सुशांत की मौत के अगले दिन फरीदाबाद पुलिस कमिश्नर ओ.पी. सिंह सबसे पहले 15 जून को मुंबई पहुंचे। वहां मीडिया से बातचीत में वो सुशांत की मौत को साधारण मौत मानने से इनकार कर देते हैं और आरोप लगाते हैं कि सुशांत को खुदकुशी के लिए बाध्य किया गया है। इसके बाद सारा घटनाक्रम तेजी से घूमता है।

सुशांत की मौत के अगले दिन फरीदाबाद  पुलिस कमिश्नर ओ.पी. सिंह सबसे पहले 15 जून को मुंबई पहुंचे। वहां मीडिया से बातचीत में वो सुशांत की मौत को साधारण मौत मानने से इनकार कर देते हैं और आरोप लगाते हैं कि सुशांत को खुदकुशी के लिए बाध्य किया गया है। इसके बाद सारा घटनाक्रम तेजी से घूमता है।
August 15 06:34 2020

राजनीति : सुशांत की मौत के दो महीने

बाद याद आए खट्टर को उनके पिता

पुलिस कमिश्नर ओ.पी. सिंह की फरीदाबाद में तैनाती के सवा महीने बाद सीएम शोक जताने पहुंचे

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

फरीदाबाद: कुछ तारीखें अपनी कहानी खुद ही बता देती हैं। बॉलीवुड के मशहूर एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून 2020 को मुंबई में खुदकुशी कर ली। 1 जुलाई को सुशांत के जीजा ओ.पी. सिंह को फरीदाबाद में पुलिस कमिश्नर नियुक्त कर दिया जाता है।

लगभग सवा महीने बाद हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को याद आता है कि सुशांत की मौत पर उन्हें भी अफसोस जताना चाहिए। वो 8 अगस्त को फरीदाबाद में ओ.पी. सिंह के सरकारी आवास पर आकर सुशांत के पिता और बहन से मुलाकात कर अफसोस जताते हैं। देखने में यह सामान्य घटनाक्रम है। लेकिन अगर गहराई में जाएंगे तो इसके राजनीतिक निहतार्थ भी हैं।

सुशांत की मौत के अगले दिन ओ.पी. सिंह सबसे पहले 15 जून को मुंबई पहुंचे। वहां मीडिया से बातचीत में वो सुशांत की मौत को साधारण मौत मानने से इनकार कर देते हैं और आरोप लगाते हैं कि सुशांत को खुदकुशी के लिए बाध्य किया गया है। इसके बाद सारा घटनाक्रम तेजी से घूमता है। बिहार के तेजतर्रार नेता पप्पू यादव सबसे पहले इस मामले की सीबीआई जांच की मांग करते हैं। तब तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुशांत की मौत पर शोक जताने तक मौका नहीं मिलता है। लेकिन घटना के तीसरे दिन बिहार सरकार, भाजपा, जेडीयू और केंद्र सरकार एकदम से एक्शन मोड में आ जाते हैं। सुशांत के मौत की खबरें अखबारों से निकलकर टीवी चैनलों में पहुंच जाती हैं।  अब जाकर नीतीश सुशांत को’न्याय’ दिलाने के लिए जान की बाजी लगा देंगे।

14 जून से पहले तक आईपीएस ओ. पी. सिंह की हरियाणा ब्यूरोके्रसी  में दूर दूर तक कोई चर्चा नहीं थी कि उन्हें फरीदाबाद का पुलिस कमिश्नर बनाया जा सकता है। लेकिन अचानक 1 जुलाई 2020 को आदेश आता है और एक अत्यंत लो प्रोफाइल आईपीएस ओ.पी. सिंह को फरीदाबाद का पुलिस कमिश्नर बना दिया जाता है। सुशांत की मौत से रोते बिलखते परिवार के लिए ठीक 16वें दिन यह खुशखबरी आती है। ओ.पी. सिंह फौरन फरीदाबाद आकर पदभार संभाल लेते हैं। सुशांत के पिता के.के. सिंह और सुशांत का डॉगी भी फरीदाबाद आ जाता है।

जो लोग हरियाणा की ब्यूरोक्रेसी और नेताओं के फैसलों के बारे में ठीक से जानते हैं, उन्हें मालूम होगा कि गुडग़ांव और फरीदाबाद में पुलिस कमिश्नर से लेकर एसएचओ तक की तैनाती में किन लोगों के फैसले चलते हैं और कौन उन आदेशों को देता है। फरीदाबाद के किसी मंत्री, विधायक या सांसद की औकात नहीं है कि वह अपनी मर्जी से एसएचओ लगवा ले।

सुशांत की मौत और ओपी की तैनाती

मजदूर मोर्चा के पास इस बात के सबूत नहीं है कि बतौर पुलिस कमिश्नर ओपी सिंह की फरीदाबाद में तैनाती का संबंध राजनीतिक है। लेकिन अगर आप सारे घटनाक्रम पर नजर डालें तो कयास लगाया जा सकता है कि 14 जून को सुशांत की मौत और उसके बाद 1 जुलाई को उनके जीजा की फरीदाबाद में तैनाती का राजनीतिक महत्व है, जिसका सीधा संबंध बिहार चुनाव से है। नीतीश और भाजपा की साझा रणनीति के तहत सुशांत की मौत को बिहार चुनाव में भुनाने का ताना-बाना बुना गया है। सत्तापक्ष के इशारे पर ही टीवी चैनल सुशांत की मौत के मामले में बॉलीवुड को रोजाना जिन्दा रखे हुए हैं। हालांकि किस पुलिस अधिकारी को कहां तैनात करना है, व्यवहारिक रूप में किसी जिले का पुलिस मुखिया किसे बनाना है, यह काम राज्य का सीएम ही करता है। फरीदाबाद में पुलिस कमिश्नर लगाए जाने से पहले तक ओ. पी. सिंह एडीजीपी थे। वह अंबाला, पंचकूला, कैथल आदि जिलों में एसपी पहले रह चुके हैं और अब सीनियर पुलिस अफसर हो गए थे।

खेमका उठा चुके हैं ओपी पर सवाल

हरियाणा के सीनियर आईएएस अशोक खेमका ने जनवरी 2020 में ओ. पी. सिंह की नॉन पुलिसिंग काम के लिए सवाल उठा चुके हैं। हरियाणा सरकार ने ओ.पी. सिंह को खेल और युवा मामले वाले विभाग में प्रमुख सचिव तैनात किया था। खेमका ने ओ.पी. की तैनाती को गैरकानूनी और गलत बताते हुए कहा था कि जिन पदों पर आईएएस तैनात किए जाते हैं, उन पदों पर आईपीएस की तैनाती क्यों की गई है। प्रमुख सचिव का पद वैसे भी सीनियर आईएएस के लिए बना है। बता दें कि खुद खेमका इस पद पर इसी विभाग में रह चुके थे। लेकिन उनके बाद खट्टर सरकार इस पद पर ओपी को ले आई। खास बात यह है कि जनवरी में गृह मंत्री अनिल विज ने भी कहा था कि पुलिस विभाग अफसरों की कमी से वैसे भी जूझ रहा है। इसलिए ओ.पी. सिंह समेत जिन चार पुलिस अफसरों को नॉन पुलिसिंग काम में लगाया गया है, उनसे वो काम लेकर उन्हें पुलिस विभाग में भेजा जाए। ओ.पी. सिंह को 22 जनवरी 2020 को जब खेल विभाग का प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाया गया था तो उस समय वो मुख्यमंत्री कार्यालय से संबद्ध थे।

खट्टर देर से क्यों आए

सुशांत सिंह राजपूत की मौत 14 जून को हुई, ओ.पी. सिंह फरीदाबाद में 1 जुलाई को तैनात किए गए लेकिन मुख्यमंत्री को सवा महीने बाद शोक जताने का मौका मिला। लेकिन सोशल मीडिया पर यही माना गया कि खट्टर सिर्फ बिहार चुनाव में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को फायदा पहुंचाने की नीयत से ही सुशांत के पिता के पास दो महीने बाद पहुंचे। सुशांत की मौत का महत्व ही बिहार सरकार और वहां के मुख्यमंत्री और भाजपा के रणनीतिकारों को 17 जून को ही पता चला। पप्पू यादव अब पछता रहे होंगे कि अगर उन्होंने सीबीआई जांच की मांग सबसे पहले नहीं की होती तो इस मुद्दे को इतनी हवा नहीं मिलती। बिहार के लोग भी अब धीरे-धीरे समझ रहे हैं कि सुशांत का मामला सीधे-सीधे बिहार चुनाव के मद्देनजर उछाला जा रहा है। सुशांत के पिता के.के. सिंह से खट्टर की मुलाकात के दो दिन बाद सीबीआई अधिकारियों ने फरीदाबाद आकर के.के. सिंह का बयान दर्ज किया है।

view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles