फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) मजदूर बहुल जिले का श्रम विभाग श्रमिकों की सेहत के प्रति गंभीर नजर नहीं आ रहे है। अधिकारी फैक्टरियों का भौतिक निरीक्षण किए बिना ही कागजों पर कामगारों की स्वास्थ्य जांच से लेकर उनके काम करने की स्थितियां बेहतर घोषित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। जाहिर है कि फैक्टरी मालिकों के हक में सब कुछ ओके होने की रिपोर्ट सुविधा शुल्क के बिना मुमकिन नहीं होती, मज़दूर मरें या जिएं फैक्टरी मालिक और श्रम विभाग के अधिकारी दोनों को इससे कोई मतलब नहीं।
श्रम विभाग के फैक्टरी अनुभाग पर फैक्टरियों में मजदूरों के स्वास्थ्य से लेकर काम की बेहतर परिस्थितियां, उनके सुरक्षा के मानक लागू करवाने का जिम्मा है। फैक्टरी अनुभाग में इसके लिए बाकायदा स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विंग है जिसमें अधिकारियों की फौज तैनात है।
नियमानुसार इन अधिकारियों को समय-समय पर फैक्टरी में जाकर यह सुनिश्चित कराना होता है कि मजदूरों को काम की बेहतर परिस्थितियां जैसे स्वच्छ हवा, रौशनी, स्वच्छ पेयजल, काम करने की पर्याप्त जगह उपलब्ध, सुरक्षा उपकरण आदि मुहैया हों। मजदूरों की संख्या के आधार पर फैक्टरी में मूत्रालय और शौचालय हों, इनमें सफाई की उचित व्यवस्था हो। फैक्टरी की कैंटीन में मजदूरों के लिए उचित दर पर पौष्टिक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए जाएं।
इसके अलावा मजदूरों की फैक्टरी में ही स्वास्थ्य जांच कराने का जिम्मा भी इस विंग पर है। इसमें तैनात चिकित्सकों की जिम्मेदारी है कि समय समय पर फैक्टरियों में जाकर टीबी और इस जैसी अन्य गंभीर या संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त मरीजोंं की पहचान कर उनका इलाज शुरू कराएं। इसके लिए विभाग के पास एक मोबाइल मेडिकल जांच वैन थी जो बीसियों साल से इस्तेमाल नहीं होने के कारण खराब हो गई। वैन में एक्सरे, थूक, बलगम आदि की जांच की व्यवस्था थी। सच्चाई यह है कि जब वैन ठीक थी तब भी फैक्टरियों में स्वास्थ्य जांच के नाम पर खानापूर्ति होती थी और फैक्टरी मालिकों को सब बढिय़ा होने का सर्टिफिकेट थमा दिया जाता था। अधिकतर मामलों में तो फैक्टरी कार्यालय में बैठे-बैठे ही सबकुछ ओके होने की रिपोर्ट तक तैयार कर दी जाती रही है।
फैक्टरी मजदूर जोखिमपूर्ण और अस्वास्थ्यकर माहौल में काम करने को मजबूर हैं। मेडिकल जांच वैन खराब होने के कारण बीसियों साल से फैक्टरी श्रमिकों की टीबी, श्वास रोग और इस तरह की गंभीर बीमारियों की जांच नहीं हुई है। फलस्वरूप फैक्टरियों में टीबी के मरीज श्रमिकों की संख्या में इजाफा होने लगा जो अभी भी जारी है। संक्रामक बीमारी होने के कारण यह बीमारी एक मजदूर से दूसरों में फैलने लगी।
संक्रमित मजदूर भी दिहाड़ी न मर जाए इसलिए जांच नहीं कराते। फैक्टरी मालिक भी अपने मजदूरों की सेहत के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं समझते उन्हें तो बस काम से मतलब है मजदूर चाहे टीबी का शिकार हो या किसी अन्य बीमारी से उन्हें इससे कोई लेना देना नहीं।
श्रम विभाग के अधिकारियों को चाहिए कि वह मजदूरों को फैक्टरियों में बेहतर और स्वास्थ्यकार काम का माहौल उपलब्ध कराने के लिए फैक्टरी मालिकों पर दबाव बनाएं।