ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल का गुब्बारा फटने की ओर

ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल का गुब्बारा फटने की ओर
September 13 14:43 2022

मरीजों की संख्या में तीव्र बढोतरी, स्टाफ की भारी कमी

डीन ने दिया इस्तीफे का नोटिस
फरीदाबाद (म.मो.) करो तो बहुत काम है, नहीं तो राम-राम है। एनएच तीन स्थित ईएसआई अस्पताल को जब हरियाणा राज्य सरकार चलाती थी तो कभी 1200 से अधिक ओपीडी नहीं हुई थी और 150 से अधिक मरीज़ भर्ती नहीं थे। आज उसी जगह 4500 की ओपीडी व 750 मरीज़ वार्डों में भर्ती हैं।

इस दौरान कोई मज़दूरों की संख्या नहीं बढ गई है बल्कि कुछ न कुछ घटी जरूर है। इसके बावजूद अस्पताल में मरीज़ों की बढ़ती संख्या का एक मात्र कारण मौजूदा अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं में बढोतरी है। अपने वेतन का साढे छह प्रतिशत ईएसआई को देने के बावजूद भी जो मज़दूर ईएसआई अस्पताल में झांकना तक पसंद नहीं करते थे, अब अधिक से अधिक ईएसआई कवर्ड होकर इसकी चिकित्सा सेवायें प्राप्त करना चाहते हैं। यहां उपलब्ध सेवाओं के लिये न केवल गुडग़ाव, दिल्ली व अन्य क्षेत्रों से भी मज़दूर यहां आने लगे हैं।
विदित है कि यह अस्पताल केवल 510 बिस्तरों वाला है, इसके बावजूद यहां औसतन 750 मरीज़ दाखिल मिलते हैं। इसके लिये वार्डों में अतिरिक्त बेड लगाये जा रहे हैं। करीब 150 बेड का एक अतिरिक्त वार्ड भी तैयार किया जा रहा है। ओपीडी की क्षमता भी 2000 से कम ही आंकी गई थी जो दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। काम करने के जुनून में यहां के डीन डॉ. असीम दास तथा उनकी जुनूनी फेकल्टी ने मज़दूरों की भलाई के लिये ह्दय रोग, कैंसर, न्यूरो सर्जरी तथा अन्य सुपर स्पेशलिटी सेवायें भी शुरू कर दी। जाहिर है इससे मज़दूर अधिक लाभान्वित होने लगे और परिणामस्वरूप अस्पताल का कार्य-भार इसकी क्षमता से अत्यधिक बढऩे लगा। कहने की बात नहीं जब किसी गुब्बारे में हवा भरते ही जायेंगे तो अंत में उसे फटना ही है।

किसी भी अस्पताल में कितना स्टाफ और वह भी किस-किस कैटेगिरी का कितना तैनात किया जायेगा, इसके बाबत ईएसआई कार्पोरेशन की मैनूअल (किताब) में बड़ा स्पष्ट लिखा हुआ है। इसके आंकड़ों को दोहराने की बजाय, सुधी पाठक केवल इतना समझ लें कि मौजूदा तैनाती 300 बिस्तरों वाले तथा 1500 ओपीडी वाले अस्पताल के हिसाब से ही है। यानी कि जिस दिन से 510 बेड का यह अस्पताल चालू हुआ था उस दिन भी यहां स्टाफ की तैनाती आधी ही थी। उसके बावजूद जिस तरह से अस्पताल की सेवाओं का विस्तार हो रहा है और मरीज़ों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, उससे समस्या का विकराल होना तय है।

इसका मूल कारण नई दिल्ली स्थित कॉर्पोरेशन के ‘मूर्खालय’ में बैठे निकम्मे उच्चाधिकारी हैं। जहां एक ओर अस्पताल में कार्यरत कर्मठ फेकल्टी एवं अन्य स्टाफ मज़दूरों को बेहतरीन एवं अधिकतम सेवायें उपलब्ध कराने में प्रयासरत हैं वहीं ‘मूर्खालय’ में बैठे निकम्मे उच्चाधिकारी केवल अस्पताल की राह में रोड़े अटकाने की नई-नई तरकीबें निकालने में जुटे रहते हैं। जब कोई तरकीब न मिले तो फाइल को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।

जिस दिन से यह संस्थान शुरू हुआ है उसी दिन से लगातार अस्पताल की ओर से निगम को बार-बार स्टाफ की कमी के बारे में अवगत कराया जा रहा है, परन्तु उनकी मोटी खाल पर कोई खास असर होता नजर नहीं आ रहा है। यहां 123 क्लर्कों की जगह मात्र 30 क्लर्क ही तैनात हैं।

जाहिर है कि ऐसे में डॉक्टरों को डॉक्टरी करने की बजाय क्लर्की भी करनी पड़ती है। यानी कि दो लाख रुपये के डॉक्टर से 30000 की क्लर्की कराई जा रही है। बीते करीब तीन माह से 491 असिस्टेंट प्रोफेसरों के लिये 3000 तथा 115 एसोसिएट प्रोफेसरों के लिये 1000 आवेदन सेक्टर 16 स्थित कॉर्पोरेशन के क्षेत्रीय कार्यालय में पड़े धूल फांक रहे हैं। जबकि चयनित होकर नियुक्त होने वाले इन डॉक्टरों की यहां सख्त जरूरत है। जरूरत जिनको है होती रहेगी, कॉर्पोरेशन अधिकारियों को इसकी क्या चिन्ता है? इसके अलावा बीते 6 साल से प्रोफेसर पद के लिये कोई आवेदन नहीं मांगे गये। इन पदों के लिये सेवा निवृत प्रोफेसरों को एक-एक साल के लिये रखा जाता है। कमी पूरी न होने पर कुछ प्रोफेसर 44-44 दिनों के लिये ठेके पर भी रखने पड़ते हैं।

