, किसान, व्यापारियों की परेशानी नहीं सुनने का आरोप लगाया। ये युवा सरकार को यह बताने-सुनाने आए थे कि हमारी कोई सुन ले हमारी कोई सुनता नहीं है, मजबूरी में हमें बहरी सरकार को सुनाने के लिए ये कदम उठाने पड़े। वे लोग अपनी बात कहना चाहते थे, और संविधान ने प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दे रखी है जिसे सरकार ने छीन लिया है।

सरकार और प्रशासन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से इस कदर डरे हुए हैं कि जुलूस -प्रदर्शन आदि के लिए भी परमीशन लेने की पाबंदी लगा दी गई है। पिछली सरकारों में छात्रों को, ट्रेड यूनियन या किसी भी सामाजिक संगठन को धरना प्रदर्शन के लिए कभी परमीशन लेने का रिवाज नहीं था। जिसके खिलाफ प्रदर्शन करना है वो परमीशन क्यों देगा? वर्तमान में सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की परमीशन मिलती नहीं है,अगर करो तो पुलिस पकड़ती है कि आपने परमीशन नहीं ली, इस तरह आम जनता को अभिव्यक्ति की आजादी से वंचित किया जा रहा है।

मीडिया पर भी सरकार का सेंसर है वो सरकार की ही बोली बोलता है इसके अलावा कुछ बोलता नहीं। जनता द्वारा चुन कर भेजे गए जन प्रतिनिधि यानी सांसद विधायक चाहे वो सत्ता के हों या विपक्ष के सत्ता सुख मिलते ही जनता के मुद्दों को फरामोश कर देते हैं। चुनाव जीतने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने वाले ये विधायक, सांसद, मंत्री पद पाने के बाद जनता की बात नहीं करते।

ऐसे में रोजगार के लिए भटक रहे पढ़े लिखे युवा, महंगाई की मार और बिजली, पानी, सडक़ और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव से जूझ रहे नागरिक के पास अपनी समस्या अंधी-बहरी सरकार को सुनाने के लिए कौन सा रास्ता बचता है? विभिन्न प्रदेश और इलाकों से आने वाले इन युवाओं ने पूरे देश की समस्या का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी अभिव्यक्ति के लिए यह गलत रास्ता अपनाया लेकिन उनकी आवाज हक के समर्थन में उठी। महत्वपूर्ण यह है कि कल तो ये चार-छह युवा ही संसद पहुंचे थे भविष्य में यह संख्या छह हजार, छह लाख और छह करोड़ भी हो सकती है। तब सरकार क्या करेगी? जब समस्याएं बढ़ती जाएंगी और उनका निदान होगा नहीं, तो यही होगा। आज के दिन जब एक करोड़ से अधिक सरकारी वेकेंसी खाली पड़ी हैं। नई जॉब सृजित करना तो दूर की बात, स्वीकृत पद भी नहीं भरे जा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज रोहतक में असिस्टेंट प्रोफेसरों के दो सौ पद खाली हैं, अकेले हरियाणा में चार लाख स्वीकृत पदों में से दो लाख खाली हैं, रेलवे में करीब चार लाख पद खाली हैं इसकी तरह रक्षा विभाग में करीब चार लाख पद खाली हैं। उत्तर प्रदेश में करीब दस लाख स्वीकृत पद खाली पड़े हैं। स्वीकृत पदों से जनता को जो लाभ होने थे वो तो हो नहीं रहे, और जो रोजगार के लिए लोगों ने तैयारियां और पढ़ाई कर रखी थी सरकार उन्हें काम नहीं दे रही। ये संकट गहराता जा रहा है, इसकी वजह से अर्थव्यवस्था भी धराशायी हो गई, मोदी सरकार चाहे जितने जुमले उछाल ले कि देश की इकोनॉमी इतने ट्रिलियन हो गई और उतने ट्रिलियन होने वाली है, ये सिर्फ जुमलेबाजी, शगूफेबाजी है। ये जो हालात पैदा किए जा रहे हैं तो आज तो चार-छह ही आए हैं कल यह संख्या छह हजार, छह लाख और छह करोड़ भी होगी अगर इसका सही उपचार न किया। दमन एवं बल प्रयोग से यह समस्या हल होने वाली नहीं है।

इन चारों युवाओं को गोदी मीडिया अपराधी की तरह पेश कर रही है लेकिन देखा जाए तो उन्होंने कोई कानून नहीं तोड़ा। भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा की सिफारिश पर मिले विजिटर्स पास के जरिए ही दोनों बाकायदा तलाशी और सिक्योरिटी चेक के बाद संसद की दर्शक दीर्घा में दाखिल हुए थे। उनके पास कोई हथियार नहीं थे केवल ध्यान आकर्षित करने के लिए उन लोगों ने गैर नुकसानदेह रंगीन कैनिस्टर ले रखे थे। संसद के भीतर भी उन्होंने किसी से हाथापाई तक नहीं की बल्कि सांसदों ने कानून हाथ में लिया और सिक्योरिटी को सौंपने से पहले उन्हें जमकर पीटा। कानून के हिसाब से उनकी कोई सजा नहीं बनती लेकिन जन अपेक्षाओं की अनदेखी करने वाली सरकार अपने मन मुताबिक कानून का इस्तेमाल कर किसी को भी महीनों-वर्षों तक जेल में रख सकती है, कोई सुनवाई तो होती नहीं, इस तरह इनको तंग किया जा सकता है।

संसद में जब ये लोग आए तो सांसदों की सुरक्षा का बड़ा खतरा बता कर हल्ला गुल्ला किया गया क्योंकि वे वीआईपी हो गए हैं। देश कितना सुरक्षित है? देश का आम आदमी कितना सुरक्षित है, रोज हर जिले में जघन्य अपराध हो रहे हैं आम जनता को कितनी सुरक्षा दे रही है सरकार? पार्लियामेंट में बैठे सत्ता की भागेदारी करने वाले सत्ता और विपक्ष के लोग अपनी सुरक्षा के लिए तो बडे चिंतित हैं लेकिन आम जनता हर तरह से असुरक्षित है। जब इस तरह का राजकाज चलेगा, इस तरह की कार्रवाई होगी तो फिर असुरक्षा से घिरी जनता भी सडक़ों पर उतरेगी और ऐसा होता ही रहेगा। यदि सरकार इससे बचना चाहती है तो देश की जनता की भावनाओं के अनुसार उसकी समस्याओं का उपचार करके देश और लोकतंत्र को बचाने की अपनी जिम्मेदारी निभाए।

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