फरीदाबाद (म.मो.) 10 एकड़ के प्लॉट पर बीते करीब 45 साल से 200 बेड का अस्पताल लगभग नाकारा स्थिति में पड़ा है। ईएसआई कॉर्पोरेशन ने यह प्लॉट खरीद कर व बिल्डिंग बना कर हरियाणा सरकार को सौंप दी थी। इसे चलाने के लिये कुल खर्च का मात्र आठवां हिस्सा राज्य सरकार व शेष कॉर्पोरेशन को खर्च करना था। यानी कि यदि कुल खर्च आठ रुपये आता है तो राज्य सरकार को मात्र एक रुपया तथा शेष सात रुपये कॉर्पोरेशन द्वारा दिये जाने का नियम है। इसके बावजूद 200 बेड के इस अस्पताल में कभी भी 15-20 से अधिक मरीज़ दाखिल नहीं रहे। लेकिन अब, जब से डॉक्टर महाजन ने एमएस का पद सम्भाला है तो स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। जिसके चलते यहां 30-40 मरीज़ भर्ती रहने लगे हैं। कारण बड़ा स्पष्ट है न तो यहां पर्याप्त डॉक्टर हैं, न ही अन्य स्टाफ व उपकरण इत्यादि जनरल सर्जरी व हड्डियों की सर्जरी करने वाला कोई सर्जन यहां मौजूद नही है। और तो और रैबीज़ (कुत्ता काटे) के टीके बीते पांच वर्षों से उपलब्ध नहीं है। केवल गायनी, ऑखों के व मेडिसन के मरीज़ ही भर्ती हैं। शेष अन्य सभी प्रकार के सैंकड़ों मरीज़ों को मेडिकल कॉलेज की ओर धकेल दिया जाता है। इतने बड़े प्लॉट व इतनी बड़ी बिल्डिंग में होने वाला यह काम नगन्य सा प्रतीत होता है। ऐसे में, जब सरकार अस्पताल को चलाना ही न चाहे तो डॉक्टर महाजन तो क्या कोई भी डॉक्टर अकेले अपने बूते क्या कर सकता है?
इन हालात में डबल ईंजन की सरकार को मिल कर एक बार्गी यह तय कर लेना चाहिये कि इस अस्पताल को चलाना भी है या नहीं। अगर चलाना है तो ढंग से चलाये। यदि हरियाणा सरकार के बस में इसे चलाना नहीं है तो बिना किसी ड्रामेबाज़ी के यह अस्पताल ईएसआई कार्पोरेशन के हवाले कर देना चाहिये। उसके बाद इसे मेडिकल कॉलेज के साथ जोड़ देना चाहिये। इससे एक ओर तो मेडिकल कॉलेज का विस्तार कार्य पूरा हो जायेगा, दूसरे मज़दूरों को भी अधिक भटकना नहीं पड़ेगा।
इस अस्पताल के अलावा इससे जुड़ी दसियों डिस्पेंसरियों की हालत भी बेहद खस्ता है। यदि इन डिस्पेंसरियों में पर्याप्त दवाईयां उपलब्ध होतीं तो मरीज़ों को मेडिकल कॉलेज की फार्मेसी के सामने लम्बी-लम्बी कतारें नहीं लगानी पड़तीं। कतारों के अलावा जो दवाई मरीज़ को उसके घर के निकट की डिस्पेंसरी से मिल जाये तो उसे कई किलोमीटर चल कर मेडिकल कॉलेज न आना पड़े। लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है कि कार्पोरेशन में पैसे की कोई कमी न होने के बावजूद मज़दूरों को बेहतर सुविधायें देने की ओर किसी भी सरकार का कोई ध्यान नहीं है।
पढे फारसी बेचें तेल हरियाणा सरकार की मूर्खता का एक नमूना सेक्टर-8 के अस्पताल में उपलब्ध है। यहां डाक्टर पुनीत बंसल, एमएस सर्जन होने के नाते इस पद के साथ-साथ थोड़ी बहुत सर्जरी भी कर लिया करते थे। उन्होंने बतौर सिविल सर्जन की पदोन्नति ग्रहण करने से इंकार कर दिया तो उन्हें उठाकर बल्लभगढ़ की एक डिस्पेंसरी में बिठा दिया। विदित है कि इस तरह की डिस्पेंसरी में सर्जन जैसे विशेषज्ञ डाक्टर का कोई काम नहीं होता। लेकिन यह बात प्रशासन में बैठे मूर्खो की समझ से बाहर है। सेक्टर-8 के इसी अस्पताल में डा० हरेन्द्र सिंह माइक्रोबॉयलोजी के विशेषज्ञ हैं लेकिन उनके काम करने लायक यहां कोई लेब्रोरेट्री नहीं है। इसलिए वे एक साधारण एमबीबीएस की भांति ओपीडी में बैठकर मरीज देखते हैं। जाहिर है ओपीडी में बिठाकर उनकी योग्यता एवम् दक्षता का कोई इस्तेमाल नहीं किया जा रहा।