डबरा एक अत्यंत सूखा और गर्म प्रदेश था जिसे अपने अथाह मेहनत से सिखों ने उपजाऊ ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्रदान की है। एशिया के सबसे बड़े थोक बाजार पुरानी दिल्ली की ‘नए बाजार’ में डबरा चना जो सफेद चने की ही एक किस्म है का सिक्का बोलता है…

डबरा एक अत्यंत सूखा और गर्म प्रदेश था जिसे अपने अथाह मेहनत से सिखों ने उपजाऊ ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्रदान की है। एशिया के सबसे बड़े थोक बाजार पुरानी दिल्ली की ‘नए बाजार’ में डबरा चना जो सफेद चने की ही एक किस्म है का सिक्का बोलता है…
January 03 13:47 2021

किसान आन्दोलन में धर्म यज्ञ की आहुतियाँ शामिल, पलवल में दिखा लोकतंत्र का नजारा

विवेक कुमार

पलवल : किसान आन्दोलन ने देश में कई किस्म की बहसों को जन्म दिया है। पर इस एक नाम किसान आन्दोलन’ के पीछे कितनी कहानियां घर कर गईं हैं और कितने तरह के सहयोग चल रहे हैं उसका जमीनी जायजा मजदूर मोर्चा टीम ने लिया।

दिन के दो बजे बर्फीली तेज हवाओं में सफेद कुर्ते पहने किसानों का हुजूम मानो बर्फ की सफेद चादर बिछी हो। आस-पास के गांवों से बड़ी संख्या में एनएच-2 पर केएमपी और केजीपी के मिलन-स्थल  पर धरने पर बैठे मध्यप्रदेश के ग्वालियर, डबरा, भोपाल, इंदौर के किसानों को अपना समर्थन देने आये पलवल क्षेत्र के स्थानीय किसानों ने सरकार से दो-दो हाथ करने की ठान ली है।

फरीदाबाद से पलवल की ओर पलवल शहर से बाहर निकलते ही किसानो ने सरकार की कृषि नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। सडक़ के बीचों बीच मोदी के पुतले को उल्टा टांग कर झीने टेंट और पतली दरियों पर सैकड़ों किसान बैठे हैं और सरकारी नीतियों का विरोध करते हुए हुक्के के कश भी खींच रहे हैं। हुक्के की नली अपने चारों ओर बैठे किसानों के मूंह में जा कर सारे शरीर को आंच दे आती है। ताऊ के संबोधन से मशहूर देवीलाल ने कहा कि ये नली मुह को लगते ही ठण्ड वापस शिमला भाग जाती है।

पलवल में धरना जमाये किसानो को 30 दिन हो गए पर आज जो धरने की शक्ल है पहले दिन वह ऐसी नहीं थी। आज धरना स्थल पर भूडेर पाल, तेवतिया पाल और कई अन्य पालों का समर्थन है। सैकड़ों की संख्या में धरना दे रहे किसानो के खाने पीने का सारा बंदोबस्त ग्वालियर मध्यप्रदेश से आये किसान सेवकों ने उठाया हुआ है।

खडूर साहब तख्त के अनुयायियों में शामिल हरचरण सिंह ग्वालियर शहर से 40 किलोमीटर दूर डबरा नामक स्थान से आये हैं। अपना इतिहास बताते हुए हरचरन ने बताया कि उन्हें और उनकी ही तरह के हजारों परिवारों को 1947 के विभाजन में पाकिस्तान से आने के बाद डबरा में भारत सरकार ने बसाया। डबरा एक अत्यंत सूखा और गर्म प्रदेश था जिसे अपने अथाह मेहनत से सिखों ने उपजाऊ ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्रदान की है। एशिया के सबसे बड़े थोक बाजार पुरानी दिल्ली की ‘नए बाजार’ में डबरा चना जो सफेद चने की ही एक किस्म है का सिक्का बोलता है। हरचरण को अपने उस कौम से होने का गर्व है जो बंजर जमीन को भी इस स्तर तक ले आई। साथ ही उनका मानना है कि जब हम जमीन को बदल सकते हैं तो मोदी सरकार के इस कानून को तो हम बदलवा कर ही दम लेंगे।

