करनाल में किसान अड़े : खट्टर गरजे तो बहुत जोर से लेकिन बरसने से घबरा गये

करनाल में किसान अड़े : खट्टर गरजे तो  बहुत जोर से लेकिन बरसने से घबरा गये
September 11 08:28 2021

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो

दहाड़  क्यों रहे हो, क्योंकि मुख्यमंत्री हूं; तो बिल में क्यों छिप रहे हो, क्योंकि मैं खट्टर हूं। ठीक ऐसा ही कुछ करनाल के मौजूदा किसान आन्दोलन में देखने को मिल रहा है।

करनाल :बसताड़ा टोल पर हुए बर्बर लाठीचार्ज को लेकर किसानों ने 7 सितम्बर को करनाल के लघु सचिवालय को घेरने की घोषणा की थी। इस घोषणा से पहले किसानों ने सरकार से सिर फोडऩे का आदेश देने वाले आईएएस अधिकारी आयुष सिन्हा के विरुद्ध आईपीसी की धारा 302307 के अन्तर्गत मुकदमा दर्ज करने व मृतक परिवार को 25 लाख व एक नौकरी आदि की मांग की थी। सरकार द्वारा इसे ठुकरा दिये जाने के बाद किसानों ने लघु सचिवालय घेरने का एलान किया था।

यह एक विशुद्ध राजनीतिक मामला था जिसे राजनीतिक तौर तरीकों से सुलझाया जाना चाहिये था। परन्तु राजनीति के खेल में शुरू से अनाड़ी साबित होते आ रहे खट्टर ने इसे ताकत यानी पुलिस बल के भरोसे सुलझाने का निर्णय लेते हुए धारा 144 लागू करके भारी भरकम पुलिस बल तैनात कर दिया। उन्होंने पूरी दहाड़ मारते हुए अपनी खोखली शक्ति का प्रदर्शन करते हुए कहा कि 1 डीआईजी, 5 एसपी, 25 डीएसपी के साथ 40 कम्पनी पुलिस के अलावा केन्द्रीय अर्ध सैनिक बलों की भारी तैनाती कर दी है। इस से पूरा शहर छावनी में बदल गया। जगह-जगह नाके लगा दिये गये। पुलिस बल शहर भर में ठीक वैसे ही गश्त करने लगे जैसे एक बन्दर काम के नाम पर एक डाल से दूसरी डाल पर कूद-फांद करता है। इससे पूरा शहर सकते में आ गया।

लेकिन बंदर की कूद-फांद जैसी पुलिसिया कवायद से किसान कतई नहीं घबराये और 7 तारीख को अपने घोषित कार्यक्रम के अनुसार अनाज व सब्जी मंडी में बारिश के बावजूद एकत्रित होने लगे। शाम होते तक यह संख्या लाखों तक पहुंच गयी। यानी उक्त वर्णित भारी-भरकम पुलिस बल सरकार द्वारा नाफ़िज धारा 144 तक को नहीं बचा पाया। लगता है, अपने अल्प ज्ञान के चलते, खट्टर जी ने सोचा होगा कि धारा 144 आप में ही इतनी शक्तिशाली होती है कि जनता को जमा होने से रोक देती है। उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं था कि इस आदेश के पीछे सरकार की वह ताकत होती है जो लोगों को रोकती है। दिन भर खट्टर का प्रशासन किसानों की बढ़ती भीड़ को निहारता रहा। दोपहर बाद प्रशासन ने उनके प्रतिििनधि मंडल को वार्ता के लिये बुलाया जिसके विफल होने के बाद शाम करीब 5 बजे किसानों ने लघु सचिवालय की ओर मार्च शुरू किया। चार लेन वाली दिल्ली-चण्डीगढ़ सड़क पर, चंडीगढ़ की ओर जाने वाली सड़क पर करीब 7-8 किलोमीटर लम्बा जुलूस बन गया। किसानों की संख्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जुलूस का एक  सिरा लघु सचिवालय पहुंच गया था जबकि दूसरा सिरा अभी अनाज मंडी में ही था। दोनों ओर का यातायात एक ही सड़क पर यानी चंडीगढ़-दिल्ली वाली पर कर दिया गया था।

अनाज मंडी में दिन भर चले भाषणों को सुनने वाले बताते हैं कि किसान पूरी तरह से चार्ज व उग्र रूप धारण किये हुए थे। उन्हें यह कहते भी सुना गया कि उस दिन यानी बसताड़ा टोल पर वे बिल्कुल निहत्थे व आराम से बैठे थे, किसी तरह का कोई तनाव न था। उसके बावजूद बिना किसी उकसावे के पुलिस ने उनके सिर फोड़ दिये, हाथ-पैर तोड़ दिये। आज वे पूरी तरह से तैयार होकर आये हैं और देखेंगे कि खट्टर के पालतू खाकी लठैतों में कितना दम है।

गौरतलब है कि पुलिस के लठैत केवल तभी तक टिक पाते हैं जब तक सामने वाला कमजोर हो, यदि सामने वाले संख्या बल में उनसे 20-25 गुणा अधिक हो, तो ये खाकी लठैत एकदम से भाग खड़े होते हैं। रही बात अद्र्ध सैनिक बलों की तो उनके पास लाठी-डंडे तो होते नहीं, केवल बंदूक होती है और भाग वे इसलिए नहीं सकते कि उन्हें इलाके की कोई जानकारी होती नहीं, लिहाजा वे सीधी गोली चलाते हैं। ऐसे में वे डयूटी मैजिस्ट्रेट को अपने घेरे में एक प्रकार से बंधक बनाकर रखते हैं ताकि वह आदेश से मुकरे नहीं। खट्टर प्रशासन में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह अद्र्ध सैनिक बलों को आगे करता, लिहाजा बिना किसी विरोध के किसान एक के बाद दूसरे बैरिकेटस को तोड़ते हुए आगे बढ़ते चले गये। हां लघु सचिवालय पर जरूर पुलिस ने पानी की धार किसानों पर मारी थी जिसे राकेश टिकैत ने घर पर आने वाले मेहमानों के स्वागत में पानी छिड़कना बताया।

बीते सात साल में खट्टर की ऐसी छीछा-लेदर कोई पहली बार नहीं हुई। इससे चंद माह पहले हिसार में जब वे नकली से कोविड अस्पताल का ड्रामा करने गये थे तो किसानों ने उन्हें बुरी तरह से खदेड़ा था।

उससे पहले घरोंडा के क्षेत्र में पूरेे पुलिसिया जोर लगाने के बावजूद उनका हेलिकॉप्टर किसानों ने उतरने नहीं दिया तथा पूरा पंडाल वे मंच आदि सब जनता ने तहस-नहस कर दिया था। उनकी मुख्य जाट बैसाखी दुष्यंत चौटाला की अपनी खुद की हालत इतनी पतली है कि वे कार से तो क्या हेलिकॉप्टर से भी अपने जाट बाहुल क्षेत्रों के आसपास तक नहीं फटक सकते। यदि खट्टर महाश्य में थोड़ी भी राजनीतिक सूझबूझ होती तो वे इस समस्या को सुलझाने के लिए खाकी लठैतों की बजाय राजनीतिक चातुर्य का सहारा लेते। लेकिन वह चातुर्य न तो बाजार से मिलता और न ही संघ की शाखाओं में।

 

 

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles