मज़दूर मोर्चा ब्यूरो किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट के लिए, न्याय का तकाजा पूरा करने के लिए अपराधी को दंडित करना आवश्यक होता है। इसके बिना अपराधी बेखौफ होकर अपराधों को दोहराता रहता है। वैसे यह भी कहा जा सकता है कि कुछ हालात में अपराधी को मा$फी भी दी जा सकती है। परन्तु सीजेआई(भारत के मुख्य न्यायाधीश) गवई पर भरी अदालत में जूता फेंकना किसी भी सूरत में माफ किए जाने वाला अपराध नहीं माना जा सकता।
सीजेआई गवई मात्र एक न्यायाधीश ही नहीं बल्कि वे एक जाति विशेष से भी आते हैं। उनका अपमान उस जाति विशेष का भी अपमान समझा जाता है जिसे भारत के संविधान ने कुछ विशेष-अधिकार दिए हैं। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय के मुखिया का अपमान देश भर की पूरी न्यायिक व्यवस्था का अपमान भी है। ऐसे अपराधी को गवई द्वारा न केवल तुरन्त पुलिस से छुटवा दिया गया बल्कि उसका जूता भी उसे लौटा दिया। यदि गवई इतने ही बड़े दयालु हैं तो बीते पांच वर्षों से दिल्ली दंगों के तथाकथित अपराधियों उमर खालिद, शरजील इमाम, गुल्फिशा फातिमा, अतहर खान, अब्दुल खालिद सैफी,शादाब अहमद आदि को जमानत नहीं दे सके तो कम से कम उनका ट्रायल ही शुरू करा देते। इसी तरहभीमा कोरेगांव मामले में कई वर्षों से जेल में पड़े बेकुसूर बुद्धिजीवियों को कुछ न्याय दिला देते। लेकिन यहां उनकी दयालुता और न्यायप्रियता लुप्त हो जाती है। ऐसे और भी अनेकों मामले हैं जहां वे सरकार को खुश करने के लिए आंखें मीच लेते हैं।
जूता फेंकने वाले वकील का वेष धारण किए राकेश किशोर एक पुराना संघी होने के साथ-साथ भाजपा से जुड़ा हुआ है। जूता फेंकते वक्त हिन्दुत्व का ठेकेदार बनते हुए उसने कहा कि ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगेÓ इसके अलावा उसका यह भी कहना था कि जस्टिस गवई फैसले लिखते वक्त जो मौखिक टिप्पणियां करते हैं, वे नहीं सहेंगे। विदित है कि गवई से पहले भी कई जजों ने ‘बुलडोजर न्यायÓ के खिला$फ कड़ी टिप्पणियां तो कीं लेकिन किसी एक-आध मामले को छोड़ कर किसी ने भी सरकार के खिला$फ कोई कार्रवाई नहीं की। सीजेआई पिछले दिनों मॉरिशस यात्रा पर गए वहां भी इन्होंने बुलडोजर न्याय के विरुद्ध कड़ी टिप्पणी कर डाली थी। इसके बावजूद कोई भी भाजपाई सरकार अपनी इस हरकत से बाज नहीं आई।
जूता कांड के बाद किसी भी भाजपाई नेता ने इसकी निंदा नहीं की। करीब नौ घंटे बाद पीएम मोदी ने एक हल्का-फुल्का सा ट्वीट करके इस पर दुख प्रकट किया था। लेकिन उनकी ट्रोल सेना ने जमकर गवई का सार्वजनिक अपमान करना शुरू कर दिया। उन पर बनाए गए मीम में उनकी चित्र को नीला रंग से रंग कर उनके गले में एक मटकी लटका दी और सिर पर जूते मारे गए। सर्वविदित है कि किसी जमाने में हिंदुत्ववादियों द्वारा दलितों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता था। ये संघी देश को उसी दौर की तरफ ले जाने के लिए प्रयासरत हैं। जाहिर है कि संघ एवं भाजपा की इस ट्रोल सेना का उद्देश्य सामाजिक एकरसता को समाप्त करके आपस में लड़ाना मात्र है। यह सब इसीलिए हो पा रहा है कि जस्टिस गवई ने जूता फेंकने वाले उस देशद्रोही को कड़ी सज़ा देने की बजाय खुला छोड़ दिया। यदि उसे कड़ी सजा देते हुए जेल भेजा होता और ट्रोल सेना के तमाम सेनानियों को भी उसके साथ जेलों में बंद कर दिया जाता तो समाज में अपमान का यह जहर न फैल पाता।
दरअसल, इस मामले में गवई की भी मजबूरी रही है। जानकार बताते हैं कि वे स्वयं भी कभी आरएसएस से जुड़े रह चुके हैं। अपनी इसी योग्यता के बल पर अक्टूबर 2003 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया था। उसके बाद से तो उनके भाजपा नेताओं से सम्बन्ध और भी घनिष्ठ होते चले गए थे। जानकार बताते हैं कि अमित शाह जब गुजरात के गृहमंत्री थे और उन पर गम्भीर आपराधिक मुकदमे चल रहे थे तो इन्हीं गवई साहब ने उनकी काफी मदद की थी। जज लोया हत्याकाण्ड में तो यह मदद और भी अधिक कीमती साबित हुई। कहा तो यहां तक भी जाता है कि इन्हें सीजेआई के पद तक पहुंचाने के लिए वरिष्ठता क्रम में कुछ हेराफेरी करके इन्हें सूर्यकांत से ऊपर कर दिया गया वरना इनके स्थान पर सूर्यकांत ने सीजेआई होकर दो वर्ष तक कायम रहना था।
जिस संघ-भाजपा ने इन पर इतने अहसान कर रखे हों तो भला उनके खिलाफ मुंह खोलना वे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? ‘हमारी बिल्ली हमी को म्याऊं’ वाली कहावत को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने सोची-समझी योजना के तहत गवई साहब के नट-बोल्ट टाइट कर दिए हैं। इशारा स्पष्ट है कि एकाध महीना जो बचा है उसे चुपचाप भाजपा सरकार की सेवा में लगाते हुए पूरा कर लें, ज्यादा चूं-चपड़ करने की जरूरत नहीं है। सेवानिवृत्ति के बाद जो उपहार मिलना था वह इन्होंने पहले ही अपने भतीजे को बॉम्बे हाई कोर्ट में जज बनवा कर वसूल कर लिया है। जूता फेंकने वाले राकेश किशोर को भी जल्द ही भाजपा कोई न कोई उचित उपहार देने वाली है।