धन जुटाने का सारा भार मज़दूरों पर ही डाला गया था। उनके वेतन से साढे छ:प्रतिशत ईएसआईसी तभी से वसूलती आ रही है। अपने उसी कटे हुए पैसे के दम पर मज़दूर आज छाती ठोक कर कहता है कि यह अस्पताल उनके पैसे से बना है।

धन जुटाने का सारा भार मज़दूरों पर ही डाला गया था। उनके वेतन से साढे छ:प्रतिशत ईएसआईसी तभी से वसूलती आ रही है। अपने उसी कटे हुए पैसे के दम पर मज़दूर आज छाती ठोक कर कहता है कि यह अस्पताल उनके पैसे से बना है।
June 07 05:04 2020

सरकारों ने एक बड़ी मैडिकल सुविधा का गला घोंट दिया

मज़दूरों के साथ बड़ा धोखा, छीन लिया उनका मेडिकल कॉलेज अस्पताल

 

फरीदाबाद (म.मो.) मज़दूरों के वेतन से साढे छ: प्रतिशत काट कर एकत्रित धन से, केवल उन्हीं के इलाज-उपचार के लिये ईएसआईसी द्वारा बनाया गया मेडिकल कॉलेज अस्पताल बीते शनिवार उनसे पूरी तरह छीन लिया गया। पहले केवल 10वां तल, फिर 9 वां तल और अब पूरे का पूरा 510 बेड का असपताल जिसमें इधर-उधर के मिला कर 650 बेड ईएसआई कवर्ड मज़दूरों से फुल रहते थे, अब इन पर केवल कोरोना संक्रमित मरीज़ ही रहेंगे।

विदित है कि मेडिकन कॉलेज के साथ चलने वाले इस अस्पताल में विभिन्न प्रकार के बीमारियों-सर्जरी, हड्डियों, मेडिसिन, स्त्रीरोग, क्षय रोग, चर्म रोग, दंत रोग, डायलेसिस आदि के अलावा ब्लड बैंक भी है। रेडियोलॉजी विभाग द्वारा दिल्ली, गुडग़ांव और मानेसर तक के मरीज़ों के एक्सरे, एमआरआई व सीटी स्कैन आदि किये जाते थे। मेडिकल शिक्षण संस्थान होने के नाते यहां 500 छात्र-छात्राओं को शिक्षण-प्रशिक्षण के लिये विभिन्न प्रकार के मरीज़ों की आवश्यकता होती है। मरीज़ों के इलाज के माध्यम से इन्हें पढाने के लिये प्रोफेसर यानी विशेषज्ञ  डॉक्टरों की पूरी फेकल्टी तैनात है।

दूसरी ओर कोरोना संक्रमित मरीज़ों के लिये न तो कोई दवा विशेष है, न सर्जरी है न अन्य कुछ करने को। ऐसे मरीज़ को केवल आराम से लिटा कर उसके तापमान व सांस प्रक्रिया पर नज़र रखने के साथ-साथ उसकी प्रतिरोधक क्षमता को बढाने का प्रयास किया जाता है। सांस की अधिक दिक्कत होने पर वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। इस छोटे से काम, जी हां, संख्या ही तो अधिक बढती जा रही है काम (इलाज) तो छोटा सा ही है, के लिये तमाम बड़े एवं विभिन्न प्रकार के इलाज यहां बंद कर दिये गये। जिन विशेषज्ञ डॉक्टरों को उनकी विशेषज्ञता के लिये रखा गया था, वे सब फारिग कर दिये गये। शिक्षण-प्रशिक्षण ले रहे तमाम छात्र भी अब कोरोना के अतिरिक्त किसी अन्य बीमारी के बारे में कुछ नहीं सीख पायेंगे। स्नातक की डिग्री लेकर इन्टर्नशिप कर रहे 100 नवोदित डॉक्टर जो यहां विभिन्न तरह की महारत प्राप्त करना चाहते थे उन सबको उस से वंचित करके केवल कोरोना तक सीमित कर दिया गया है।

मज़दूरों के पैसे से बना अस्पताल

कई नासमझ लोगों को यह बात समझ में नहीं आती कि यह मज़दूरों के पैसे से केवल उन्हीं के लिये कैसे है? बनाया तो इसे भी सरकार ने ही है और सरकार हर काम जनता से वसूले गये टैक्स से ही करती है। यहां पर समझने वाली बात यह है कि जनता से वसूले गये टैक्स से बीके व इस से जुड़े अस्पताल रोहतक, खानपुर, मेवात व करनाल के मेडिकल कॉलेज अस्पताल चल रहे हैं। इन अस्पतालों में इलाज कराने का सबको बराबर का हक है।

लेकिन 1952 में भारत की संसद द्वारा पारित ईएसआईसी एक्ट के द्वारा मज़दूरों को विशेष चिकित्सा सुविधा एवं सामाजिक सुरक्षा देने का प्रावधान किया गया था। इस काम के लिये न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार कोई पैसा खर्च करेगी। इसके लिये धन जुटाने का सारा भार मज़दूरों पर ही डाला गया था। उनके वेतन से साढे छ:प्रतिशत ईएसआईसी तभी से वसूलती आ रही है। अपने उसी कटे हुए पैसे के दम पर मज़दूर आज छाती ठोक कर कहता है कि यह अस्पताल उनके पैसे से बना है।

संदर्भवश स्वास्थ्य सेवा क्योंकि राज्य का विषय है, इसलिये ईएसआईसी ने अपने अस्पताल व डिस्पेंसरियां चलाने का दायित्व राज्य सरकारों को दिया हुआ है। इनमें होने वाले कुल खर्च का केवल आठवां भाग ही, अपने दायित्व के रूप में राज्य सरकार को खर्च करना पड़ता है। मजे की बात तो यह है कि राज्य सरकार के नाकारापन व हरामखोरी को देखते हुए मज़दूरों के पुरज़ोर संघर्ष के बाद यहां मेडिकल कॉलेज अस्पताल का निर्माण हो पाया था। इसके बनाने व चलाने पर राज्य सरकार का एक  पैसा भी नहीं लगा है।

कहां घुस गया मोदी का आयुष्मान भारत?

करीब तीन साल पहले बड़े ढोल-ढमाके के साथ मोदी सरकार ने देश भर के 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रुपये तक का इलाज फ्री कराने का दावा किया था। इसके लिये सैंकड़ों करोड़ विज्ञापनबाज़ी व कार्ड आदि बनाने पर बर्बाद कर दिये। अब मोदी क्यों नहीं अपने उस आयुष्मान भारत को सामने लाते? अभी तो केवल दो लाख का ही आंकड़ा पार किया है कोरोना संक्रमितों ने, जब दो करोड़ का पार करेगा तब मोदी जी क्या करेंगे?

दरअसल ‘मज़दूर मोर्चा’ ने तो उसी वक्त लिख दिया था कि यह ‘आयुष्मान भारत’ कुछ नहीं, केवल जनता को धोखा देने व बीमा कम्पनियों का घर भरने का साधन मात्र है। जनता को चिकित्सा सुविधायें प्रदान करने के लिये जुमलेबाजी व बीमा कम्पनियों की नहीं बल्कि अस्पतालों व उनमें पर्याप्त डॉक्टर, स्टा$फ व आवश्यक उपकरणों की आवश्यकता होती है जिसके लिये सरकार ने कुछ भी तो नहीं किया। देश भर का तो पता नहीं राज्य भर के किसी भी मेडिकल कॉलेज अस्पताल, सामान्य अस्पताल व हैल्थ सेंटरों में आधे से अधिक पद रिक्त पड़े हैं। और तो और जिस ईएसआईसी के पास लाखों करोड़ का खजाना सड़ रहा है उसके अपने संस्थानों में भी न तो आवश्यक उपकरण हैं न पर्याप्त स्टा$फ है और न ही काम करने का कोई माहौल छोड़ा है।

गोल्ड फील्ड मेडिकल कॉलेज अस्पताल कब काम आयेगा?

बीते करीब तीन साल से बंद पड़ा गोल्ड फील्ड मेडिकल कॉलेज अस्पताल, हरियाणा सरकार ने 160 करोड़ रुपये में करीब दो माह पूर्व खरीद लिया था। इसके बावजूद आज तक उस अस्पताल में कोई काम काज शुरू नही किया गया। कोई भी काम काज शुरू करने के लिये सरकार को निर्णय लेने पड़ते हैं। निर्णय लेने के बाद उस पर अमल करने के लिये हाथ-पैर हिलाने पड़ते हैं। लेकिन इस सरकार में न तो निर्णय लेने की क्षमता है और न ही कोई काम करने की, क्योंकि काम के नाम पर सारी सरकार के हाथ-पांव फूल जाते हैं।

इन्हें तो बस पकी-पकाई खाने की आदत है। काम कोई और कर दे, उस पर कब्जा करके अपनी पीठ थपथपाने में ये सरकार माहिर है। अपने सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा कर चुकने के बाद ईएसआई मेडिकल कॉलेज का यह अस्पताल उनकी आंख में कांटे की तरह चुभता आ रहा था। स्थानीय राज नेता व अधिकारी शुरू दिन से इस संस्थान में घुसपैठ व दादागिरी करने का प्रयास करते रहे हैं; लेकिन ईएसआई कार्पोरेशन ने इनकी दाल नहीं गलने दी। परंतु अब करोना की आड़ में बल्कि करोना का भय दिखाकर मज़दूरों के अस्पताल पर कब्ज़ा करने में हरियाणा सरकार कामयाब हो गई है।

बेशक कोरोना एक आपदा है। इसके कारणों पर बहस किये बगैर यह तो माना ही जायेगा कि सभी नागरिकों को इसका इलाज उपलब्ध कराया जाए। परंतु इसका यह अर्थ कदापी नहीं हो सकता कि इस एक बीमारी से जनता को बचाने के लिये उन्हें अन्य बिमारियों से मरने के लिये छोड़ दिया जाय। ‘मज़दूर मोर्चा’ स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सरकार द्वारा लगातार की जा रही कोताही व लापरवाही के बारे में वर्षों से लगातार लिखता आ रहा है। लेकिन निहित स्वार्थों की पूर्ति में जुटी सरकार को कभी भी इस ओर ध्यान देने की फुर्सत नहीं मिली। समय रहते यदि सरकार चेत गई  होती, तमाम रिक्त पदों को भर दिया गया होता व आवश्यक साजो-सामान की आपूर्ति करके अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को चुस्त-दुरुस्त कर दिया होता तो आज यह नौबत न आती।

उपलब्ध जानकारी के अनुसार हरियाणा सरकार ने पीडब्ल्यूडी के माध्यम से गोल्ड फील्ड अस्पताल की साफ सफाई व मरम्मत आदि के लिए टैंडर जारी करवा दिया है। यह काम तीन महीने पहले ही हो सकता था, वैसे तो बीते करीब तीन-चार वर्षो से यह अस्पताल सूना पड़ा है, तब भी इस अस्पताल को अधिकृत किया जा सकता था। लेकिन अब जब आग लगी है तो कुआं खोदने की जरूरत हरियाणा सरकार को महसूस हुई है।

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Mazdoor Morcha
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