24 गांव एमसीएफ में शामिल भाजपा की प्रॉपर्टी डीलर लॉबी के दिल की मुराद पूरी, पहले ही कई वहां जमीन खरीद चुके हैं..

24 गांव एमसीएफ में शामिल  भाजपा की प्रॉपर्टी डीलर लॉबी के दिल की मुराद पूरी, पहले ही कई वहां जमीन खरीद चुके हैं..
January 03 13:33 2021

क्या कर लिया नेताओं ने,

24 गांव एमसीएफ में शामिल

भाजपा की प्रॉपर्टी डीलर लॉबी के दिल की मुराद पूरी, पहले ही कई वहां जमीन खरीद चुके हैं

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

फरीदाबाद: आखिरकार हरियाणा सरकार ने बुधवार शाम को फरीदाबाद के 24 गांवों को नगर निगम फरीदाबाद (एमसीएफ) में शामिल करते हुए अधिसूचना जारी कर दी। इसे शहरी स्थानीय निकाय विभाग ने जारी किया है। ये वे 24 गांव थे, जिन्हें खुद को शहर से नजदीक होने के बावजूद अपना वजूद बचाकर रखा था। लेकिन हरियाणा सरकार ने यहां के लोगों की जनभावनाओं को कुचलते हुए इन गांवों को एमसीएफ में शामिल कर दिया। इस घटनाक्रम के बाद भाजपा की प्रॉपर्टी लॉबी ने राहत की सांस ली है, जो इन गांवों को शामिल कराने के लिए बेताब थी।

भाजपा नेताओं के झूठे आश्वासन

24 गांवों को एमसीएफ में शामिल करने का विरोध सबसे पहले पूर्व कांग्रेस विधायक ललित नागर ने किया। 24 गांवों के लोगों ने बैठक कर उसमें ललित नागर को बुलाया। इसके बाद कुछ ग्रामीण एनजीओ ने भी इसका विरोध शुरू किया। कुछ लोगों ने खून से सीएम को पत्र तक लिखे। मामला जब बढ़ा तो भाजपा नेता बीच में कूदे। केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गूर्जर के एजेंट इन गांवों में पहुंचे। कुछ गांवों के लोग मंत्री से आकर मिले। गूर्जर ने उन्हें भरोसा दिलाया कि 24 गांवों को किसी भी कीमत पर एमसीएफ में शामिल नहीं होने दिया जाएगा। लेकिन दरअसल, भाजपा नेताओं की पूरी मिलीभगत से इन 24 गांवों को एमसीएफ में शामिल किया गया है। इसके पीछे भाजपा के उन प्रॉपर्टी डीलर नेताओं की नजर है उन कीमती जमीनों पर है, जो इन गांवों में हैं। कुछ का सौदा भाजपाई प्रॉपर्टी डीलर पहले ही कर चुके हैं। इसलिए कृष्णपाल गूर्जर के नेतृत्व में डीलर लॉबी 24 गांवों को एमसीएफ में शामिल कराने के लिए जुटी हुई थी। गूर्जर का बेटा एमसीएफ में सीनियर डिप्टी मेयर है।

क्यों गैर जरूरी है कदम

एमसीएफ कंगाली की हालत में है। उसके शहर में सडक़ बनाने, सीवर ठीक करने, पेयजल पहुंचाने के लिए फंड नहीं हैं। वह इन 24 गांवों में विकास की गंगा कहां से बहा देगा, इसका जवाब उसके पास नहीं है। लेकिन नेताओं के दबाव में उसे 24 गांवों की लिस्ट बनाकर सरकार के पास अनुमोदन के साथ भेजना पड़ा। 24 गांवों की पंचायत समितियों के पास करोड़ों का फंड है, नगर निगम के अफसरों की नजर उन्हीं फंड पर है। विकास के नाम पर नगर निगम इस फंड को ले लेगा लेकिन देखना है कि इसमें कितना पैसा इन 24 गांवों पर खर्च करेगा।

गांव वाले क्या करें

24 गांवों के किसानों के पास यही मौका है जब वे इसका खुलकर विरोध करने के लिए एकजुट हो सकते हैं। अगर इन गांवों के कुछ किसान ऐसा सोचते हैं कि उनकी जमीन महंगे दामों पर बिकेगी तो उन्हें भ्रम है। उनकी जमीन प्रॉपर्टी डीलर ही खरीदेंगे और महंगी बेचेंगे। बहुत सारे गांवों में भाजपाई नेता – कम – प्रॉपर्टी डीलर जमीन खरीद भी चुके हैं। किसान अगर एकजुट होकर विरोध करें तो शायद हरियाणा सरकार अपने फैसले पर विचार करे।

24 गांवों को शामिल करने का फैसला भी तीन काले किसान कानूनों की तरह ही है। किसी भी किसान संगठन ने सरकार से नया कानून लाने की मांग नहीं की। ठीक इसी तरह 24 गांवों में से किसी भी पंचायत ने खुद के गांव को एमसीएफ में शामिल करने की मांग नहीं की। अगर किसी गांव की पंचायत ऐसा नहीं चाहती है तो इसका अर्थ यह है कि उस गांव के लोग भी एमसीएफ में शामिल नहीं होना चाहते। यानी किसी भी गांव वाले ने अपने गांव को शामिल करने की मांग नहीं की। किसानों को अपना संगठन बनाकर सरकार की इस पहल का शांतिपूर्ण विरोध जरूर करना चाहिए।

बल्लभगढ़ का उदाहरण सामने

बल्लभगढ़ के आसपास के कई गांव नगर निगम में शामिल हैं। क्या किसी अफसर या नेता ने बल्लभगढ़ के आसपास के उन गांवों की हालत देखी है जो एमसीएफ में आते हैं। एमसीएफ अभी तक बल्लभगढ़ शहर को न तो ठीक से सडक़ दे सका है और न ही सीवर, पानी का इंतजाम कर सका है। ऊंचा गांव, आदर्श नगर कॉलोनी जैसे इलाके आज भी ग्रामीण हैं, इन जगहों पर अवैध कॉलोनियां प्रॉपर्टी डीलरों ने जरूर काटी हैं लेकिन किसी भी जगह एमसीएफ किसी तरह की सुविधा मुहैया नहीं करा सका है।

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