फरीदाबाद (म.मो.) हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा न केवल मिर्जापुर बल्कि बादशाहपुर व प्रतापगढ़ स्थित एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) द्वारा शोधित पानी के जब भी कभी नमूने लिये हैं, वे फेल ही पाये गये हैं। सीवेज पानी की बात तो छोडिय़े, नगर निगम द्वारा सप्लाइ किये जाने वाले पेय जल के नमूने भी आज तक कभी पास नहीं हो पाये। इस सबके बावजूद नगर निगम भी शहर की छाती पर दनदना रहा है और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी।
प्रकाशित खबरों में कहा जा रहा है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नगर निगम के मुख्य अभियंता को इसके लिये कारण बताओ नोटिस जारी किया है। निगम अधिकारियों के लिये इस तरह के नोटिसों के जवाब देना कोई मुश्किल काम नहीं है। उनकी सारी नौकरी इस तरह के नोटिसों के जवाब देने व काम न करने के बहाने बनाने में बीती है। बोर्ड उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बोर्ड तो बोर्ड एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल) ने ही इनका क्या उखाड़ लिया? सुधी पाठक भूले नहीं होंगे कि एक मामले में पूर्व निगमायुक्त अनिता यादव को एनजीटी ने व्यक्तिगत रूप से बुला कर झाड़ा था और 50 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
इसके बावजूद ढाक के वही तीन पात। एनजीटी इन्हें झाड़ता है तो ये वहीं कपड़े झाड़ कर आ जाते हैं। रही बात जुर्माने की तो वह कौनसा इनकी जेब से जाना है, सरकार ने ही देना है और सरकार ने ही लेना है। यह तो केवल जनता को बेवकूफ बनाने की कवायद मात्र है। यही स्थिति अब हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की है। उन्होंने नमूने फेल बता दिये और नगर निगम ने मान लिये, बस खत्म हुई बात।
प्रदूषित पानी यूं ही निकल कर यमुना में गिरता रहेगा। यह मसला कोई एक फरीदाबाद नगर निगम का नहीं है बल्कि देश भर की निगमों द्वारा लगाये गये सीवेज प्लांटों का यही हाल है। इसी के चलते गंगा व यमुना एक्शन प्लान के तहत अरबों-खरबों खर्च किये जाने के बावजूद दोनों नदीयां बद से बद्तर होती जा रही हैं। समझना मुश्किल नहीं, कारण खुला भ्रष्टाचार है।