बहादुर महिला खिलाडिय़ों का संघर्ष जिंदाबाद मोदी सरकार का घिनौना ‘चाल-चरित्र-चेहरा’ बेन$काब

बहादुर महिला खिलाडिय़ों का संघर्ष जिंदाबाद मोदी सरकार का घिनौना ‘चाल-चरित्र-चेहरा’ बेन$काब
May 13 10:31 2023

क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा

पिछले 15 दिन से, देश के प्रतिष्ठित और गौरवशाली खिलाड़ी, जो खेल संस्थानों पर, लम्पटों-गुंडों और नेताओं की निकम्मी-नाकारा औलादों के कुंडली मारकर मुखिया बने बैठे होने के बावजूद, देश के लिए, ओलिंपिक और विश्व प्रतियोगिताओंं में मैडल लाए हैं; अभ्यास छोडक़र, जंतर मंतर पर धरने पर बैठे हैं। उनकी तकलीफ़ ये है कि कुश्ती फेड़रेशन का अध्यक्ष, बृज भूषण शरण सिंह, सालों से महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण करता आ रहा ह। जाने कितनी होनहार, प्रतिभावान खिलाड़ी, उसकी लम्पटता, धूर्तता, हिंसक आक्रामकता को बर्दाश्त ना कर पाने की वजह से, घर बैठ चुकी हैं। मोदी सरकार, पूरी निर्लज्जता से इस गुंडे के बचाव में खड़ी है। सत्ताधीशों की खिदमतगार, दिल्ली पुलिस, इस गुंडे की ताबेदारी और आन्दोलनकारी महिलाओं पर रात में, शराब के नशे में हमले कर, अपनी कायरता दिखा रही है। देश की बहादुर, आन्दोलनकारी महिला खिलाडिय़ों को अपना समर्थन दोहराकर, अपना फज़ऱ् पूरा करने के मक़सद से, क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा, फऱीदाबाद ने, 7 मई, शाम 4 बजे, चंद्रिकाप्रसाद स्मारक सामुदायिक केंद्र, आज़ाद नगर, सेक्टर 24 में, सभा की, ‘लखानी चौक’ तक मोर्चा निकाला और वहां सभा कर, मोदी सरकार का पुतला फूंका। इस आक्रोश प्रदर्शन में बड़ी तादाद में मज़दूरों ने तो भाग लिया ही, भीड़-भाड़ वाले लखानी चौक पर उपस्थित सैकड़ों लोगों ने, बड़े उत्साह से शिरक़त की। इससे पहले, क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा का एक 3 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल, आन्दोलनकारी बेटियों का हौसला बढ़ाने के लिए, जंतर मंतर धरने में, दो बार अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है।

देश का जन-मानस, अब ये बात अच्छी तरह जान चुका है कि देश में दो तरह की कानून व्यवस्था चल रही है। एक वह है, जो भाजपा के नेताओं-कार्यकर्ताओं-ट्रोल आर्मी पर लागू होती है। इनके लोगों ने कितना भी जघन्य अपराध किया हो, पुलिस उसकी दखल नहीं लेती। गुस्से में तमतमाए लोग, अगर सडक़ों पर आ जाएँ, तो आलतू-फालतू धाराओं में मुक़दमा दर्ज होता है। लोग हताश होकर सडक़ों से वापस जाने को राज़ी ना हों, तो अपराधी ऐसे गिरफ्तार होता है जैसे वह मूछें मरोड़ता हुआ पिकनिक पर जा रहा हो। अदालतों पर विभिन्न तरह से दबाव बनाते हुए, पहली तारीख पर ही शातिर अपराधी को ज़मानत मिल जाती है और यदि सज़ा भी हो जाए, तो गुनहगारों को जेल से ही रिहा करा लिया जाता है। देश भर में, और खास तौर पर गुजरात और उत्तर प्रदेश में, जाने कितने खूंख्वार दंगाई, बलात्कारी, हत्यारे, ज़हर उगलने वाले ‘भगवाधारी’, समाज को दंगों की आग में झोंक देने वाले शैतान, जेलों से छुड़ाए जा चुके हैं। भाजपा उन्हें फूल मालाएं पहनाकर, मिठाई खिलाकर, अपने चुनाव प्रचार और उन्मादी, विघटनकारी अजेंडे पर लगा चुकी है। कितना भी शातिर अपराधी, भाजपा का पट्टा गले में डालते ही ‘संत’ बन जाता है। यही है, भाजपा की ‘राष्ट्रवादी परियोजना’!!
दूसरा क़ानून, भाजपा-अतिरिक्त सारे देश पर लागू है। जिसके तहत, सरकार के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले किसी भी इंसान को, पुलिस तुरंत गिरफ्तार कर, पहले ये देखती है कि उसका ‘एनकाउंटर’ किया जा सकता है क्या? अगर वह मुमकिन नहीं, तो उसे, यूएपीए या ईडी के, काला-धन-हेरा-फेरी मनी लॉंड्रिंग कानून के तहत एफ आई आर दर्ज कर, अनंत काल के लिए जेल में ठूंस दिया जाता है। ज़मानत तक नहीं होती, जाने कितने बेक़सूर जेलों में बंद हैं, और जिन्हें जेलों में होना चाहिए था वे हुक्काम बने बैठे हैं।

मोदी सरकार अगर देश के संविधान का थोड़ा भी सम्मान कर रही होती, क़ायदे-क़ानून का सम्मान कर रही होती, तो पोक्सो एक्ट के इस आरोपी, निकृष्ट, बृज भूषण शरण सिंह को, जो खिलाडिय़ों के सांस लेने की जांच-पड़ताल करने के नाम पर, महिला खिलाडिय़ों से लगातार, सालों-साल, शर्मनाक घिनौनी अश्लील हरकतें, यौन शोषण करता आ रहा है, ‘बाहुबली-बाहुबली’ कहकर उसका दुस्साहस बढ़ाने की बजाए, उसे तत्काल कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद और अपनी सदस्यता से बर्खास्त करती, और दिल्ली पुलिस, उसे अन्य अपराधियों की तरह घसीटकर देश के क़ानून का सम्मान करना सिखाती।

देश का राजनीतिक रूप से सचेत अवाम तो इनकी असलियत पहले से ही अच्छी तरह जानता है, लेकिन सालों साल से चली आ रही, दकियानूसी-मज़हबी कट्टरता वाली ज़हनियत और ‘राष्ट्रवाद’ के झांसे का शिकार, समाज का एक तबक़ा, भाजपाईयों द्वारा ख़ुद ही, अपनी ‘संस्कृति’ और अपने ‘चाल-चरित्र-चहरे’ का क़सीदा पढऩे से, भ्रमित था। अपनी मेहनत और लगन के बलबूते, शानदार विश्व प्रतियोगिताएं जीतकर, देश का नाम रोशन करने वाली, इन महिला पहलवानों ने, इस भक्त-टाइप तबक़े की आँखें खोल दी है।

गुंडे-लठैत, बृज भूषण शरण सिंह के मामले में ही नहीं, बलात्कारियों को बचाने के मामले में मोदी सरकार का रिकॉर्ड शुरू से ही बहुत शर्मनाक ह। कठुआ के गऱीब गड़रिये की 8 साल की उस मासूम बच्ची का चेहरा कौन भूल सकता है, जिसके साथ मंदिर में पुजारी और उसके गैंग के लोगों ने बे-इन्तेहा हैवानियत कर मार डाला था। भाजपा के दो मंत्रियों ने, हाथ में तिरंगा लेकर उन बलात्कारी हत्यारों के समर्थन में जुलूस निकाला था। लम्पट और यौन-विकृत संपादक, एम जे अक़बर को, जो अपने चैम्बर में, जाने कितनी महिला पत्रकारों को अपनी लम्पटता का शिकार बना चुका था, लम्बे समय तक जेल में रहना चाहिए था, लेकिन वो भाजपा का मंत्री था, इसलिए ‘आज़ाद’ है। चिन्मयानन्द नाम का भगवाधारी, गैंडे की तरह, नंगा होकर लड़कियों से मालिश कराता था। पीडि़त महिलाओं ने अपनी जान पर खेलकर, उसका विडियो बनाया फिर भी भाजपाई तंत्र, उसे बचाकर ले गया। कुलदीप सेंंगर ने तो ना सिफऱ् एक मासूम बच्ची का बलात्कार किया, बल्कि उसके घर वालों को भी मरवा डाला, उन्हें तबाह कर दिया। जन-मानस में उठे क्रोध के उफ़ान के चलते वह गिरफ्तार हुआ।

बिलकिस बानो ने तो इतने ज़ुल्म सहे, जितने शायद ही किसी ने सहे हों। गर्भवती होने के बावजूद उनके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, उनकी मासूम बच्ची को ज़मीन पर पटक कर मार डाला गया, उनके पूरे परिवार को बेदर्दी से क़त्ल किया गया। उन सारे दरिंदों को गृह मंत्री ने, अदालत और जांच एजेंसियों के विरोध के बावजूद जेल से रिहा कराया और भाजपाईयों ने फूल मालाओं से उनका ज़ाहिर सत्कार किया। गुजरात और यू पी में तो जाने कितने बलात्कारी-हत्यारे भाजपाईयों को, उनके अपराधों की सज़ा भुगतने से, पूरी बेशर्मी से बचाया गया है। मंदिरों-मठों-अखाड़ों में तो भगवाधारी गुंडों का जैसे घर का राज है। शायद ही कोई दिन जाता है जब मीडिया में, इन दरिंदों द्वारा महिलाओं को अपना निशाना बनाने की ख़बर न छपती हो।
‘मुस्लिम महिलाओं के साथ उन्हें क़ब्र से निकालकर बलात्कार करना चाहिए’, ऐसी घिनौनी ज़हनियत वाले, जहां ‘माननीय मुख्यमंत्री’ बने बैठे हों, वहां कहने-लिखने को और रह ही क्या जाता है!!

क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा ये ऐलान करता है कि महिला-उत्पीडऩ, दलित-उत्पीडऩ और अल्पसंख्यक-उत्पीडऩ के किसी भी मामले को, ‘हमारे देश में तो ये सब चलता ही है’, कहकर नहीं छोड़ा जाएगा। ऐसी किसी भी वारदात पर, मोर्चा, मज़दूरों को जागरुक कर, उन्हें गोलबंद करेगा और आक्रोश आन्दोलन के लिए सडक़ों पर लाएगा। इस देश को गर्त में जाने से, अब, मज़दूर वर्ग ही बचा सकता ह। समाज के संवेदनशील, गंगा-जमुनी तहज़ीब को क़ायम रखने वाले और इन उन्मादी-दंगाईयों के चंगुल से समाज को आज़ाद कराने में दिलचस्पी रखने वाले जागरूक जन मानस को आंदोलनों से जोडऩे में अपनी पूरी ताक़त लगा देगा। आन्दोलनकारी बहादुर महिला खिलाडिय़ों के सम्मान और न्याय की लड़ाई में, बृज भूषण सिंह के जेल के सीखचों के पीछे पहुँचने तक, उनका साथ दिया जाएगा। ‘ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन ये सरकारी गुंडे, हमारे घरों में घुसकर हमारी बहू-बेटियों की आबरू पर हाथ डालना शुरू कर देंगे’, सभा में शामिल एक नागरिक का ये बयान, पूरे समाज को नींद से झकझोडऩे की पुकार है!

सभा को कामरेड्स नरेश, सत्यवीर सिंह, रिम्पी ने संबोधित किया तथा वीनू, स्वाती, सीमा, शीला देवी, स्नेह, छोटेलाल, अशोक कुमार, प्रदीप, गुड्डू, मुकेश, विजय, बाबूलाल, महेश, श्याम सिंह, अनुज, सोमेश, प्रदीप, भूपेंदर, कालू राम, रामसिंह, राजू, अवधेश, मीराज अली आदि अनेक मज़दूरों ने कार्यक्रम को क़ामयाब बनाने के लिए जोश-ओ-खरोश के साथ बढ़-चढक़र हिस्सा लिया।

पहलवानों के लिये सबक
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति एवं पदक पाने के बाद किसी का भी गौरवान्वित एवं प्रफुल्लित होना स्वाभाविक है। कड़ी मेहनत एवं लगन के साथ-साथ का$फी खर्चा करने के बाद मिलने वाली सफलता पर किसी को भी अपनी जड़ों एवं वर्ग विशेष से दूर नहीं हो जाना चाहिये।
जाहिर है कि इतनी बड़ी सफलता पाने वालों को देश का शासक वर्ग हाथों-हाथ लेता है। उनकी प्रशंसा के साथ-साथ उन्हें भारी-भरकम उपहारों व धन-धान्य से पुरस्कृत करता ह। शासकवर्ग से इतना कुछ पाने के बाद किसी का भी सेलिब्रिटी बन जाना कोई नई बात नहीं है। शासक वर्ग द्वारा यह सब किये जाने के पीछे उसका उद्देश्य यह जताना होता है कि इस सफलता के पीछे सरकार का बड़ा योगदान है जो वास्तव में होता नहीं। इन सेलिब्रिटीज की लोकप्रियता को भुनाने का कोई अवसर, शासकवर्ग हाथ से जाने नहीं देता। और तो और चुनावों में अपनी हार से बचने के लिये, इनको टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार देता है।

इन हालात में, ऐसे सेलिब्रिटीज़ का अपनी औकात एवं वर्ग विशेष को भूल जाना स्वाभाविक है। ये लोग भी

 अपने-आप को शासकवर्ग का ही हिस्सा मानने लगते हैं। इनकी मानसिकता एवं सोच पूरी तरह से सत्ता वाली हो जाती है। इसी के चलते 13 माह तक चले देश के सबसे बड़े (किसान) आन्दोलन के पक्ष में इनके मुंह से एक शब्द भी न फूटा। यही नहीं किसी भी जन आन्दोलन के प्रति इनका सदैव यही रवैया रहता है। पहलवान बबीता फोगाट व हॉकी प्लेयर संदीप सिंह को तो सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने टिकट पर चुनाव मैदान में भी उतार दिया था। यह बात अलग है कि बबीता हार गई और संदीप जीत कर खेल मंत्री बन गया और मंत्री बनने के बाद यौन उत्पीडऩ में लिप्त होकर अपनी औकात भी दिखा दी।

धरने पर बैठी पहलवानों को शायद अब तक यह समझ आ गया होगा कि शासक वर्ग का कोई भी व्यक्ति आज उनके समर्थन में नहीं आ रहा, समर्थन में आ रही है तो वह संघर्षशील जनता जो उन्हें आज भी अपने वर्ग का मानती है। बजरंग पूनिया तो अब भी बजरंग दल को लेकर भाजपा की भाषा बोलता पकडृा गया है। संघर्षरत पहलवान आज भी अपना विरोध केवल कुश्तीसंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह तक ही सीमित रखे हैं। उन्हें उस सत्ता से आज भी कोई एतराज नहीं लगता जो इस सिंह के समर्थन में एकजुट होकर खड़ा है।

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