फरीदाबाद (म.मो.) बडख़ल झील को लेकर पहली बार किसी अधिकारी ने कोई अक्ल की बात कही है। उपायुक्त विक्रम ने 14 दिसम्बर को इस झील एवं इसके आसपास के क्षेत्र को देख कर कहा कि इसे प्राकृतिक स्रोत यानी कि बरसाती पानी से भरा जायेगा। यह न तो कोई मुश्किल काम है और न ही महंगा।
20-25 वर्ष पहले तक यह झील बरसाती पानी से न केवल लबालब होती थी बल्कि अतिरिक्त पानी को बाहर भी छोड़ा जाता था। उपायुक्त विक्रम ने भी शायद इसी समझ के आधार पर उक्त बयान जारी किया है। उन्होंने बंद हो चुके उन नाले-नालियों को भी देखा जिनके रास्ते झील में पानी आया करता था। पहाड़ में अंधाधुंध खनन करने व रास्ते आदि बनाने के चलते वे सब नाले-नालियां बंद हुई पड़ी हैं। जिस दिन से इन रास्तों से झील में पानी आना बंद हुआ था, उसी समय यदि शासन-प्रशासन इसकी सुध ले लेता तो इतने वर्षों तक झील की ये दुर्दषा न हुई होती।
इस मसले को लेकर ‘मज़दूर मोर्चा’ ने अनेकों बार शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करने का असफल प्रयास किया है। जो बात अब उपायुक्त विक्रम कह रहे हैं इसी बात को पूरे विवरण के साथ ‘मज़दूर मोर्चा’ द्वारा बार-बार प्रकाशित किया जाता रहा है। लेकिन भ्रष्टाचार में डूबा प्रशासन कोई भी वह काम नहीं करना चाहता जो मुफ़्त में या सस्ते में हो जाये। किसी काम का जब तक लम्बा-चौड़ा बजट न बने तो भ्रष्ट अधिकारी काम करने को राजी नहीं।
‘मज़दूर मोर्चा’ के 20-26 जून-2021 के अंक में ‘बडख़ल झील का स्थाई सत्यानाश करने हेतु 83 करोड़ का बजट’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया था (देखें पेज 2)। तब देश के करीब दो दर्जन पर्यावरण-विदों ने करीब दो दिन तक झील एवं इसके आस-पास का सर्वेक्षण करके निगम अधिकारियों को मौके पर बुला कर अपनी सारी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। अधिकारियों के साथ उस वक्त इलाके की विधायक सीमा त्रिखा भी मौजूद थीं। लम्बी-चौड़ी रिपोर्ट के अंत में उन पर्यावरण-विदों के संगठन ने कहा था कि यदि प्रशासन चाहे तो वे बिना कोई पैसा लिये इस झील को बरसाती पानी से, अगले एक-दो साल में न केवल भर सकते हैं बल्कि कभी सूखने भी नहीं देंगे।
लेकिन ऐसा बढिय़ा प्रस्ताव लुटेरे अफसरों व नेताओं को भला क्यों रास आने लगा? उन्होंने इसे सिरे से नकार दिया। इसके बदले 35-40 करोड़ की लागत से यह प्रोजेक्ट शुरू कर दिया जिसके द्वारा शहर के शोधित सीवेज पानी से इसे भरा जायेगा। इन अफसरों द्वारा शोधित जल के सड़े हुए नमूने आसानी से इसी शहर में उपलब्ध हैं। कैसे कोई विश्वास कर सकता है कि बडख़ल झील में डाला जाने वाला जल, उन नमूनों से बेहतर होगा?