गाड़ी की आरसी बनवाने के दौरान किसके पेट में जाते हैं 30 रुपये एसडीएम दफ्तरों में कमाई के नए-नए जरिए तलाश लिए गए हैं…

गाड़ी की आरसी बनवाने के दौरान किसके पेट में जाते हैं 30 रुपये  एसडीएम दफ्तरों में कमाई के नए-नए जरिए तलाश लिए गए हैं…
December 28 16:12 2020

 

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

फरीदाबाद: ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने से लेकर आरसी (रजिस्ट्रेशन) जारी करने तक कमाई के कई तरीके निकाले गए हैं। फरीदाबाद की सभी तहसीलों में एसडीएम दफ्तर की मिलीभगत से इस धंधे को दलाल अंजाम दे रहे हैं। इन दफ्तरों के जरिए कमाई का एक नया तरीका सामने आया है। आरसी स्पीड पोस्ट के जरिए भेजे जाने के नाम पर पैसे लिए जा रहे हैं लेकिन कोई भी आरसी कभी भी स्पीड पोस्ट से आज तक नहीं भेजी गई।

क्या है मामला

किसी भी एसडीएम दफ्तर से वाहन की आरसी बनवाने के लिए आनलाइन आवेदन करना पड़ता है। वाहन मालिक से कुल 3850 रुपये का भुगतान लिया जाता है। इसमें 30 रुपये पोस्टल फीस के भी शामिल होते हैं। लेकिन किसी भी शख्स को यह आरसी स्पीड पोस्ट के जरिए कभी नहीं भेजी जाती। उसे एसडीएम दफ्तर से उस आरसी को उठाना पड़ता है। इस तरह वो 30 रुपये किसकी जेब में जाते हैं, इसका पता किसी को नहीं है।

इस सिलसिले में डीसी फरीदाबाद, सीएम हरियाणा के पास लोगों ने शिकायत तक की लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। ताजा उदाहरण राकेश कुमार का है।

राकेश कुमार ने 13 नवम्बर 2020 को एसडीएम बडखल के दफ्तर में 3850 रुपये का भुगतान आनलाइन किया। जिसमें 30 रुपये स्पीड पोस्ट से भेजे जाने के भी शामिल थे। एक महीना बीतने के बावजूद राकेश कुमार को उनके दो पहिया वाहन की आरसी नहीं मिली है। इस मामले की शिकायत डीसी फरीदाबाद और सीएम से की गई है।

इस संवाददाता ने जब मामले की पड़ताल की तो तहसील के कर्मचारियों ने बताया कि ये पैसे सरकारी खाते में जाते हैं। लेकिन हकीकत ये है कि परिवहन विभाग से सभी आरसी को स्पीड पोस्ट से भेजने की कोई व्यवस्था नहीं है।

आमतौर पर लोग वाहनों के जिस शोरूम से गाडय़िां खरीदते हैं, वही शोरूम वाले आरसी बनवाकर देते हैं। लेकिन ये पैसा ग्राहक से ले लिया जाता है। ग्राहक झंझट से बचने के लिए वाहन शोरूम वालों द्वारा मांगे गए पैसे बिना पूछताछ किए ही दे दिए जाते हैं। एक महीने बाद शोरूम वाले आरसी ग्राहक को सौंप देते हैं। दरअसल, एसडीएम दफ्तर से शोरूम वालों की सांठगांठ होती है और इस सुविधा के एवज में हर आरसी पर पैसे वसूले जाते हैं।

आमतौर पर ग्राहक इस बात की पड़ताल भी नहीं करते हैं कि आरसी स्पीड पोस्ट से भेजने की एवज में 30 रुपये भी उनसे वसूले गए हैं। लेकिन राकेश कुमार जैसे असंख्य ग्राहक हैं जो इन हरकतों को जानते हैं और खुद ही आरसी के लिए आवेदन कर देते हैं।

दलालों का राज

हरियाणा में वाहनों की आरसी बनवाने, डीएल बनवाने, जमीन जायदाद की रजिस्ट्री कराने में करोड़ों की अवैध कमाई की जा रही है। आरसी और रजिस्ट्री करने का काम सीधे हर तहसील के एसडीएम के पास है। दलाल सभी एसडीएम दफ्तरों से जुड़े हुए हैं। जिस तरह आरसी में तीस रुपये पोस्टल फीस जोड़ी गई है, उसी तरह रजिस्ट्री कराने के दौरान रेडक्रास की 2000 रुपये की अवैध स्लिप काटी जाती है, जिसका आरसी से कोई संबंध नहीं है।

आरसी लेने वाले से यह कभी नहीं पूछा जाता है कि उसे आरसी घर पर चाहिए या वो दफ्तर में आकर लेगा। सरकार की तरफ से ऐसा कोई नियम भी नहीं है। लेकिन इस मद को आरसी शुल्क के सारे पैसों में शामिल किया गया है। इस संबंध में वाहन शोरूम वालों का कहना है कि हम ग्राहकों की सुविधा के लिए ऐसा करते हैं, ताकि उनको एसडीएम दफ्तर के बार-बार चक्कर नहीं लगाने पड़ें। यह सच भी है।

अगर आप शोरूम के जरिए आरसी लेते हैं तो आपको एक बार भी एसडीएम दफ्तर आरसी लेने नहीं जाना पड़ता है। लेकिन राकेश कुमार जैसे ग्राहकों ने खट्टर सरकार की ईमानदारी पर किसी तरह का शक न करते हुए खुद ही आरसी बनवाने को सोचा तो उन्हें एक महीने बाद भी आरसी का इंतजार है, जबकि उनसे पोस्टल फीस तीस रुपये वसूली जा चुकी है।

आमतौर पर अकेले फरीदाबाद जिले में रोजाना करीब सात-आठ सौ आरसी जारी होती है। इनमें सबसे ज्यादा दो पहिया वाहनों की आरसी है। राज्य परिवहन विभाग को यह मालूम ही नहीं है कि पोस्टल फीस के एवज में वसूले जाने वाले तीस रुपये किसके खाते में जाते हैं। लेकिन वर्षों से ये वसूली जारी है।

आईटी के जानकारों का कहना है कि हर एसडीएम दफ्तर में कम्प्यूटर का सेटअप लोकल होता है। वहां से सिर्फ वांछित डेटा ही सरकार के पास जाता है, जिसमें वाहन का नंबर और टैक्स की सूचना होती है। यानी सरकार को सिर्फ वाहन के नंबर और अपने टैक्स से मतलब है। बाकी जो पैसे आनलाइन वसूले जा रहे हैं, वो पैसे एसडीएम दफ्तर के लेवल पर होते हैं। उनका इस्तेमाल कहां, कैसे, किन-किन के बीच होता है, ये जानकारी किसी के पास नहीं है। लेकिन सारी प्रक्रिया चूंकि सरकारी है, इसलिए कोई सवाल नहीं उठाता और न ही पड़ताल करता है।

उम्मीद है कि डीसी फरीदाबाद इस संबंध में स्थिति स्पष्ट करेंगे कि पोस्टल फीस के वो तीस रुपये आखिर किसके खाते में जाते हैं।

 

 

पीले पंजे का कोई धर्म नहीं होता

फरीदाबाद (ज्योति संग) हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई को खुश या प्रताडि़त करने वाले कार्यों को धर्म मानने वाले दिग्भ्रमित लोगों को यह समझना होगा कि इस नाटक का धर्म से ज़रा भी लेना देना नहीं है बल्कि नियम न्याय, समानता, जनहित और सुरक्षित भविष्य की दिशा में किया जाने वाला हर कार्य या निर्णय धर्म की परिधि में माना जाता है।

फरीदाबाद नगर निगम अग्निशमन विभाग में एक लम्बे अरसे तक बने रहे काफी विख्यात या कुख्यात अधिकारी ने कभी बड़ी हेकड़ी के साथ एक पत्रकार को बताया था कि हरियाणा भवन निर्माण मैन्युअल और हरियाणा फायर सेफ्टी मैन्युअल को सोच-समझ कर इस तरह से बनाया गया है कि इस आज का कोई भी नागरिक इसका पूरी तरह से पालन नहीं कर सकता। शायद इस घोर खुराफाती तिकड़म का जिक्र उन्होंने इस संदर्भ में किया था कि यह दोनों मैन्युअल एम सी ए$फ अधिकारयों के लिए एक दुधारू गाय का काम करते है। इन मेन्येल्ज़ में बड़े शातिराना तरीके से जोड़ी गए अनैतिक कानूनी मामलों की वजह से अधिकारी बेखौफ जनता को लूट सकेंगे।

