फरीदाबाद (म.मो.) दिनांक 15 अगस्त 1947 से बतौर राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा हर भारतीय के दिल में बसता आ रहा है। हां, अपवादस्वरूप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा हिन्दू महासभा वालों के लिये तीन रंगों का यह झंडा सदैव अपशुकन रहा है। इन लोगों ने न तो कभी इसका सम्मान किया और न ही कभी अपने यहां इसे लहराया।
अंधराष्ट्रवाद की लहर में जनसाधारण को डुबो कर, असल मुद्दों से उसका ध्यान भटकाने के लिये मोदी ने देश भर में तिरंगा यात्राओं व घर-घर तिरंगा की मुहिम छेड़ कर उसे अच्छा-खासा ठगा है। जबसे तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकृत किया गया है, इसके लिये बाकायदा ‘राष्ट्रीय ध्वज कोड’ बनाया गया था। इसमें झंडे का सम्मान बनाये रखने के लिये कुछ नियम तय किये गये थे। झंडे का आकार-प्रकार क्या होगा, किस तरह के कपड़े से बनेगा, कहां-कहां और कैसे-कैसे इसको लहराया जायेगा आदि-आदि सब कुछ उस नियमावली में लिख दिया गया था।
लेकिन जनता के असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिये धूर्त राजनीतिज्ञों ने तिरंगे को ही अपनी राजनीति में लपेट लिया। किसी ने 100 फीट ऊंचा झंडा लगाकर इसका सम्मान बढ़ाने का दावा किया तो किसी ने इसे 200-300 फीट तक पहुंचा दिया। इसे जगह-जगह फहराने के लिये सुप्रीमकोर्ट तक से विशेष अनुमति ले ली गई। समझने वाली बात यह है कि झंडे की ऊंचाई मात्र बढने से किसी देश का सम्मान नहीं बढ़ जाया करता, हां, देश की भोली-भाली जनता को अंधराष्ट्रवाद की अंध गली में धकेलने में यह जरूर सहायक हो सकता है।
एक कुशल एवं दक्ष मदारी की भांति जनता को बरगलाने में माहिर मोदी ने तो इस तिरंगे की मिट्टी पलीत करने में एक कीर्तीमान ही स्थापित कर दिया है। इसके निर्माण एवं बिक्री के ठेके दे कर जहां पार्टी के लिये करोड़ों रुपये की कमाई कर डाली वहीं गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले, तिरंगे की मिट्टी पलीत कराने के लिये इसे बिखेर दिया। इसके परिणामस्वरूप जिस झंडे को देश की आन-बान-शान समझा जाता है, वह आज हर शहर के नुक्कड़ चौराहों पर रखे कूड़ादानों में भरा पड़ा है।
लगता है मोदी ने इस एक तीर से तीन शिकार कर लिये। पहला तो लोगों को अंधराष्ट्रवाद की ओर धकेल कर, दूसरे झंडों की बिक्री से लूट कमाई व तीसरे, संघ जिस तिरंगे को अपशकुन बता कर कभी स्वीकार करने को तैयार नहीं था, उसे गली-गली पैरोंतले रूंधवाकर, कूड़ेदानों में भरवा कर संघ की आत्मा को ठंढक पहुंचा दी।