दिल्ली पुलिस को छूने से सुप्रीम कोर्ट भी घबराती है

दिल्ली पुलिस को छूने से सुप्रीम कोर्ट भी घबराती है
May 06 10:38 2023

कुश्ती माफिया बृज भूषण अभी बाहर है

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 166ए के मुताबिक किसी भी शिकायतकर्ता की एफआईआर दर्ज न करना अपराध है इसके लिए संबंधित पुलिसकर्मियों को नौकरी से बर्खास्त भी किया जा सकता है। पॉक्सो एक्ट में तो यह प्रावधान और भी कड़ा है। किसी भी अधिकारी को जानकारी मिलने के बावजूद उसका संज्ञान न लेने वाला अधिकारी भी कानून के मुताबिक दोषी बन जाता है। अंतरराष्ट्रीय महिला पहवानों जिन्होंने ओलंपिक पदक जीत रखे हैं ने जब दिल्ली पुलिस के कनाट प्लेस थाने में अपने यौन शोषण की शिकायत दर्ज करानी चाही तो पुलिस ने साफ इनकार कर दिया। एक सप्ताह बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर दिया, मोदी-अमित शाह की पालतू पुलिस ने इस नोटिस को भी कोई खास गंभीरता से नहीं लिया। पेशी वाले दिन दिल्ली पुलिस के वकील ने बड़े आराम से कह दिया कि कोई बात नहीं एफआईआर दर्ज कर लेते हैं। इसके बाद उस दिन शाम तक एफआईआर दर्ज कर ली गई।

प्रश्र यह उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट का लक्ष्य एवं कर्तव्य केवल एफआईआर दर्ज कराना ही रह गया है? इस तरह से एफआईआर तो आए दिन जिला अदालतें धारा 156 (3) के तहत दर्ज कराती रहती हैं। क्या सुप्रीम कोर्ट को एफआईआर दर्ज नहीं करने वाले तथा पॉक्सो एक्ट का संज्ञान न लेने वाले तमाम अधिकारियों के विरुद्ध विधिसम्मत कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी? एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश देते समय माननीय अदालत ने पुलिस को चार मई को आकर बताने के लिए कहा था कि उसने क्या कार्रवाई की। लिहाजा पुलिस ने निश्चित तिथि पर आकर बताया कि एफआईआर दर्ज कर ली है, मानो शिकायतकर्ता और सुप्रीम कोर्ट पर बड़ा अहसान कर दिया हो।

माननीय अदालत की यह पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि केस दर्ज करने के बाद आजतक कार्रवाई क्या की? जब शिकायतकर्ता पहलवानों की ओर से इस बाबत कहा गया तो माननीय अदालत ने उन्हें हाईकोर्ट अथवा निचली अदालतों मेें जाने की मुफ्त सलाह दे डाली। समझा जा सकता है कि अमित शाह की जिस पुलिस को निर्देश देने की हिम्मत सुप्रीम कोर्ट नहीं जुटा पाई उसमें निचली अदालतें भला क्या कर पाएंगी। संदर्भवश सुधी पाठक जानते ही होंगे कि आए दिन सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में पुलिस तफ्तीश के आदेश देती आई है, परंतु इस मामले में माननीय अदालत ने बिलकुल हथियार डाल दिए।

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