फर्जी केस में महिला को 22 दिन जेल कटा दी फरीदाबाद (म.मो.) गांव बदरपुर सैद की 38 वर्षीय महिला सविता पत्नी श्रीपाल को एक फर्जी मुकदमे एफआईआर नम्बर 186 थाना सेन्ट्रल में गिरफ्तार करके 22 दिन की जेल कटा दी गयी। इतना ही नहीं कानून की खुली अवहेलना करते हुए तफ्तीशी थानेदार विजय सिंह ने उन्हें 26 अक्तूबर 2021 को शाम सात बजे घर से उठा लिया था। कानूनन किसी भी महिला को अंधेरा होने के पश्चात पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता जब तक कोई विशेष परिस्थिति न हो। इस मामले में ऐसी कोई परिस्थिति नहीं थी। उक्त एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471 व 120 बी के तहत महिला के पति श्रीपाल व दीपक के विरुद्ध दर्ज की गयी थी, दिनांक 18.5.21 को।
श्रीपाल को पुलिस पकड़ नहीं पाई और दीपक ने दिनांक 22.09.2021 को हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत करा ली है। श्रीपाल पर दबाव बनाने के लिये धारा 120 बी का सहारा लेकर पुलिस ने गुंडागर्दी दिखाते हुए महिला को गैर कानूनी ढंग से गिरफ्तार किया था जबकि एफआईआर में महिला का नाम तक नहीं है। मजे की बात तो यह है कि महिला की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए मैजिस्ट्रेट ने भी तफ्तीशी थानेदार को हडक़ाते हुए पूछा कि इस केस में धारा 467, 468 व 471 कैसे लगा दी? कहने को तो तफ्तीशी के पास कुछ था नहीं, पर अनकही तो यही थी कि उसने तो अपनी कलम से लगा दी और 22 दिन जेल कटा दी, तू हटाता रह जौन सी धारा हटानी है।
इतना ही नहीं हाई कोर्ट ने भी दीपक को अग्रिम जमानत देते हुए यही सवाल उठाया था। अदालते सवाल उठाती रहें परंतु न तो तफ्तीशी का कुछ बिगड़ा और न ही उसके ऊपर बैठे एसएचओ, एसीपी व डीसीपी को किसी ने पूछा तक नहीं कि आखिर यह हो क्या रहा है? यहां सवाल यह भी पैदा होता है कि सब स्याह-सफेद तफ्तीशी ने ही करना है तो एसीपी व डीसीपी के रूप में सुपरवाइजरी अफसरों का बोझ जनता के सिर पर क्यों लाद रखा है? क्या ये लोग केवल मोटे वेतन, अनेकों सुविधाओं और वसूली करने मात्र के लिये लाद रखे हैं?
देर शाम महिला की गिरफ्तारी को लेकर जब ज्यादा ही हो हल्ला मचा तो सीपी ने जांच के नाम पर एसीपी सेंट्रल को महिला के घर पर जांच करने भेजा। वहां एसीपी ने महिला से बयान देने को कहा तो उसने कहा कि मेरा वही बयान है जो मैंने शिकायत में लिख कर दे रखा है। इसके साथ-साथ महिला ने सीसी कैमरे की वह फुटेज भी एसीपी को सौंप दी जिसमें महिला को हिरासत में लिये जाने का दृष्य व समय दर्ज है। फुटेज को झुठलाने का प्रयास करते हुए एसीपी ने कहा कि इसमें दिखाया गया समय तो हेरा-फेरी से दिखाया जा सकता है तो ग्रामीणों ने जवाब दिया कि जो रात को अंधेरा दिख रहा है वह तो हेरा-फेरी से नहीं हो सकता? इस पर एसीपी पूरी बेशर्मी से फर्माते हैं कि सब कुछ सम्भव है। दरअसल जांच का यह नाटक उस तफ्तीशी को बचाने का प्रयास था जिसने यह बदमाशी करी थी। वरना सच्चाई तो सारे थाने को पता है कि महिला को कब थाने में लाया गया था। महिला की बंदी रपट कितने बजे रोजनामचे में दर्ज हुई, सब कुछ तो स्पष्ट है। गौरतलब है कि महिला का नाम एफआईआर में न होने के बावजूद केस दर्ज होने के पांच माह और आठ दिन बाद की गयी है।
