फरीदाबाद (म.मो.) स्टॉफ के अभाव में फरीदाबाद का लेबर कोर्ट मजदूरों को इंसाफ दिलाने की कोशिश में जुटा तो है लेकिन उसे नाकामी ज्यादा मिल रही है। श्रम न्यायालय फरीदाबाद में कुल 5 पद सहायक श्रमायुक्त (एएलसी) के हैं। इन पांच एएलसी अधिकारियों में से 4 को पीडब्ल्यू एक्ट 1936 व ईसी एक्ट 1923 को देखने का अधिकार ही नहीं है। इसी तरह लेबर इंस्पेक्टर की कुल 14 पोस्ट मंजूर हैं जिनमे केवल 6 पदों को भरा गया है। इन 6 पदों पर बैठे अधिकारियों को ही अतिरिक्त प्रभार देकर 14 का कोटा पूरा मान लिया गया है।
सूत्रों से ज्ञात हुआ कि ये एडिशनल चार्ज उसी इंस्पेक्टर को दिया जाता है जो फैक्टरी से वसूली कर ऊपर तक चढ़ावा चढ़ाने में दक्षता रखता हो। जो जितना कमाऊ पूत निकलेगा उसे उतने ही एडिशनल चार्ज मिलते हैं।
डीएलसी सुधा चौधरी इतनी व्यस्त हैं कि 6-6 महीनो से फाइलें धूल फांक रही हैं पर उनके पास उन पर बहस करवाने या आदेश देने की फुरसत ही नहीं है। इतनी व्यस्त अधिकारी को फरीदाबाद के साथ-साथ पलवल जिले का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया है। गरीब मजदूरों को न्याय न मिलने के पीछे न्यायतंत्र में बैठे ऐसे कामचोर अधिकारियों का भरपूर योगदान है।
डीएलसी जिस बिल्डिंग में बैठतीं हैं उसके हाल कोरोना काल में कैसे हैं इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि बिल्डिंग में कहीं भी न तो सेनिटाइजर की व्यवस्था है न रूटीन में होने वाली साफ-सफाई का ही कोई बंदोबस्त है। धूल की मोटी परत बिल्डिंग के फर्श से लेकर हर उस जगह पर जमी है जहां हाथ पाँव न लगे हों। कहीं से मिट्टी हटी है तो उसके पीछे कारण यही है कि कोई बैठ के उठा और उसकी पेंट के साथ मिट्टी भी साफ हो गई। सीढिय़ों पर झाडू लगे महीनो हो गए लगता है और बेसमेंट की पार्किंग में गन्दगी का अम्बार लगा हुआ है।
डीएलसी जिस तीसरी मंजिल पर बैठती हैं उस पर सीढ़ी चढ़ते ही शौचालय से आने वाली बदबू ही बता देगी कि अफसर अपने काम को लेकर कितने गंभीर हैं। जिस भयानक बदबू में एक सभ्य इंसान एक मिनट भी न टिक सके उस स्थान पर बैठ कर डीएलसी और उनका सारा स्टाफ पूरा दिन बिताता है। ऐसे लापरवाह और अव्यवस्थित अधिकारी से सुचारू काम की उम्मीद करना बेवकूफी ही होगी।
बिल्डिंग में तीन लिफ्ट लगी हैं। फोटो खिंचवाने के लिए बिल्डिंग का उद्घाटन तो जल्दी-जल्दी कर दिया गया पर एनओसी लिए बिना ही बैठ गए। इसका नुक्सान यह हुआ कि लिफ्ट चलाने के लिए न बिजली है न ऑपरेटर। ऐसे में लिफ्ट लगभग तीन महीने से बंद पड़ी है। श्रम विभाग में आने वाले अधिकतर मजदूर वे हैं जो फैक्टरियों में अपने हाथ या पाँव गँवा चुके हैं। ऐसी हालत में उन बेचारों को गिरते पड़ते ऊपरी मजिलों की सीढिय़ां चढऩी पड़ती हैं। पर सुध लेने वाला कोई नहीं।
विभाग के ही एक अधिकारी भगत प्रताप को दिल का दौरा पड़ा क्योंकि उन्हें अपने स्वास्थ्य के विपरीत जाकर इन सीढिय़ों को चढऩा पड़ता था। किसी तरह जान बची और उसके बाद महकमे ने उन्हें भूतल पर ही दफ्तर दे दिया पर लिफ्ट का बंदोबस्त नहीं किया गया। ये इतनी अव्यवस्था, गन्दगी और लिफ्ट जैसी बेहद जरूरी सेवा का न होना सिर्फ इसलिए संभव है कि यहाँ आने वाले याचक हाशिये पर पड़े गरीब मजदूर हैं और इनको किसी कीड़े मकौड़े से कम ये श्रम न्यायायलय नहीं समझता है।