दिनांक 21 दिसम्बर 2020 को फरीदाबाद एमसीएफ के ज्वाइन्ट कमिश्नर प्रशान्त अटकान अपने पीले पंजे और लाव-लश्कर के साथ एनआईटी पांच की रेलवे रोड पर पहुंचे और ज्वाईट कमिश्नर पद की निरंकुश ताकत का नंगा नाच दिखाया। आनन-फानन में बीसियों साल पुराने भवनों के बाहरी हिस्सों को ध्वस्त करने से पहले प्रशासन ने इन भवन मालिकों को किसी प्रकार का नोटिस या पूर्व सूचना देने की जरूरत नहीं समझी। इसी सडक़ पर पांच ए-17 ए-बी.पी की सौ $फीसदी अवैध निर्मित बिल्डिंग, जिस की अवैधता की खुली चर्चा स्थानीय पार्षद सरदार जसवंत सिंह द्वारा कुछ समय पहले निगम हाउस में की गई थी, की तरफ बढना, इस विध्वंसक दल का लक्ष्य नहीं था बल्कि कानून की नज़र में धूल झोंकने के लिये कुछ छोटे-मोटे निर्माणों की बाऊंड्री-वाल, टीन के छज्जे था कुछ सीढियां रेलिंग इत्यादि को आंशिक रूप में तोड़ कर अपनी ताकत अहम और मौजूदगी का अहसास करवाना था।

हम किसी से नहीं डरते

इसी कार्रवाई के दौरान 5-डी/8ए जो नगर के एक प्रतिष्ठित वकील आर के मल्होत्रा का कार्यालय है की रेलिंग और सीढियों को भी तोड़ गया। एडवोकेट आर के मल्होत्रा और उन के स्टा$फ के लोग जो उस समय अपने कार्यालय में उपस्थित थे, ने अपने पास उपलब्ध दस्तावेजों के साथ प्रशान्त अटकान को रोकने या समझाने की कोशिश की मगर आंखों पर सत्ता की पट्टी बांध कर ताकत के नशे से चूर प्रशान्त अटकान के कान पर जूं तक नहीं रेंगी और वह अपनी पहले से तयशुदा कार्यवाही को सरअन्जाम करने में लगा रहा। ऐसा माना जा रहा है कि एडवोकेट आर के मलहोत्रा ने तमाम सरकारी नियमों का पालन किया है। यह बात इस आधार पर भी कही जा सकती है कि उपरोक्त बिल्डिंग से चार-पांच फुट भीतर बनी हुई है। दूसरे शब्दों में इस बिल्डिंग के दोनों ओर की इमारतें जो चार-पांच फुट बाहर बनी है को छेड़े बिना  मल्होत्रा की बिल्डिंग को क्यों तोड़ा गया और उसके साथ की  तुलना में कहीं ज्यादा सडक़ की ओर बने निर्माण, मिस्टर अटकान को क्यों नज़र नहीं आए।

गौरतलब बात यह भी है कि इसी सडक़ पर लगभग 100 फुट की दूरी पर एक कार शो रूम है जो इस भवन से 10 फुट से भी ज्यादा बाहर है को प्रशान्त अटकान नेकिस आधार पर छोड़ दिया था और उसे पूरी तरह से वेध घोषित कर दिया।

अधिकारियों की बपोती बन कर रह गया है कानून

इसी संदर्भ में पांच ए-17 बीपी की चर्चा भी बहुत आवश्यक है। एनआई के थाने के ठीक सामने यह भवन अभी निर्माणाधीन है और इस की सूचना लगभग सभी छोटे-बड़े अधिकारियों को है। अपने आसपास के कई भवनों से लगभग आठ-दस फुट बाहर बने इस भवन की ओर झांकने के लिए शायद अटकान को उच्च अधिकारियो ने सख्ती से मना कर रखा है।

ऐसा कहा जा रहा है कि इस भवन की सुरक्षा लाखों रुपये के बैग हैं जो  इस के मालिकान की तरफ से अधिकारियों और राजनेताओं तक पहुंचाए जा चुके  है। अभी हाल में इस केस में एक नया मोड़ आया है जो शातिर लोगो ंकी बेईमानी का एक घटिया और हास्यास्पद नमूना है। पांच ए/17 बीपी के अवैध निर्माण को छिपाने के लिये उस के साथ वाले मकान ने भी अपने पुराने निर्माण के सामने लगभग 10 फुट जगह पर नए कमरे का निर्माण कर दिया है। ताकी 5ए/17 बीपी का बाहर बड़ा हुआ हिस्सा दिखाई न दे।

पांच नम्बर के पार्षद सरदार जसवंत सिंह ने अपने एक बयान में यह प्रश्न पूछा है कि यह अनैतिक तोड़-$फोड़ करने वाला भ्रष्ट प्रशान्त ऐसी सडक़ों पर अपनी सम्पत्ति या सीमाओं की डिमारकेशन या निशानदेही कर के स्थिति को स्पष्ट क्यों नहीं करता? सरदार जसवंत ने आगे कहा कि एमसीए$फ प्रशासन निशानदेही के साथ, स्थिति को इस वास्ते भी स्पष्ट नहीं कर सकता क्यों कि करोड़ों रुपये डकार कर जो अधिकारी वर्षों से मौज ले रहे हैं, उसके बंद हो जाने का खतरा है।

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Mazdoor Morcha
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