बीके अस्पताल प्रमुख का मरीजों से कोई वास्ता नहीं

बीके अस्पताल प्रमुख का  मरीजों से कोई वास्ता नहीं
December 26 02:23 2022

फरीदाबाद (म.मो.) अपने सुसज्जित एवं वातानुकूलित दफ्तर में बैठकर दिहाड़ी पूरी करने वाली बीके अस्पताल की पीएमओ डॉ. सविता यादव के कामों की सही जानकारी पाने के लिये दिनांक 15 जुलाइ 2022 को ‘मज़दूर मोर्चा’ ने एक आरटीआई लगाइ थी। करीब पांच महीने बाद इसका जबाब मिला है।

आरटीआई द्वारा पूछा गया था कि मरीजों को देखना व उनका इलाज करना डॉ. सविता की ड्यूटी है या नहीं? यदि है तो पहली जनवरी 2021 से लेकर 30 जून 2022 तक उनके द्वारा किये गये कामों, यानी कितनी डिलिवरी, कितने सिजेरियन तथा कितने ऑपरेशन किये गये? उनके द्वारा देेखे गये एवं भर्ती किये गये मरीजों का ब्योरा भी मांगा गया।

सहायक जनसूचना अधिकारी द्वारा करीब पांच महीने बाद दी गई सूचना में वे कहते हैं कि मरीज देखना डॉ. सविता की ड्यूटी है और वे देखती भी हैं। सूचना अधिकारी द्वारा दिया गया यह जवाब पूर्णतया असत्य प्रतीत होता है, क्योंकि उनके पास डॉ. सविता द्वारा उपचारित किये गये अथवा भर्ती किये गये किसी भी मरीज़ का कोई ब्योरा एवं लेखा-जाखा नहीं है। ब्योरा तो तब हो न जब डॉक्टर साहिबा ने किसी मरीज को कभी देखा हो।

उक्त आरटीआई के द्वारा ‘मज़दूर मोर्चा’ ने कोई 10-20 वर्ष का लेखा-जोखा तो मांगा नहीं था, केवल डेढ वर्ष का ही हिसाब मांगा था। अस्पताल का न केवल पूरा स्टाफ बल्कि तमाम मरीज़ भली-भांति जानते हैं कि बीते करीब तीन साल से इस अस्पताल में जमी बैठी डॉ. सविता ने कभी किसी मरीज़ को देखना तो दूर अपने दफ्तर से बाहर झांकने तक की भी तकली$फ नहीं की। इसके बावजूद बल्कि सहायक जनसूचना अधिकारी डॉ. सतीश वर्मा को इतना बड़ा झूठ बोलते शर्म तो क्या आनी थी, आरटीआई कानून का भी कोई डर न लगा।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार पीएमओ पद पर नियुक्ति से पूर्व डॉ. सविता चार साल ब्लड बैंक इंचार्ज और उससे पहले चार साल तक जिला फैमिली कल्याण अधिकारी रही हैं। कुल मिलाकर बीते 11 साल के समय में डॉ. सविता ने एक भी मरीज उपचारित नहीं किया। विदित है कि डॉ. साहिबा बहुत अच्छी गाइनी (स्त्री रोग) विशेषज्ञ हैं। इसके बावजूद इन्होंने वह कोई भी काम नहीं किया जिसकी इनसे अपेक्षा की गई थी। सदैव ही, जुगाड़बाजी से इधर-उधर की तैनाती पाकर समय के साथ-साथ अपना हुनर भी गंवाती रही। जाहिर है कि इसका नुक्सान सीधे-सीधे इलाज से वंचित रहने वाले मरीजों को उठाना पड़ रहा है।

डॉ. सविता द्वारा किये जा रहे कार्यों का ब्योरा देते हुए सहायक जन सूचना अधिकारी ने दूसरा झूठ यह बोला कि वे ब्लड बैंक का भी सुपरविजन करती हैं, जबकि वास्तव में ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ. विकास शर्मा हैं। ये डॉक्टर साहिबा यदा-कदा जब भी उनके काम में दखल देने पहुंचती हैं तो डॉ. शर्मा इन्हें धमका कर भगा देते हैं। ऐसे में डॉ. सविता की ब्लड बैंक में क्या सुपरविजन अथवा भूमिका हो सकती है? जाहिर है कि सहायक जन सूचना अधिकारी ने इस बाबत गलत सूचना देने का अपराध किया है।