इतना ही नहीं, कॉर्पोरेशन की फेकल्टी विरोधी नीतियों के चलते अधिकतर प्रोफेसर साहेबान बेहतर सेवा शर्तों के चलते अन्य संस्थानों की ओर जाने को प्रयत्नशील रहते हैं। अभी हाल ही में यूपीएससी द्वारा चयनित फार्माक्लॉजी व मेडिसन विभाग से तीन प्रोफेसर पलायन कर चुके हैं तथा शीघ्र ही सर्जरी व ईएनटी विभाग से भी प्रोफेसरों के पलायन की तैयारी है। सवाल यह पैदा होता है कि कॉर्पोरेशन को, किसी भी अन्य संस्थान से बेहतरीन सेवा शर्तें प्रदान करने में क्या मौत पड़ रही है? और तो और पिछले दिनों तो फेकल्टी के तबादलों का भी चर्चा चला कर उन्हें परेशानी में डाल दिया गया था।

यदि जानकार सूत्रों की मानें तो, इन हालात से परेशान होकर गत माह डीन ने कॉर्पोरेशन को तीन माह का नोटिस देकर सेवा निवृति मांगी है। अब देखना है कि कॉर्पोरेशन अपने रवैये एवं कार्यशैली में वांछित सुधार करती है अथवा डीन साहब को रुखसत करती है।

चिंतन शिविर तो सरकार करती है पर धरातल पर काम नहीं
बीते माह ईएसआई कॉर्पोरेशन ने सूरजकुंड के निकट स्थित एक पंचतारा होटल ताज विवांता में दो दिन का चिंतन शिविर 17-18 अगस्त को आयोजित किया था। इसमें कॉर्पोरेशन के तमाम अस्पतालों के डीन व चिकित्सा अधीक्षकों को आमंत्रित करके चिकित्सा सेवाओं को और बेहतर एवं विस्तृत करने पर विचार विमर्श किया गया था। इसमें निगम के डीजी सहित तमाम उच्चाधिकारी शामिल थे।

शिविर के दूसरे दिन केन्द्रीय श्रम मंत्री व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री के अलावा उनके मंत्रायलों के उच्चाधिकारी भी शामिल हुए थे। इन बैठकों से अनुमान लगाया जा रहा था कि मोदी सरकार स्वास्थ्य सेवाओं खास कर ईएसआई द्वारा प्रदत्त सेवाओं में कोई मूल-चूल परिवर्तन करने वाली है। इस शिविर के तुरन्त बाद 25-26 अगस्त को तिरुपति में तमाम राज्यों के श्रम मंत्रियों व उनके सचिवों को बुलाकर, उनके द्वारा दी जा रही ईएसआई चिकित्सा सेवाओं पर विचार विमर्श किया गया।

बेशक धरातल पर अभी कुछ होता नजर नहीं आ रहा, लेकिन समझा जाता है कि मोदी सरकार 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कुछ चिंतित तो है। वर्ष 2018 में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर जिस आयुष्मान योजना का ढोल पीटा गया था उसकी विफलता को ढकने के लिये सरकार कुछ न कुछ उपाय खोजने में लगी है।

आईसीयू की आवश्यकता और तमाशा
कोविड काल के दौरान कॉर्पोरेशन अधिकारियों की जब नींद खुली तो उन्हें पता लगा कि अस्पतालों में जिंदगी बचाने के लिये आईसीयू (गहन चिकित्सा इकाई) की भी आवश्यकता होती है। उस वक्त कॉर्पोरेशन के अधिकांश अस्पतालों में यह सुविधा नहीं थी। फरीदाबाद वाले अस्पताल में भी मात्र 30 बेड के आईसीयू यूनिट को ठेके पर देकर कॉर्पोरेशन ने अपना पल्ला झाड़ रखा था। लेकिन वास्तविक जरूरत पडऩे पर ठेकेदार भाग खड़ा हुआ।

कोविड काल के अनुभव को देखते हुए कॉर्पोरेशन ने अपने हर अस्पताल में आईसीयू बनाने का निर्णय लिया। नियमानुसार किसी भी अस्पताल के कुल बिस्तरों के 10 प्रतिशत के बराबर आईसीयू बेड होनी चाहिये। इस हिसाब से फरीदाबाद में 50 बेड का आईसीयू तो है लेकिन इसके लिये आवश्यक स्टाफ नहीं दिया गया।

विदित है कि आईसीयू में मरीज की पूरी देख-रेख खुद अस्पताल को ही करनी होती है। इसके लिये प्रत्येक मरीज़ के साथ एक नर्स अथवा नर्सिंग अर्दली रखा जाता है। कार्पोरेशन ने इसके लिये आज तक एक भी पद स्वीकृत नहीं किया है। ऐसे में समझा जा सकता है कि आईसीयू कैसे चलती होगी।

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Mazdoor Morcha
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