फरीदाबाद (म.मो.) जनता की मूल समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिये नरेन्द्र मोदी एक कुशल मदारी की तरह देशवासियों को बंदर की तरह नचाने में काफी महारत रखते हैं। कभी थाली बजवाते हैं तो कभी रात के नौ बजे लाइटें बंद करवा कर दीये जलवाते हैं तो कभी हिन्दू-मुस्लिम का खेल खेलवाते हैं।
इसी श्रृंखला में मोदी जी ने ‘हर घर तिरंगा’ व तिरंगा यात्राओं का पाखंड देश भर में बिखेर दिया है। जो इनके पाखंड में शामिल न हों उसे देशद्रोही बताया जाता है। अब से पहले जब इस तरह की तिरंगा यात्रायें व घर-घर झंडे का अभियान नहीं चलता था तो क्या तमाम भारतवासी देशद्रोही थे? क्या विडम्बना है जिन लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की बजाय अंग्रेज हकूमत के तलवे चाटे और सदैव तिरंगे को अशुभ बताते रहे, वहीं आज देशभक्ति का प्रमाणपत्र देने वाले बन बैठे।
नागपुर से अपनी जायज मांगों को लेकर 168 युवक हाथों में तिरंगा लेकर दिल्ली की ओर पैदल रवाना हुए थे, उनकी तिरंगा यात्रा मोदीजी को पसंद नहीं आई। इसलिये पूरे रास्ते उनके ऊपर हर तरह का पुलिसिया जुल्म ढाया गया। एक ओर जहां कांवडिय़ों पर पुष्प वर्षा के साथ-साथ, पुलिस अफसरों से उनके पैर दबवाये गये वहां इन तिरंगा यात्रियों पर पुलिस ने डंडे बरसाये।
देश भर की जनता उनके इशारे पर किस तरह नाचती है, दर्शाने के लिये मोदीजी ने तमाम सरकारी मशीनरी को काम पर लगा दिया है। अपने तमाम प्रशासनिक काम छोडक़र अधिकारीगण जनता पर झंडे थोपने पर जुटे हैं। कहीं स्कूली विद्याथियों पर तो कहीं राशन डिपुओं पर झंडे थोपे जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल एक संदेश में राशन डिपू वाले कह रहे हैं कि झंडा नहीं खरीदेंगे तो राशन नहीं मिलेगा। यद्यपि प्रशासनिक अधिकारी अपने ऐसे किसी भी फरमान से तुरन्त मुकर जाते हैं क्योंकि ये जबानी होते हैं।
जि़ले भर में शायद ही कोई राशन डिपो वाला ऐसा होगा जो राशन बेचने में डंडी न मारता हो। कोई विरला ही डिपो धारक ऐसा होगा जिसे फूड सप्लाई वाले जब चाहें पकडक़र अंदर न कर दें। लिहाजा अपनी इसी धौंस-पट्टी के बल पर इस विभाग ने प्रत्येक डिपू वाले को 168 झंडे देकर बतौर कीमत उनसे 3200 रुपये अग्रिम वसूल कर लिये हैं। झंडे बिके न बिके उनकी बला से। विदित है कि इन डिपुओं से समाज का निम्न वर्ग ही राशन, खरीदता है। अब देखना है कि कितने गरीब लोग डिपो धारकों के शिकंजे में फसते हैं?