दी गई सूचना में यह भी कहा गया है कि डॉ. सविता जिले के इस सबसे बड़े अस्पताल की प्रशासनिक ब्यवस्था देखती है। उनकी इस देख-रेख का नमूना अस्पताल परिसर में घुसते ही पता चल जाता है। वाहनों की पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं है। वाहन इतने अस्त-व्यस्त ढंग से खड़े रहते हैं कि संकट की स्थिति में दमकल की गाड़ी भी आसानी से घटनास्थल पर नहीं पहुंच सकती। अस्पताल के कर्मचारी कुछ ऑटो रिक्शावालों से 150-200 रुपये लेकर एमरजेंसी के बाहर खड़ा करवाते हैं ताकि मरीजों को आसानी से झपट सकें। इतना ही नहीं यहां विभिन्न व्यापारिक अस्पतालों के दलाल अपने निजी एम्बुलेंस वाहन लेकर मरीजों को पटाते देखे जा सकते हैं। नियमित मरीजों की बात तो छोडिय़े, एमरजेंसी में आये गंभीर मरीजों तक के लिये मरहम-पट्टी तक का कोई प्रबन्ध नहीं है।

ठेकेदारी में लगे चतुर्थश्रेणी कर्मचारी तक भी डॉ. सविता के खिलाफ झंडा बुलंद किये हुए हैं। उनकी सबसे बड़ी शिकायत यही है कि इनमें से कुछेक को खांमखां का चौधरी बनाकर सुपरवाइजर का दर्जा दे रखा है। कुछ ऐसे भी हैं जो कभी ड्यूटी पर आते ही नहीं हैं, कुछ आते भी हैं तो इधर-उधर मटरगश्ती करके समय गुजार जाते हैं। जाहिर है कि काम न करने वाले हरामखोरों के हिस्से का काम भी उन बेचारों को ही करना पड़ता है जो मेहनत और ईमानदारी से ड्यूटी करते हैं। इनकी सबसे बड़ी चौधरन किरण है। डॉ. सविता की मेहरबानी से वह सदैव ही जच्चा-बच्चा वार्ड में ही तनी रहती है जहां से वह तरह-तरह के हथकंडे अपना कर मरीजों से अच्छी-खासी वसूली करती है।

वैसे तो बीके अस्पताल की हालत शायद ही कभी अच्छी रही हो लेकिन बीते कुछ वर्षों से इसकी हालत बहुत ही दयनीय हो गई है। शौचालय या तो बंद पड़े हैं या सड़ रहे हैं। बीते कई माह से जगह-जगह मरम्मत आदि का चल रहा काम खत्म होने में ही नहीं आ रहा। ओवरऑल सफाई का हाल पूरी तरह से बेहाल है। इस ओर जब पिछले दिनों ‘मज़दूर मोर्चा’ ने डा. सविता ध्यान आकृष्ट करना चाहा तो उन्होंने बुरी तरह से बौखलाते हुए कहा था कि तुम तो मेरे पीछे ही पड़ गये, मैं रोटी भी न खाऊं, मैं किस-किस के पीछे फिरूं, तुम तो मुझे ही टारगेट करने पर तुले हो आदि-आदि…। यही है डॉ. सविता की प्रशासनिक ब्यवस्था, योग्यता एवं क्षमता।

राजनेता देखकर भी अंधे क्यों बने हैं?

शायद ही कोई महीना ऐसा जाता होगा जिसमें स्थानीय सांसद एवं मंत्री कृष्णपाल गूजर, विधायक सीमा त्रिखा अथवा अन्य राजनेता इस अस्पताल में मजमा लगाने न आते हों। कभी आयुष्मान कार्ड, तो कभी चिरआयु कार्ड, तो कभी किसी कमरे आदि का उद्घाटन करने को न आते हों। इस महीने में तो ये सभी लोग कम से कम दो बार यहां किसी न किसी बहाने मजमा लगा कर गये हैं।
जनप्रतिनिधि होने के नाते इन सब नेताओं का दायित्व बनता है कि ये मरीजों के साथ हो रहे व्यवहार को देखें। मरीजों को आ रही कठिनाइयों को दूर करें। हरामखोरी पर उतरे डॉक्टरों एवं कर्मचारियों की नकेल कसें। लोकल परचेज में घोटाले करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करें। परन्तु ये नेतागण केवल अस्पताल के अधिकारियों द्वारा की जाने वाली चापलूसी एवं चरणवंदना से ही इतने गद-गद हो जाते हैं कि पूछे जाने पर कहते हैं ‘सब चंगा है’।
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ये नेतागण जबानी-कलामी चापलूसी के साथ-साथ घपले-घोटालों से होने वाली लूट कमाई से हिस्सा न पाते हों। यदि स्थानीय नेतागण और समय-समय पर छापेमारी का खेल खेलने वाले स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज जनता के प्रति थोड़े से भी संवेदनशील होते तो कम से कम अस्पताल की प्रमुख डॉ. सविता से पूछ लेते कि वे महीने भर में सरकार को करीब तीन लाख के वेतन का चूना लगाने के बदले जनता को दे क्या रही हैं?

 

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Mazdoor Morcha
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