फरीदाबाद (म.मो.) जनता को मिलावट रहित एवं शुद्ध खाने-पीने को मिलता रहे, इसके लिये सरकार ने स्वास्थ्य विभाग में एक फूड इन्स्पेक्टर का पद बनाया था, जो जि़ले के सीएमओ के अधीन काम करता था। सीएमओ के कमाऊ पूतों में से एक बड़ा कमाऊ पूत फूड इन्स्पेक्टर भी हुआ करता जो खाने-पीने के सामान बनाने व बेचने वालों से अच्छी-खासी उगाही किया करता था।
हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने सीएमओ की इस लूट-कमाई को बंद करने के लिये फूड इस्पेक्टर का पद समाप्त कर अलग से एक प्राधिकरण (अथॉरिटी) बना दी। इसके तहत हर जि़ले में एक डीओ और उसके अधीन एक डेजिग्नेटिड सैंपलिंग ऑफिसर, एक असिस्टेंड यानी बाबू और एक डाटा इंट्री ऑ प्रेटर नियुक्त कर दिया गया। इस स्टाफ का सीएमओ से कोई ताल्लुक नहीं होगा, सीधे चंडीगढ स्थित प्राधिकरण को रिपोर्ट करेगा।
विज की इस नई व्यवस्था के तहत फऱीदाबाद में एनडी शर्मा बतौर डीओ तैनात है जो पहले फूड इन्स्पेक्टर हुआ करता था। यह द्वितीय श्रेणी का पद है। इसके आधीन एक सरकारी डॉक्टर आदित्य चौधरी बतौर एफएसओ तैनात है। डॉक्टर का पद प्रथम श्रेणी का होता है लेकिन जब लूट-कमाई ही करनी हो तो पद और श्रेणी का क्या देखना, किसी तरह जुगाड़बाज़ी लगा कर इस पद को हथिया लिया जाता है। इस पद पर दोहरा मज़ा यह है कि न तो किसी द$तर में हाजिरी देनी है न कोई काम करना है, बस घर बैठे लूट-कमाई का हिस्सा चुप-चाप मिल जाता है।
असिस्टेंट के पद पर तैनात राजीव कुमार इसी महकमे में चपरासी से क्लर्क और पदोन्नत होकर असिस्टेंट हो गया। इसका जोड़ीदार मनिंदरपाल सिंह डाटा इन्ट्री ऑप्रेटर ठेकेदारी पर है। इसके काले कारनामों की लिस्ट जब सिरसा में बहुत लबी हो गयी थी तो इसे ब्लैक लिस्ट कर काम से हटा दिया गया था; परन्तु राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं जुगाड़बाज़ी के चलते यह न केवल काम पर बहाल हो गया बल्कि लूट-कमाई में नबर वन जि़ला $फरीदाबाद में तैनात हो गया।
इन दोनों की जोड़ी के पास अपनी एक निजी स्विट कार है जिस पर अवैध रूप से अंग्रेजी में लाल पेंट से लिखा है, ”गवर्मेंट ऑ$फ हरियाणा इन दोनों की जोड़ी अपने दोनों अफसरों के आशीर्वाद से बाज़ारों में सैंपल भरने का डरावा दिखा कर दिन भर अवैध वसूली करने में जुटे रहती हैं।
नियमानुसार इन दोनों को तो बीके अस्पताल स्थित अपने दफ्तर में बैठना चाहिये और अपने ऊपर के दोनों अधिकारीयों को दिनचर्या यानी मूवमेंट रजिस्टर में भर कर बाज़ारों में निकलना चाहिये तथा सही ढंग से खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट की रोक-थाम करनी चाहिये, जो ये नहीं करते। कानूनन डीओ अपने हस्ताक्षर से स्लिप जारी करता है जो लिये गये सैंपल पर चिपकाई जाती है। केवल एफएसओ सैंपल लेने को अधिकृत होता है। परन्तु मिलीभगत के चलते डीओ अपने असिस्टेंट को ही कोरी स्लिप हस्ताक्षर कर के दे देता है जिसके बल पर यह जोड़ी फरीदाबाद से पलवल व नूह तक धमाल मचाती है।
प्रति माह 30 सैंपल भर कर लैबोरेट्री भेजने की औपचारिकता ये लोग जरूर पूरी करते हैं। ताकि नौकरी कायम रह सके। इस काम में भी ये लोग दुनिया भर की जुगाड़बाज़ी करते हैं। ऐसे डिब्बाबंद सैंपल लेंगे जो पास होने ही होते हैं लेकिन उनको पास कराने के नाम पर अच्छी-खासी वसूली कर लेेते हैं।
वैसे कम तो लैबोरेट्री में बैठे घाघ भी नहीं हैं। वे अच्छे-खासे पास होने वाले सैंपल को फेल तथा फेल होने वाले को पास करने का धंधा खुलेआम चला रहेहैं।
इसी महकमे में एक कर्मचारी ने अनजाने में इस संवाददाता को बताया कि उन्हें न केवल जि़ले भर के प्रशासनिक अधिकारियों की फटीकें भुगतनी पड़ती हैं बल्कि सबन्धित न्यायिक मैजिस्ट्रेट की फटीक भी करनी पड़ती है।