मज़दूर मोर्चा ब्यूरो भारतीय जनता पार्टी बखूबी समझती है कि ऐलनाबाद विधासभा क्षेत्र में न पहले कुछ उनके पल्ले था और न आज है। आज तो कुछ भी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता, बल्कि जो थोड़ा-बहुत दो साल पहले था उसका भी सफाया हो चुका है। कूटनीतिक समझदारी का इस्तेमाल करते हुए मौजूदा उपचुनाव से बच निकलने की अपेक्षा भाजपा ने हरियाणा के बदनामतरीन एवं पिटे हुए मुहरे गोपालकांडा के भाई गोविंद को अपना प्रत्याशी बनाकर खड़ा कर दिया। इसकी अपेक्षा भाजपा कह सकती थी कि यह सीट न पहले हमारी थी और न आज हमारी है। अभय चौटाला ने इस सीट से त्यागपत्र देकर सीट खाली की है, वही दोबारा इस पर चुनाव लड़ लें।
अभय चौटाला पर सवाल उठता है कि उन्होंने क्यों तो त्यागपत्र दिया था और अब क्यों दोबारा इसी सीट से विधायक बनने को लालायित हैं? जो किसान आन्दोलन उस वक्त चल रहा था, आज तो वह और भी गंभीर स्थिति में जा पहुंचा है। लगता है कि अभय नाखून कटाकर शहीद होने का प्रयास कर रहे थे। वे समझते होंगे कि उनकी इस ‘कुर्बानी’ पर राज्यभर के किसान उन पर फ़िदा हो जायेंगे जिससे सत्ता प्राप्ति का रास्ता उनके लिये खुल जायेगा। लेकिन ऐसा कहीं से भी प्रतीत नहीं हो रहा।
विधायक पद से त्यागपत्र को लेकर कांग्रेस का मानना तो यह है कि अभय सिंह, उसके द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव पर खट्टर के विरुद्ध मतदान नहीं करना चाहते थे। अर्थात अभय के मन में कहीं न कहीं भाजपा सरकार के प्रति मोह छिपा हुआ है जिसे उन्होंने त्यागपत्र देकर बेपर्दा कर दिया। भाजपा के प्रति चौटाला खानदान का मोह एवं गठजोड़ किसी से छिपा हुआ नहीं है। स्वर्गीय देवी लाल ने 1977 में तो ओम प्रकाश चोटाला ने 1998 में भाजपा से गठबंधन करके सरकार बनाई थी। इतना ही नहीं पंजाब में भाजपा की सहयोगी एवं धर्म की राजनीति करने वाली अकाली पार्टी से भी इस परिवार की पूरी घनिष्ठता रही है।
ऐसे में यदि दुष्यंत ने सत्ता की भूख मिटाने के लिये भाजपा से गठबंधन कर लिया तो क्या गुनाह कर दिया? राजनीतिक समझ रखनेवालों का मानना है कि यदि दुष्यंत की जगह अभय सिंह के पास 10 विधायक होते तो वे भी सत्ता की मलाई चाटने भाजपा के चरणों में जा पड़ते। लगता है कि आज का किसान आन्दोलन इस राजनीतिक सच्चाई को समझने लगा है। इसी समझदारी के चलते जींद के खटकड़ टोल प्लाजा पर धरने पर बैठे सैंकड़ों किसानों ने ओम प्रकाश चौटाला को बोलने के लिये अपना माइक देने से इनकार कर दिया। करीब 10 मिनट तक इन्तजार करने के बाद ओम प्रकाश अपनी गाड़ी पर लगे माइक से ही किसानों को राम-राम कह कर चलते बने।
इन मौजूदा हालात को देखते हुए अभय एवं ओम प्रकाश चौटाला के लिये ऐलनाबाद की राह आसान नहीं है। बेशक गोविंद कांडा की तरह इन्हें धक्के तो न मारे जाएं लेकिन वोट भी ज्यादा मिलने की सम्भावनायें नज़र नहीं आती। ऐसे में कांग्रेस पार्टी जरूर मुंह धोकर सत्ता के निकट पहुंचने के ख्वाब देख सकती है, परन्तु किसान नेता गुरनाम सिंह चिढूनी उनका यह हसीन ख्वाब तोडऩे के लिये वहां पर डटे खड़े हैं। इसके पीछे किसान आन्दोलन की समझ है कि कांग्रेस ने ही कौन से भले काम किसानों या अन्य मेनतकश वर्ग के लिये कर छोड़े थे? भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही लुटेरी पूंजीं के लिये नीतियां बनाने व क्रियान्वित करने वाली हैं।