58 वर्ष के मलमीत तरनतारन अमृतसर से सिंघु बॉर्डर आये और अब पलवल धरने में बैठे हैं। हमारे इस सवाल पर कि धरना धार्मिक सिखों की तरफ झुका हुआ दिखाई दे रहा है ऐसा क्यों? मलमीत ने कहा कि हमने इस धरने को किसान आन्दोलन के नाम से ही शुरू किया और है भी किसानो का ही आन्दोलन। पर सरकार ने अपने पेड सोशल मीडिया चैनलों और मुख्य धारा की मीडिया से हमपर पंजाब के खालिस्तानी और आतंकवादी का तमगा लगवाने का प्रयास किया। क्योंकि पूरा सिख समुदाय ही किसानी से जुड़ा हुआ है तो यह पूरे समुदाय की बेईज्जती थी और जिसका परिणाम हुआ कि सारे समुदाय के लोग जहा कहीं भी हैं इस आन्दोलन में सरकार के खिलाफ कूद पड़े। आज उत्तराखंड के सिख किसान, बाजपुर, रामनगर और डबरा जैसे जगहों से आये जो कि मध्यप्रदेश में हैं उन्हें खालिस्तान से क्या मिल जाएगा? जो लोग विदेशों से आकर धरनों में शामिल हो गए उन्हें खालिस्तान से क्या मिलेगा। क्योंकि सरकार ने धरने को किसान से अलग खालिस्तान से जोड़ा इसलिए हमने सिख धर्म को आन्दोलन से जोड़ कर दिखाया।

पलवल पृथला विधानसभा से किसान आन्दोलन में आये 64 वर्षीय सूबे सिंह चौहान ने धरने को मात्र सिख धरना मानने से इनकार करते हुए सरकारी नीतियों की आलोचना की और बताया कि सिख भाइयों ने खाना बनाने से लेकर परोसने तक का इंतजाम किया हुआ है तो उनके सहयोग के लिए अब आस-पास के गाँव से भी राशन और बना हुआ लंगर आने लगा है। जब किसी आन्दोलन की पवित्रता इतनी बड़ी हो तो सभी धार्मिक काम भी आन्दोलन के नाम से होने लगते हैं।

किठवाड़ी गाँव से खाना लेकर आये युवकों का मानना है कि शुरुआत में इस धरने में आस-पास के लोग शामिल नहीं हुए थे पर धीरे-धीरे अब लोगों का आना शुरू हो गया है जिसका सबसे बड़ा उदहारण पाल पंचायतों का जुडऩा है। पर पहले क्यों नहीं शामिल हुए, क्या आपको आन्दोलनकारियों पर यकीन नहीं था? युवकों ने कहा नहीं, ऐसी बात नहीं है। हम आन्दोलन में शामिल सिर्फ और सिर्फ इस वजह से नहीं हुए कि हमे लगता था कि हम तो अब मंडी के भरोसे हैं नहीं और न ही हम ऐसे किसान रहे, तो क्योकर जाए। अब ऐसा नहीं, हम मानते हैं कि यदि इन किसानो ने अपने हक की लड़ाई नहीं लड़ी तो इनका हल भी हमारे जैसा हो जाएगा और यह भी एक दिन सिर्फ मजदूर बन कर रह जाएंगे जैसा कि हमारे साथ हुआ है। इस लड़ाई में इन्हें पूरे देश का सहयोग मिलना भी चाहिए और मिल भी रहा है।

सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर की तरह पलवल पर इतनी संख्या किसानो की बेशक न हो पर जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं किसानो को आस-पास के गाँव का समर्थन मिलता जा रहा है और आन्दोलनकारियों ने भी उसी अनुपात में राशन से लेकर खाना बनाने की व्यवस्थाओं को भी दुरुस्त किया हुआ है। भिखारी, सफाई कर्मी, प्रेस, पुलिस सभी को बाइज्जत पकड़-पकड़ कर देसी घी के लड्डू, चाय, मिठाई समोसे और खाना खिलाने का पूरा इंतजाम है।

जिस भारत के चर्चे संस्कृति के नाम पर दुनिया भर में होते थे और जिस संस्कृति पर असल में भारत को गर्व था और गौरवान्वित होना चाहिए उसके दर्शन इन धरना स्थलों पर हो रहे हैं। आन्दोलन में आपसी भाईचारे और सहयोग को देखकर अकस्मात् मुह से निकल रहा है “मेरा भारत महान”।

 

जाम के नाम पर बदनाम करने की कोशिश बेबुनियाद

किसान आन्दोलन को बदनाम करने के लिए सरकारी तंत्र के साथ साथ सरकार बीजेपी आई टी सेल का इस्तेमाल भी खूब करती नजर आ रही है। बेशक सरकार के नेता अपनी प्रेस कांफ्रेंसों में आन्दोलनकारियों को खालिस्तानी बताने वाले लोगों पर लानतें भेजते दिख रहे हों पर दरअसल सरकार की यही रणनीति है।

पलवल पर धरना स्थल के कारण जाम लगने का रोना सरकार समर्थित मीडिया और लोग पहले दिन से लगाने लगे थे जबकि सच्चाई इससे अलग मिली। भरतपुर से फरीदाबाद की अपनी आने-जाने की यात्रा में फरीदाबाद निवासी प्रभात बसंत ने पाया कि जाते समय दिन में 10 बजे पलवल शहर में कई सालों से बनने वाले पुल के नाम पर उपजी अव्यवस्थाओं के कारण 45 मिनट का जाम मिला उसके आगे श्रीनगर टोल पर फास्ट टैग होने के बावाजूद 20 मिनट का इंतजार था।

भरतपुर से वापस आते समय मथुरा हाईवे पर जुडऩे वाली सडक़ पर एक घंटे का जाम और फिर श्रीनगर टोल पर पूरे 45 मिनट का इंतजार था। टोल के तुरंत बाद धरना स्थल पर केवल 10 मिनट का जाम मिला और फिर पलवल शहर में 40 मिनट ट्रैफिक जाम मिला जिसमे 15 मिनट तक गाड़ी एक ही स्थान पर बंद खड़ी रही।

बसंत पेशे से प्रोफेसर हैं , उनका मानना है कि इन सभी जामों को छोड़ कर जिनको सिर्फ किसानो के जाम से समस्या है वे खुद बेतरतीब नियमों और टूटी सड़कों के रोज होने वाले जाम में हनी सिंह के गाने सुनते हुए मजे से जिन्दगी बिता रहे हैं। पर ऐसे लोगों को जाम तभी दिखता है जब कोई अपने हक के लिए आन्दोलन करे। ठीक ऐसे ही इन सरकारी चमचों को शाहीन बाग का जाम याद आ गया था, और रोज दिल्ली व् फरीदाबाद के नीलम पुल के जाम से इन्हें कोई दिक्कत नहीं। इतनी दिक्कत है जाम से तो क्यों नहीं इस जाम के नाम पर ही एक आन्दोलन ये लोग कर देते, हम सभी इनका साथ देंगे। फास्ट टेग लगाने के बावजूद 45 मिनट का इंतजार करना पसंद है पर इस लूट के खिलाफ कोई आवाज उठाएगा तो इन्हें जाम लगने लगता है जबकि जाम हमने नहीं सरकार ने लगाया है।

अपने ही नागरिकों को बांटती सरकार

पलवल किसान धरना स्थल पर आये एक कश्मीरी व्यक्ति को वहां के लोगों ने सिर आँखों पर बैठा लिया। यह युवक किसानो के इस आन्दोलन को अपना समर्थन देने आया था। उसने कहा कि जिस तरह यहाँ का किसान सरकार की नीतियों से परेशान है उसी तरह कश्मीर का किसान भी लुटा पिटा है। हम भी एक सेब के पेड़ को अपने बच्चे की तरह पालते हैं और उसके मरने पर वैसा ही दु:ख होता है हमे जैसा अपने बच्चे के मरने पर होता हो। ठीक इसी तरह एक सेब के पेड़ का जाना मतलब 4 लाख का नुकसान।

पलवल शहर के सिख सामाजसेवी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आस-पास के मुस्लिम समाज के लोग और किसान भी इस प्रदर्शन में शामिल होकर अपना सहयोग देना चाहते थे पर हमने उन्हें मना किया। उन्होंने बताया कि आपसी सहमती से हमने तय किया कि मुस्लिम समाज के लोग फिलहाल आन्दोलन से दूरी बनाये क्योंकि सरकार मुसलमानों को देखते ही सोशल मीडिया और सरकार समर्थित गोदी मीडिया के माध्यम से आन्दोलन को हिन्दू-मुसलमान या पाकिस्तानी साजिश जैसी कोरी बकवासों में उलझा देगी और शायद दंगे तक कराने में माहिर संघी गुंडों को इसी बहाने एक मौका भी मिल जाएगा।

सरकार के ऐसे व्यवहार पर गहरा शोक जताते हुए लोगों ने कहा कि सोचिये कैसी सरकार होगी जो अपने ही नागरिकों को सिर्फ अपनी कुर्सी बनाये रखने के लिये आपस में लड़वाने और यहाँ तक कि एक पूरे वर्ग को ही दोयम दर्जे का व् गद्दार साबित करने पर तुली हो। ठीक यही प्रयास सिखों के साथ भी इस बार करने की चेष्ठा सरकार ने की पर सफल नहीं हो सकी। ऐसा करके कैसे अखण्ड भारत बन सकेगा यह तो ये देशद्रोही सरकार ही जाने।

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Mazdoor Morcha
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