बड़ा खुलासाः एल एंड टी कंपनी ने फ़रीदाबाद समेत देशभर के अपने ही 35000 कर्मचारियों को कैसे लूटा

बड़ा खुलासाः एल एंड टी कंपनी ने फ़रीदाबाद समेत देशभर के अपने ही 35000 कर्मचारियों को कैसे लूटा
March 13 15:01 2021

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

फरीदाबादः सराय ख्वाजा से दिल्ली जाते हुए मेट्रो स्टेशन के पास बाईं तरफ जो एल एंड टी इन्फोटेक टावर नाम की बिल्डिंग खड़ी है, वह दरअसल इस देश में हुए एक बड़े आर्थिक घोटाले की इमारत है। इसका खुलासा अब जाकर हुआ है। इस बिल्डिंग की जगह कभी लार्सन एंड टुब्रो (L & T) स्विचगियर्स लिमिटेड नाम की फैक्ट्री हुआ करती थी लेकिन अब पता चला है कि इस कंपनी को एक साजिश के तहत बंद कराया गया। जिसमें कंपनी मालिक के अलावा उस समय की यूनियन, फरीदाबाद का लेबर कमिश्नर, हरियाणा की तत्कालीन कांग्रेस सरकार की मिलीभगत थी।

भारत में एल एंड टी के मालिक और ग्रुप चेयरमैन ए. एम. नाइक को कांग्रेस सरकार ने 2009 में पद्मभूषण से नवाजा था तो मोदी सरकार ने इसी शख्स को 2019 में पद्मविभूषण से नवाजा है। 2018 से मोदी सरकार ने इस घोटालेबाज नाइक को राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) का चेयरमैन बना रखा है। इस शख्स का भी गुजराती कनेक्शन है और यह साउथ गुजरात का रहने वाला है। इस शख्स ने फरीदाबाद की स्विच गियर्स की फैक्ट्री की बिल्डिंग को गिराकर उसकी जगह जो एल एंड टी इन्फोटेक टावर खड़ा किया, उसकी भी अनुमति नहीं ली गई। सरकारी कागजों में आज भी वह एल एंड टी कंपनी का प्लॉट है लेकिन कंपनी ने धंधा बदलकर दूसरे काम और अपने ही दूसरे दफ्तर उस बिल्डिंग में बना दिए हैं। एल एंड टी मूल कंपनी का अस्तित्व कागजों में है लेकिन मौके पर इन्फोटेक बिल्डिंग है, जहां मैन्यूफैक्चरिंग का कोई तकनीकी काम नहीं होता है। यह बिल्डिंग पूरी तरह से गैरकानूनी है।

राज का पर्दाफाश ऐसे हुआ

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एल एंड टी के पूर्व कर्मचारी हरि कृष्ण ने इसी 1 जनवरी 2021 को सहायक निदेशक औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य सर्कल फरीदाबाद में आरटीआई दाखिल की कि सरायख्वाजा, फरीदाबाद में मथुरा रोड स्थित एल एंड टी स्विचगियर्स फैक्ट्री को क्या संबंधित विभागों और अधिकारियों की अनुमति लेकर बंद किया गया। 8 जनवरी को इस आरटीआई के जवाब में सहायक निदेशक ने लिखा – इस संबंध में कार्यालय में उपलब्ध मूल फाइल का अवलोकन करने पर पाया गया कि फाइल में रिकॉर्ड अनुसार संस्था (एल एंड टी) द्वारा न तो कंपनी को बंद करने की अनुमति बारे आवेदन दिया गया है तथा न ही रिकॉर्ड में डी रजिस्ट्रेशन रिपोर्ट पाई गई है।

तो हुआ क्या था

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3 फरवरी 2008 को कंपनी के कर्मचारी काम करके घरों को चले गए लेकिन जब वो 4 फरवरी 2008 को काम पर आए तो कंपनी बंद हो चुकी थी और उसके बाहर भारी तादाद में पुलिस खड़ी थी। पुलिस ने कर्मचारियों को बताया कि कंपनी बंद हो चुकी है और सभी लोग घरों को लौट जाएं। कर्मचारियों को जब हिसाब-किताब के दस्तावेज दिए गए तो उससे पता चलता है कि एल एंड टी स्विचगियर्स ने 2 फरवरी 2008 को कंपनी बंद करने का नोटिस दिया और आधिकारिक रूप से 4 फरवरी 2008 को बंद भी कर दिया। आमतौर पर कोई भी कंपनी दो दिन का नोटिस देकर बंद नहीं की जाती है लेकिन एल एंड टी ने पूरी हरियाणा सरकार और जिला प्रशासन को खरीद कर यह भी कर दिखाया। उस समय हरियाणा में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की सरकार थी तो केन्द्र में भी कांग्रेस सरकार थी।

