75 साल में सरकारी सेवाओं का हो गया सत्यानाश, बनाना पड़ा आरटीएस आयोग : कितना सफल?

75 साल में सरकारी सेवाओं का हो गया सत्यानाश, बनाना पड़ा आरटीएस आयोग : कितना सफल?
October 02 18:37 2021

फरीदाबाद (म.मो.) सन् 1947 में मिली तथाकथित आज़ादी के बाद धीरे-धीरे नागरिकों को मिलने वाली सरकारी सेवाओं को पाना कठिन से कठिनतर होता चला गया है। नौबत यहां तक आ गयी कि नागरिकों को अपने कामों के लिये सम्बन्धित विभाग के एक बाबू से लेकर दूसरे बाबू तक चक्कर लगा कर उनकी भेंट-पूजा कर के अपने काम निकलवाने पड़ते हैं। सरकारी बाबू किसी का कोई काम ऐसे करते हैं जैसे वे उस पर एहसान करते हों। छोटे से छोटे काम के लिये लोगों को महीनों बाबुओं के चक्कर लगाने पड़ते हैं।

पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूब चुके अपने छोटे-बड़े बाबुओं की नकेल कसने में असमर्थ सरकार ने करीब 8-10 वर्ष पूर्व राइट टू सर्विस आयोग का गठन कर दिया। यानी जो बाबू एक निश्चित समयावधि में काम को न निपटाये तो उसके विरुद्ध इस आयोग में शिकायत दायर की जाय। यह आयोग शिकायत की जांच करके सम्बन्धित बाबुओं के विरुद्ध कार्यवाही करेगा। आयोग में अफसरों की नियुक्तियां हो गयीं, काम करने के नियम भी बन गये लेकिन किसी भी सरकारी कार्यालय के काम-काज में कोई सुधार नहीं हुआ। और तो और अधिकतर जनता को यह भी पता न चला कि इस तरह का कोई आयोग भी है। परंतु तीन माह पूर्व इस आयोग के आयुक्त के तौर पर टीसी गुप्ता तैनात हुए हैं, इस आयोग की गतिविधियां सामने आने लगी हैं। आम जनता को जागरूक करने तथा विभागीय अधिकारियों को चेतावनी देने के लिये टीसी गुप्ता ने 20 सितम्बर को यहां एक कार्यशाला का आयोजन किया। इसके द्वारा उन्होंने जहां लोगों को उनके अधिकारों और आयोग के महत्व के बारे में बताया वहीं विभागीय अफसरों को चेताया, या तो वे सुधर जायें वरना दंडात्मक कार्यवाही के लिये तैयार रहें।

इसके विरोध में बिजली कर्मचारी यूनियन ने एक विशेष बैठक करके इस आयोग की कड़ी आलोचना करते हुए इसे कर्मचारी विरोधी बताया। यानी यूनियन चाहती है कि वे लोगों के काम भी न करें और कोई उनकी खबर भी न ले। संदर्भवश इस संवाददाता ने खुद अपने सेक्टर 14 स्थित घर के लिये सोलर पावर वाले एक मीटर के लिये आवेदन किया था। करीब एक माह चक्कर कटाने के बाद बड़ी मुश्किल से वह मीटर लगा। इसकी शिकायत जब आरटीएस में की गयी तो सम्बन्धित एसडीओ को पसीने आने लगे। आयोग द्वारा एसई से रिपोर्ट मांगी गयी तो उसमें एसडीओ को दोषी ठहराया गया। अब देखना है कि एसडीओ को आयोग से क्या प्रसाद मिलता है।

यहां एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि हर महकमे में अफसर के ऊपर बड़ा अफसर बैठा है। क्या बेईमान व कामचोर अफसर की खींचाई ऊपर वाला अफसर नहीं कर सकता?

किसी जमाने में ऊपर वाले अफसर किया भी करते थे परन्तु धीरे-धीरे वे भी नाकारा और बेईमान अफसरों के साझेदार होते चले गये। ऐसे में इस तरह के आयोग की जरूरत महसूस होने लगी। परन्तु देखने वाली बात यह है कि आयोग में भी तो उसी अफसरशाही के लोग तैनात होंगे जब वे भी भ्रष्टाचार में साझेदार हो जायेंगे तो क्या होगा?

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Mazdoor Morcha
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