व्यंग्य / कर्मठ चौकीदार

व्यंग्य / कर्मठ चौकीदार
April 02 16:48 2023

अनूप मणि त्रिपाठी
अतिप्राचीनकाले अमृतपुरा नामक: एका: ग्राम आसीत् ….
अति प्राचीनकाल में अमृतपुरा नाम का एक गांव था। गांव में नया चौकीदार रखा गया था। नई-नई जब उसकी भर्ती हुई थी, तो सबसे पहले वह गांव की मिट्टी को अपने माथे से लगाकर बोला था कि शपथ मुझे इस मिट्टी की मैं चोरी एक भी न होने दूंगा। गांव वालों को उसकी यह अदा बहुत पसंद आई। गांव के रहने वाले अ ने तो उसकी बाकायदा पीठ थपथपाते हुए ‘जियो मेरे शेर!’ भी बोला।

चौकीदार बहुत मन लगा कर काम करता। रात को जोर-जोर से बांस की बनी सीटी बजाता। भूमि पर लाठी अपनी पूरी ताकत से फटकारता। और कसकर चिल्लाता,’जागते रहो!’
चौकीदार की इस कर्तव्यनिष्ठा के चलते गांव में कुछ लोगों की नींद अवश्य खराब हुई,मगर उन्होंने खुद को इस बात से तसल्ली दी कि चलो गांव तो पूर्ण सुरक्षित है। जल्द ही गांव के लोग चौकीदार की मेहनत के आगे नत हो गए। वे उसके समर्पण को लेकर एक दूसरे से बातें करते और उसकी जमकर प्रशंसा करते। कहते कि पिछला चौकीदार मरियल था। उसकी तो आवाज ही नहीं निकलती थी। और वह जितनी जोर की सीटी बजाता था,उससे तेज तो हमारे गांव की महिलाएं अपने मुंह से सीटी बजाकर बाल-गोपालों को शूशू करा देती हैं।

सब कुछ बढिय़ा चल रहा था। फिर एक दिन गांव में क के घर चोरी हो गई। पहले -पहल किसी को विश्वास ही न हुआ। ऐसे चौकीदार के होते चोरी हो गई! सहस्त्रों स्वर्ण मुद्राएं चोरी में चली गईं। गांववालों ने चौकीदार को घेरा। चौकीदार ने रोते हुए सफाई दी कि गांव के लिए मैंने अपना तन मन सब समर्पित कर दिया और आप सब मुझ पर संदेह करते हो। साथ में उसने यह भी कहा कि वह जब से ड्यूटी पर आया है, उसने एक दिन भी छुट्टी नहीं ली। बाद में उसने यह भी जोड़ा कि जिसको आप सब ने नौकरी से निकाला है, यह उस पिछले चौकीदार का काम होगा!

गांव वालों को लगा कि शायद उनसे गलती हो गई। ऐसे गांव समर्पित चौकीदार पर उन्हें संदेह नहीं करना चाहिए था।
उस रात को चौकीदार ने पूर्व की अपेक्षा और जोर से सीटी बजाई। और जोर से डंडा फटकारा। और जोर से बोला,’जागते रहो!’
कुछ दिन बाद गांव के लोगों ने देखा कि अ के दुआरे कई जोड़े बैल,भैंसे,गाय बंधे हैं। गांव के लोगों ने अ को बधाई दी। अ ने चौकीदार के हाथों में मिष्ठान का डिब्बा थमाया। चौकीदार ने खुशी-खुशी घर-घर लड्डू बांटा जैसे सारा समान उसके घर आया हो! ज्ञ ने तो कह भी दिया कि तू तो लड्डू ऐसे बांट रहा है कि जैसे तेरे दुआरे जानवर बंधे हों! इस पर चौकीदार ने जो जवाब दिया ज्ञ लाजवाब हो गया। उसने कहा कि गांव में किसी की भी तरक्की हो, उसे लगता है उसकी तरक्की हुई है!