दरअसल, एल एंड टी के क्लोजर में उस कानून का सहारा लिया गया था जो भाजपा शासनकाल में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 2002 में लेकर आए थे। उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट लेबर (रेगुलेशन एंड एबोलिशन) कानून की धारा 12 (2) ही बदल दी थी जिसके तहत सौ कर्मचारी से भी कम संख्या वाली कंपनी को किसी भी समय बंद किया जा सकता है। एल एंड टी को बंद करते वक्त वाजपेयी के दौर में बने इस श्रम विरोधी कानून का सहारा लिया गया। लेकिन कहानी जरा लंबी है।

श्रम विभाग की शर्मनाक भूमिका

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एल एंड टी को बंद कराने में हरियाणा की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के अलावा फरीदाबाद के तत्कालीन लेबर कमिश्नर अजयपाल डूडी की बहुत ही संदेहास्पद भूमिका रही है। एल एंड टी में हालांकि 220 कर्मचारी काम कर रहे थे लेकिन लेबर कमिश्नर के रेकॉर्ड में सिर्फ 152 कर्मचारियों के काम पर होने का दस्तावेज था। कंपनी क्लोजर का स्पष्ट नियम है कि फैक्ट्री बंद किए जाने से कम से कम दो महीने पहले शासन, प्रशासन, मजदूर .यूनियन को सूचना देनी होती है लेकिन यहां तो मात्र दो दिन के अंदर सारी कार्रवाई तत्कालीन लेबर कमिश्नर अजयपाल डूडी ने संपन्न करा दी। उसी के कहने पर पुलिस फोर्स फैक्ट्री पर तैनात की गई, हालांकि पुलिस ने उसके लिए रिश्वत ली।

एल एंड टी के क्लोजर में अजयपाल डूडी की करतूत का पर्दाफाश कई स्तर पर हुआ। इस संबंध में 31 अगस्त 2013 में लगाई गई आरटीआई में चंडीगढ़ स्थित हरियाणा के श्रम सचिव से भी जानकारी मांगी गई। इसमें पूछा गया था कि क्या हरियाणा सरकार को एल एंड टी को बंद किए जाने को लेकर 2007 या 2008 में कोई आवेदन प्राप्त हुआ। श्रम सचिव यानी हरियाणा सरकार ने जवाब मे कहा कि ऐसा कोई आवेदन सरकार को नहीं मिला।

इसी आरटीआई में पूछा गया कि जब 4 फरवरी 2008 को फैक्ट्री बंद हुई तो उस दिन कितने कर्मचारी थे और वो किस पते पर रह रहे थे। इसके जवाब में कहा गया कि हेडक्वॉर्टर के दफ्तर के पास ऐसी कोई सूचना नहीं है। यानी लेबर कमिश्नर फरीदाबाद ने चंडीगढ़ ऐसी कोई सूचना या कर्मचारियों की सूची उपलब्ध नहीं कराई। इसमें सवाल किया गया था कि क्या एल एंड टी मैनेजमेंट ने फरीदाबाद के लेबर कमिश्नर को सूचित किया था, इसका भी जवाब नहीं में मिला। आरटीआई में पूछा गया था कि क्या फैक्ट्री बंद करने से पहले कर्मचारियों को उनकी सैलरी व अन्य अंतिम भुगतान किया गया, इसके जवाब में हरियाणा श्रम विभाग ने कहा कि चंडीगढ़ मुख्यालय के पास वेतन और अन्य भत्तों का भुगतान किए जाने के बारे में कोई सूचना नहीं है।

आरटीआई में पूछा गया था कि एल एंड टी को बंद किए जाने के कारण क्या थे। कृपया इस संबंध में वह पत्र उपलब्ध कराया जाए, जिसके जरिए कारण बताकर अनुमति मांगी गई थी। श्रम विभाग ने जवाब दिया कि उनके पास ऐसी कोई सूचना या आवेदन नहीं है।

सरकार की भूमिका पर सवाल

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आरटीआई में पूछा गया था कि क्या हरियाणा सरकार ने एल एंड टी प्रबंधन को फैक्ट्री बंद किए जाने की अनुमति दी, इसके जवाब में श्रम विभाग ने कहा कि ऐसी कोई सूचना उनके पास नहीं है। आरटीआई में एक और महत्वपूर्ण सवाल पूछा गया था कि क्या फैक्ट्री बंद किए जाने से पहले श्रम विभाग की एनफोर्समेंट एजेंसी ने फैक्ट्री का निरीक्षण किया था, इससे भी श्रम विभाग ने इन्कार किया। उसने जवाब में कहा कि ऐसा निरीक्षण फील्ड स्टाफ करता है लेकिन मुख्यालय पर ऐसी सूचना नहीं है।