झूठे मुकदमे का रचयिता है सरपंच संजीव और उसका थानेदार भाई कमल जीत संजीव गांव ताज्जुपुर का सरपंच है। पूरे गांव में स्ट्रीट लाइट लगवाने के 419848 लाख के फर्जी बिल मामले में तमाम पंचों सहित जेल काट चुका है। इस हेरा-फेरी मास्टर की गिद्ध दृष्टि श्रीपाल की चार कनाल 15 मरले बेशकीमती ज़मीन पर टिकी थी। श्रीपाल मानसिक व बोद्धिक रूप से कमज़ोर होने के साथ-साथ जल्दी भयभीत होने वाला व्यक्ति है। संजीव व उसके तीन साथियों (शेर मोहम्मद, शाहिद मोहम्मद व अरविंद ने)श्रीपाल को नवम्बर 2020 में बहला-फुसला कर शराब पीने बैठा लिया। खूब पिलाने के बाद जब वह डाउन हो गया तो शाहिद मोहम्मद ने उसे कट्टा दिखा कर डराया और उसकी दो कनाल एक मरले जमीन का 26 लाख 65 हजार में इकरारनामे पर दस्तखत करा लिये। इसके एवज में उसे तीन लाख का चेक दिया था जिसके कैश होते ही सारे पैसे भी निकलवा कर हड़प लिये।
करोड़ों की ज़मीन को इस तरह लुट जाना देख कर श्रीपाल के भाई व अन्य ग्रामीण एकत्र होकर थाना भोपानी पहुंचे। वहां कोई सुनवाई न होने पर मामला तत्कालीन सीपी ओम प्रकाश सिंह के पास पहुंचा। उन्होंने थाना तिगांव व एसीपी बल्लबगढ़ जयपाल को जांच सौंपी जो आज तक ठंडे बस्ते में है। इस कामयाब लूट से प्रोत्साहित होकर संजीव गिरोह ने पुन: 12.2.21 को दो कनाल व एक मरले का इकरारनामा 25 लाख का तैयार करके चार लाख का चेक श्रीपाल को देकर तहसील फरीदाबाद सेक्टर 12 में ले आये। इत्तफाक से वहां जसाना गांव का दीपक मिल गया तो उसने श्रीपाल को समझा-बुझा कर वहां से खिसका दिया।
श्रीपाल के जाल में न फंस पाने और चेक लेकर खिसक जाने को लेकर ही थाना सेंट्रल में उक्त मुकदमा नम्बर 186 श्रीपाल व दीपक के विरुद्ध दर्ज करा दिया गया। इस में कहीं भी श्रीपाल की पत्नी सविता का न तो कोई ताल्लुक था और न ही कहीं नाम। एफआईआर में नाम न होने के बावजूद जबरन धारा 120 बी जोड़ कर सविता को गिरफ्तार कर लिया गया। कोई भी अनपढ़ से अनपढ़ आदमी भी समझ सकता है कि पुलिस ने जिन धाराओं में उक्त मुकदमा दर्ज किया है, वे कहीं से भी न तो श्रीपाल पर लगती हैं और न ही दीपक पर; सविता का तो दूर-दूर तक कोई मतलब ही नहीं। परन्तु यह मामूली सी बात न तो थाना सेंट्रल के एसएचओ को नज़र आई और न ही एसीपी सतपाल व डीसीपी मुकेश मल्होत्रा को। लगता है इन सुपरवाइजरी अफसरों को एफआईआर तक पढऩे की कोई जरूरत महसूस नहीं होती। और तो और, जब नीचे सुनवाई नहीं हुई तो मामला सीपी दरबार तक भी पहुंचा; परन्तु वहां से भी अभी तक कोई ठोस कार्यवाही होती नज़र नहीं आई।
सरपंच संजीव द्वारा रचे गये ठगी के इस काम में पुलिस का ‘सहयोग’ बहुत जरूरी था, तो इनका जिम्मा संजीव के भाई कमल का था जो स्थानीय क्राइम ब्रांच में थानेदार है। बेशक उसका पद इतना बड़ा नहीं जो तमाम सम्बन्धित पुलिस अधिकारियों को आदेश दे सके, परन्तु महकमे के भीतर होने के नाते वह हर पुलिसकर्मी की औकात और मोल-भाव तो जानता ही है। बस अपनी इसी जानकारी व पैसे का इस्तेमाल, पर्दे के पीछे रह कर, वह करता रहा।
अन्याय में न्यायपालिका भी पीछे नहीं इस मामले में पुलिस ने तो जो किया सो किया स्थानीय न्यायपालिका ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। यह भी गौरतलब है कोर्ट को भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि मुकदमे में लगाई गई धारायें बिल्कुल गलत हैं, एफआईआर में महिला का नाम दर्ज न होने के बावजूद केस दर्ज होने के पांच माह बाद तफ्तीशी को ऐसी क्या गंभीरता नज़र आ गयी कि सविता को रात में ही गिरफ्तार करना पड़ा? सम्बन्धित मैजिस्ट्रेट ने, क्या तफ्तीशी द्वारा लिखित जिमनियों को पढने की कोशिश की थी? मैजिस्ट्रेट साहब को इस केस में आखिर ऐसा क्या नज़र आया कि एक बेकसूर महिला को 22 दिन तक जेल में बंद रख कर जलील किया? 22 दिनों तक नाजायज तौर पर न्यायिक हिरासत में रखने के लिये क्या सम्बन्धित मैजिस्ट्रेट को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिये? क्या पीडि़ता को इस एवज में उचित मुआवजा नहीं दिया जाना चाहिये?
इस फर्जी केस से फजीवाड़े को समझ कर जब हाईकोर्ट अग्रिम जमानत दे सकती है तो स्थानीय सैशन कोर्ट को इसे समझने व जमानत देने में क्या परेशानी थी? न्यायपालिका के इसी अमानवीय एवं अन्यायपूर्ण व्यवहार के चलते ही पुलिस की रिश्वत के भाव बढते हैं। इसके साथ-साथ न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ तो बढता ही है साथ में पुलिस के संसाधनों का दुरुपयोग भी जारी रहता है।
इस संदर्भ में हाल में आये दो हाईकोर्टों के निर्णय उत्साहवर्धक हैं। तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक सब-इंस्पेक्टर को जेल भेजते हुए डीजीपी को आदेश की कॉपी भी भेजी। साथ में यह निर्देश दिया कि यदि भविष्य में गलत गिरफ्तारियां की जायेंगी तो सुप्रीम कोर्ट के अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में निर्णय के अनुसार सम्बन्धित पुलिस अधिकारी को न्यायालय की अवमानना के लिये सज़ा दी जायेगी। इसी तरह दिल्ली हाईकोर्ट ने एक डीसीपी रैंक के अफसर पर एक दिन की सज़ा और जुर्माना व हर्जाना थोपा है क्योंकि उसने गलत गिरफ्तारी प्रक्रिया अपना कर अर्नेश कुमार निर्णय की अवहेलना की थी। अर्नेश कुमार निर्णय के अनुसार सात वर्ष से कम सज़ा वाले केस में गिरफ्तारी करने से पहले पुलिस को धारा 41(बी)सीआरपीसी के तहत आरोपी को नाटिस देना अनिवार्य होता है। देखना है कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट कब इस दिशा में कदम उठाता है?
आरोपी सविता ने बताया कि करीब आठ बजे जब थानेदार विजय उन्हें लेकर थाने पहुंचा तो एक कमरे में बिठा दिया। करीब एक डेढ घंटे बाद उन्होंने सुना कि कोई विजय को धमका रहा था कि इस वक्त इस महिला को क्यों उठा लाया? अब कहां रखेगा इसको, क्या करेगा इसका आदि-आदि? समझा जा सकता है कि विजय को धमकाने वाला थाने का एसएचओ ही होगा। इसके बाद काफी देर तक विजय कभी इस कमरे में तो कभी उस कमरे में आता-जाता रहा और अपने फोन से किसी के साथ बातचीत करता रहा।
रात्रि करीब 11 बजे के आस-पास विजय उन्हें एक मैजिस्ट्रेट के आवास पर लेकर गया। मैजिस्ट्रेट ने काफी देर तक थानेदार को खूब हडक़ाया कि यह कौनसा टाइम है एक महिला को गिरफ्तार व पेश करने का? भडक़े हुए मैजिस्ट्रेट साहब को शान्त करने के लिये थानेदार ने अपनी नौकरी व बाल-बच्चों का हवाला देते हुए उनके पैर पकड़ लिये, तब कहीं जाकर मैजिस्ट्रेट से कागज पर कुछ लिखवाया। करीब 12 बजे मैजिस्ट्रेट आवास से फारिग होकर विजय उन्हें नीमका जेल ले गया। वहां पर भी जेल वालों ने विजय को साफ मना कर दिया कि गिनती बंद होने के बाद, और वह भी रात को एक बजे वे किसी बंदी को अंदर नहीं ले सकते। बहुत मान-मनव्वल करने व अपनी नौकरी का हवाला दे कर उसने जैसे-तैसे उन्हें जेल में बंद करवाया।