चित्र टॉम लाफ़टीन जॉनसन का है जो अमेरिका में एक उद्योगपति एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर के साथ साथ अमेरिका के बड़े शहर क्लीवलैंड के चार बार मेयर भी थे। एक दिन ये अपने घर के गैराज में कुछ प्रयोग कर रहे थे उनके सामने एक बिजली का छोटा सा मोटर था।
सभी जानते हैं कि बिजली के मोटर में बीच में एक कोर होता है और चारों तरफ एक आर्मेचर होता है आर्मेचर में बिजली का प्रवाह डाला जाता है जिससे एक मैग्नेटिक फील्ड बनती है और उसमें मैटिक फील्ड की वजह से बीच में जो कोर होता है वह तेजी से घूमने लगता है और इसी के उल्टे सिद्धांत पर बिजली का जनरेटर काम करता है।
तुरंत इनके विचार उनके मन में एक क्रांतिकारी विचार आया उन्होंने सोचा जब आर्मेचर गोल है तब कोर उसके बीच में घूम रहा है तो यदि आर्मेचर को लंबवत रूप में फैला दिया जाए तो क्या होता है। फिर उन्होंने जब प्रयोग किया तब यह देखकर हैरान रह गए की रॉकेट की गति से कोर एक तरफ से दूसरी तरफ भागा।
उसके बाद इन्होंने 1906 में अमेरिका के पेटेंट कार्यालय में एक ऐसे ट्रांसपोर्ट सिस्टम का पेटेंट हासिल कर लिया जिसे दुनिया आज मैगलेव यानी मैग्नेटिक लेविगेशन के नाम से जानती है।
इन्होंने यह विचार दिया कि बगैर पहिए के भी ट्रेन को चलाया जा सकता है यानी मैग्नेटिक लेविगेशन के द्वारा रेल की पटरीओं में एक मैग्नेटिक फील्ड होगा यानी बिजली के मोटर में जो काम आर्मेचर करती है वह काम रेल की पटरीया करेंगी और बिजली के मोटर में जो काम कोर करता है वह काम खुद ट्रेन करेगा लेकिन इस ट्रेन में पहिए नहीं होंगे यह रेल की पटरी यानी आर्मेचर से कुछ मिली मीटर ऊपर उठकर मैग्नेटिक फील्ड पर दौड़ेगा।
आज मैग्लेव ट्रेन जर्मनी में और चीन में चल रही है जिन की गति 900 किलोमीटर से लेकर 1100 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। लेकिन इस मैग्लेव ट्रेन की सबसे नुकसान वाली बात यह है कि इन्हें बहुत ज्यादा बिजली चाहिए यानी यह बिजली का बहुत ज्यादा खपत करती हैं इसीलिए यह आर्थिक रूप से कई देशों द्वारा नकार दी गई हैं।
फिर टेस्ला कंपनी के मालिक एलन मस्क ने इस पर रिसर्च किया वह यह जानना चाहते हैं थे कि मैग्नेटिक लेविगेशन यानी मैगलेव ट्रेन में इतनी ज्यादा बिजली क्यों लगती है। तब उन्हें पता चला कि हमारे वायुमंडल में जो हवा होती है उसके फ्रिक्शन की वजह से मैग्लेव ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम को बहुत ज्यादा बिजली चाहिए क्योंकि 90 प्रतिशत ऊर्जा वायुमंडल के फ्रिक्शन की वजह से बर्बाद हो जाती है। फिर एलन मस्क के दिमाग में और भी ज्यादा क्रांतिकारी विचार आया कि यदि एक ऐसा ट्यूब बना दिया जाए जिसमें वैक्यूम के द्वारा पूरी हवा निकाल दिया जाए और उसमें भी यही मैग्नेटिक आर्मेचर और कोर का सिद्धांत हो तब क्या होता है।
उसके बाद उन्होंने अमेरिका के नवादा के रेगिस्तान में एक हाइपरलूप बनाकर इसका प्रयोग किया फिर यह देखकर वैज्ञानिक चौक गए कि बेहद कम बिजली में हाइपरलूप चलाया जा सकता है क्योंकि रूप में से हवा निकाल देने से पॉड को फ्रिक्शन का सामना नहीं करना पड़ता इसीलिए बेहद तेज स्पीड में यानी बुलेट की स्पीड में पॉड जिसमें यात्री बैठे होते हैं वह हाइपरलूप में एक जगह से दूसरी जगह चला जाता है।
हाइपरलूप का पेटेंट भी हो गया है। अमेरिका के कई शहरों में इसकी मंजूरी दे दिया है दुबई में भी लग रहा है भारत सरकार भी इस पर विचार कर रही है क्योंकि इसमें बहुत कम बिजली लगती है और इसे बनाने में किसी मेट्रो के बनाने की अपेक्षा बहुत कम खर्चा आता है।