आरटीआई से यह साफ हो गया कि एल एंड टी को बंद करने की सारी कार्रवाई जुबानी जमाखर्च थी। फरीदाबाद में बैठा तत्कालीन लेबर कमिश्नर अजयपाल डूडी सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय से नियंत्रित किया जा रहा था। हालांकि ऐसी स्थिति में अधिकारी अपना दिमाग लगाते हैं लेकिन पैसा देखकर डूडी की आंखों पर पट्टी बंध गई थी। दस्तावेजों से साफ है कि अजयपाल डूडी ने जो भी कागजी कार्रवाई की, उसके संबंध में कोई भी सूचना मुख्यालय नहीं भेजी और न ही किसी तरह का कोई दस्तावेज ही चंडीगढ़ भेजा।

कर्मचारियों से एक अरब रुपये वसूले

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एल एंड टी कंपनी ने देशभर में अपने 35000 कर्मचारियों के सामने 2003 में एक योजना पेश की कि हर कर्मचारी को सिर्फ एक बार एल एंड टी वेलफेयर फाउंडेशन में दो हजार रुपये अपने वेतन से देने होंगे। कंपनी इसके बदले एल एंड टी के इक्विटी शेयर देगी। इसके लिए कंपनी ने मुंबई मुख्यालय में भारतीय कामगार सेना से एक एग्रीमेंट किया। भारतीय कामगार सेना दरअसल शिवसेना का श्रमिक संगठन है। यह एग्रीमेंट एल एंड टी के फरीदाबाद स्विचगियर्स फैक्ट्री में लागू किया गया। यह सारे तथ्य दस्तावेजों में मौजूद हैं। जिसकी फोटोकॉपी मजदूर मोर्चा के पास उपलब्ध है।

कंपनी ने हर कर्मचारी के वेतन से दो हजार रुपये सिर्फ एक बार काटने की बजाय हर महीने दो हजार काटना शुरू कर दिया। ये पैसे 2003 से लेकर फरवरी 2008 तक काटे गए। यानी एक कर्मचारी के वेतन खाते से पांच साल में 32000 रुपये एल एंड टी वेलफेयर फाउंडेशन में डाले गए। दो साल के अंदर ही एल एंड टी के मालिक ने एक बोगस कंपनी एल एंड टी वेलफेयर कंपनी लिमिटेड कागजों में खड़ी कर दी और सारे पैसे इस कंपनी को इंटरनल ट्रांसफर कर दिए गए।

कर्मचारियों को चकमा देने के लिए इसके एवज में जो सर्टिफिकेट दिए गए उस पर वेलफेयर फाउंडेशन का जिक्र करते हुए कंपनी ने उसे कर्मचारी की तरफ से एल एंड टी वेलफेयर कंपनी लिमिटेड में ट्रांसफर करने की बात कही। कुछ ही कर्मचारी इस बात को समझ सके। लेकिन तब तक सारा पैसा ट्रांसफर हो चुका था। ये रकम करीब 1120000000 रुपये है। एल एंड टी कर्मचारियों के पास अब वेलफेयर कंपनी लिमिटेड के शेयर सर्टिफिकेट हैं जिनकी शेयर मार्केट में कोई कीमत नहीं है। लेकिन अगर एल एंड टी अपने शेयर सर्टिफिकेट देती तो कर्मचारी लाभ में रहते। बोगस कंपनी के शेयर कर्मचारियों के पास रद्दी कागज बनकर रह गए हैं। याद रहे कि फरीदाबाद का एल एंड टी प्लांट धोखाधड़ी करके फरवरी 2008 में बंद हो चुका था। इस तरह इस आर्थिक घोटाले के तार फरीदाबाद में बंद की गई कंपनी और उसकी जगह एल एंड टी इन्फोटेक खड़ी करने में कोई संबंध जरूर है।

सरकारी जांच को मोदी सरकार ने दबाया

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एल एंड टी की वेलफेयर फाउंडेशन को कंपनी लिमिटेड में बदलने की शिकायत वित्त मंत्रालय तक पहुंची तो उसने सारे मामले की जांच तत्कालीन वित्त सचिव राजीव टाकरू (आईएएस) को सौंपी। राजीव टाकरू ने जांच रिपोर्ट 28 मार्च 2014 को सौंप दी यानी केन्द्र में मोदी सरकार आने से करीब दो महीने पहले। यह रिपोर्ट कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के पश्चिमी क्षेत्र के रीजनल डायरेक्टर और रजिस्ट्रार आफ कंपनीज के पास आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी गई। राजीव टाकरू की रिपोर्ट थोड़ा तकनीकी है। उसका लब्बोलुआब ये है कि कैसे एल एंड टी वेलफेयर कंपनी को किसी ट्रस्ट के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है। यानी एल एंड टी ने वेलफेयर फाउंडेशन का जो ट्रस्ट बनाया, उससे वेलफेयर कंपनी लिमिटेड को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।

जैसा कि ऊपर जिक्र किया जा चुका है कि ट्रस्ट के पैसे एल एंड टी वेलफेयर कंपनी लिमिटेड में अवैध तरीके से ट्रांसफर किए गए। टाकरू की रिपोर्ट में एक बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि ए. एम. नाइक इस ट्रांजैक्शन का सबसे बड़ा लाभार्थी है। टाकरू रिपोर्ट में इस शख्स को मिस्टर एएमएन लिखा गया है। इस पैसे का इधर-उधर निवेश किए जाने का जिक्र भी रिपोर्ट में है यानी पैसे को शेल कंपनियों में भी निवेश किया गया।

आप लोगों को याद होगा कि भाजपा-आरएसएस और मोदी ने जिस ब्लैक मनी की चर्चा करके सत्ता हथियाई थी, उस ब्लैकमनी के धंधे में एल एंड टी भी तो शामिल थी। लेकिन फर्जी ईमानदार मोदी सरकार ने आजतक एल एंड टी और इसके मालिक ए. एम. नाइक पर कोई कार्रवाई नहीं की। पूर्व वित्त सचिव राजीव टाकरू की जांच रिपोर्ट को हमेशा के लिए दबा दिया गया। अगर इस जांच रिपोर्ट पर मोदी सरकार ईमानदारी से पेश आती तो उसे नाइक को कांग्रेस द्वारा दिया गया पद्मभूषण पुरस्कार छीन लेना चाहिए था। लेकिन मोदी ने तो 2019 में इस भ्रष्ट गुजराती उद्योगपति पर पूरी कृपा बरसाते हुए पद्मविभूषण से नवाज दिया औऱ एक बोर्ड की चेयरमैनी भी दे दी।

नई यूनियन क्या कर पाएगी

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एल एंड टी कर्मचारियों की पुरानी यूनियन ने कर्मचारियों को कदम कदम पर धोखा दिया। इसलिए फरीदाबाद में कंपनी का अस्तित्व खत्म होने के बावजूद कुछ कर्मचारियों ने लॉयल एंड टारगेट लेबर एसोसिएशन बना ली है और इसी के जरिए उन्होंने अपनी लड़ाई छेड़ दी है। इसके अध्यक्ष मुंबई प्लांट से उदय दीक्षित हैं, जबकि फरीदाबाद से हरि कृष्ण इसके महासचिव हैं। उदय दीक्षित और हरि कृष्ण से  मजदूर मोर्चा संवाददाता ने बात की। उन्होंने पांच साल तक कर्मचारियों  का पैसा कंपनी द्वारा हड़पने के तथ्य की पुष्टि की। उन्होंने यह भी माना कि एवं एंड टी की पुरानी यूनियन के सारे नेताओं को ए. एम. नाइक ने ख़रीद लिया था।

दीक्षित ने कहा कि हमने मुंबई में शिवसेना के नेताओं से संपर्क किया था। नेता कम पत्रकार संजय राउत से बात की लेकिन एल एंड टी का मालिक बहुत पहुंच वाला है। हर पार्टी में उसकी पहुंच है। इसलिए कोई भी एल एंड टी के आर्थिक घोटाले और मजदूर विरोधी नीतियों पर बात नहीं करना चाहता। हमने कोशिश की कि कोई भी विपक्षी दल संसद में फरीदाबाद और मुंबई प्लांट के कर्मचारियों की आवाज उठाए लेकिन कोई भी पार्टी हमारी मदद करने को तैयार नहीं है। दीक्षित ने कहा कि यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि जिस कांग्रेस ने डॉ. मनमोहन सिंह के समय में ए. एम. नाइक को पद्मभूषण दिया था, उसी भ्रष्ट शख्स को भाजपा और मोदी सरकार ने न सिर्फ पद्मविभूषण दिया बल्कि अब उसे स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन का चेयरमैन तक बना दिया।

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Mazdoor Morcha
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