अमृतपुरा में लोग अभी चोरी को भूले नहीं थे कि कुछ दिनों बाद गांव में ख के घर में भी चोरी हो गई। लाखों की स्वर्ण आभूषण चोरी में चले गए। गांव के लोगों ने चौकीदार को घेरा। चौकीदार ने अपनी सफाई में कहा कि हो सकता है कि गांव में ही कोई चोर हो! मेरे होते हुए न तो कोई यहां आया है न तो कोई गया है।

चौकीदार की बात सुन लोग सकते में आ गए। यह बात तो उन्होंने सोची ही नहीं। अब गांव वाले एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगे। इतना ही नहीं वे एक दूसरे की निगरानी भी रखने लगे। जोकि इस गांव में पहले कभी न हुआ था।

अगली सुबह गांव शोर से जगा। लोगों को पता चला कि ग के घर की भुसावल के अंदर एक स्वर्ण आभूषण मिला है। यह आभूषण वही था,जो ख के घर से चोरी हुआ था। ग से ख भिड़ गया। उसने बाकी के आभूषण मांगे। ग ने कहा कि उसे खुद नहीं पता कि यह आभूषण यहां कैसे आया।

उस दिन से गांव वालों ने यह कहना शुरू कर दिया कि जब अपने गांव में ही गद्दार बसे हैं, तो एक अकेला चौकीदार क्या कर लेगा।
इस घटना का परिणाम यह निकला कि चौकीदार के कार्य के घंटे बढ़ा दिए गए।

कुछ दिनों बाद गांव के लोगों को पता चला कि अ ने कई बाग और कई खेत खरीद लिए हैं। इस खुशी में अ ने चौकीदार के हाथों गांव में लड्डू बंटवाया। जिसे चौकीदार ने पूर्व की भांति खुशी-खुशी बांटा।
उस रात को चौकीदार ने पहले की अपेक्षा और जोर से सीटी मारी। और जोर से डंडा फटकारा। और जोर से आवाज दी,’जागते रहो!’

गांव का माहौल धीरे-धीरे काफी बदल गया। लोग एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे । छोटी-छोटी बातों पर गलतियां निकलने लगे। तीज-त्योहार पर मिलन-जुटान कम होने लगी। गांव के लोग असहनशील हो चले थे। ऐसे ही चलते माहौल में गांव में फिर चोरी हो गई। इस बार घ के घर चोरी हुई। घ ने म पर शक किया। बात झगड़े-फसाद तक आ गई। आनन-फानन में आपातकालीन बैठक बुलाई गई।
म ने कहा कि ऐसे ईमानदार चौकीदार की क्या जरूरत जब चोरी रुक ही नहीं रही है। क ने कहा कि मुझे तो लगता है कि चौकीदार ही चोर है।
ख ने कहा कि मोहल्ले में जैसे-जैसे चोरियां बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे चौकीदार की आवाज तेज से और तेज होती जा रही है।
ग ने कहा कि कुछ भी कहो लेकिन चौकीदार क्या खूब काम बजाता है।
घ ने कहा कि हो न हो चौकीदार खुद चोर न हो मगर चोर का मददगार अवश्य है।
म शांत ही रहा।
परंतु अ का कहना था कि चौकीदार के न तो परिवार है,न ही कोई बच्चा, फिर वह किसके लिए चोरी करेगा!
अ की इस बात से न चाहते हुए भी सभी को सहमत होना पड़ा और चौकीदार को नौकरी से नहीं निकाला गया।
कुछ दिनों बाद गांव वालों ने देखा कि अ ने गांव के कई घर खरीद लिए हैं और अपने घर का नवनिर्माण कराके उसे बड़ा भी बना लिया है।
जिस दिन अ ने गांव वालों को बड़ा घर बनवाने की दावत दी थी, उस रात को चौकीदार का भतीजा गांव आया हुआ था। रात को टहलते हुए उसने अ के घर को देखा। और अपने चाचा को देखते हुए बोला,’पिछली दफा जब मैं यहां आया था तो अ का घर इतना शानदार नहीं दिखता था! इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली!
चौकीदार ने अपनी तीन उंगलियां मोड़ी और फिर एक उंगली को खोलते हुए जवाब दिया ‘मेहनत’ फिर दूसरी उंगली को खोलते हुए बोला,’मेहनत’ फिर तीसरी उंगली को खोलते हुए कहा,’मेहनत’
‘हां,मगर किसकी!’ भतीजा मुस्कुराते हुए बोला।
चौकीदार चुप हो गया। खंखार के गला साफ करने लगा। फिर उसने पूरी ताकत से सीटी में फूंक मारी। कसकर भूमि पर डंडा फटकारा और बुलंद आवाज में बोला,’जागते रहो!’

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles