स्वस्थ और भ्रष्टाचार मुक्त समाज पर वक्ता खुद सवालों के घेरे में

स्वस्थ और भ्रष्टाचार मुक्त समाज पर वक्ता खुद सवालों के घेरे में
May 04 17:04 2022

24 अप्रैल रविवार को आरटीआई एक्टिविस्ट वरुण श्योकंद और बाबा बने रामकेवल के भ्रष्टाचार विरोधी मंच व ब्रह्माकुमारियों ने मिलकर एक सम्मेलन का आयोजन किया। विषय था ‘‘स्वस्थ और भ्रष्टचार मुक्त समाज बनाने के लिये सुझाव’’। इस अवसर पर कोविड योद्धा और समाज सेवियों को भी सम्मानित किया गया।

सम्मेलन का आयोजन एनआईटी में नीलम बाटा रोड पर स्थित ब्रह्माकुमारी भवन में किया गया। हालांकि हॉल लगभग पूरा भरा था लेकिन बारीकी से निरीक्षण करने पर स्पष्ट हुआ कि मौजूद लोग या तो ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़े थे या फिर जिनको पुरस्कृत किया जाना था, वही थे। हाल में मौजूद 400 के लगभग लोगों में से 150-200 सम्मानित होने वालों की लाइन में थे। इनके अलावा तो इक्का-दुक्का लोग ही थे जो कुछ कहने या सुनने आये थे। वक्ताओं में से कुछेक की पृष्ठभूमि से वाकिफ लोगों में तो उनको सुुनने में और भी कम रुचि दिखाई थी।

वक्ताओं में डॉ. ब्रह्मदत्त व श्री ओपी शर्मा, दोनों वरिष्ठ वकीलों को छोड़ दो तो शायद ही किसी ने भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के बारे में कोई ठोस सुझाव दिया हो बल्कि अन्य लगभग सभी ने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार का ठीकरा आम जनता के सिर पर ही फोड़ दिया। उनका मानना था कि आम जनता ही रिश्वत देकर भ्रष्टाचार को बढावा देती है, यदि ये न दें तो भ्रष्टाचार अपने आप खत्म हो जाये। शायद आम जनता के घर में तो नोटों के पेड़ लगे हुए हैं जो तोड़े कुछ नोट और दे आये। शायद ये अफसरी झाड़ चुके भ्रष्ट लोग कभी आम जनता में गये ही नहीं वरना इन्हें पता होता कि मजबूरी में पेट काट कर रिश्वत देकर लोग कितना कलपते हैं।

पुलिस कमिश्नर दफ्तर से नीतीश अग्रवाल आईपीएस, डीसीपी हैडक्वार्टर का नाम निमन्त्रण पत्र में वक्ताओं की लिस्ट में मौजूद था लेकिन सम्मेलन में बोलने  पहुंची सुश्री सविता, इंस्पेक्टर कम्युनिटी पोलिसिंग। वो तो पुलिस कमिश्नर साहब की मेहरबानी थी कि इस टुच्चे से काम के लिये अपने एक इंस्पेक्टर को भेज दिया वरना कोई सिपाही ही भेज देते तो काफी था। वैसे सविता जी ने कम्युनिटी पोलिसिंग के अन्तर्गत चलने वाली स्कीमों जैसे कि स्कूलों में नैतिक शिक्षा, सिनियर सिटीजन्स की देखभाल, स्कूल पोलिस कैडेट आदि के बारे में तो खूब राग अलापे लेकिन भ्रष्टाचार मुक्त समाज के बारे में न उनको कुछ पता था न वो बोली ही। इसी तरह से एसीपी राजेश चेची ने भी अपने पुलिस जीवन से कई उदाहरण देते हुए अपने भूतपूर्व साहब और मुख्य अतिथि श्री शील मधुर की तारीफों के पुल बांधे पर भ्रष्टाचार के बारे में कोई सुझाव देने की बजाय जनता के सिर उसका ठीकरा फोड़ कर चलते बने। ब्रह्माकुमारी से बहन पूनम ने भी अपने विचार रखते हुए आध्यात्मिक शिक्षा पर जोर दिया।

मुख्य वक्ता और मुख्य अतिथि शील मधुर की गोल-मोल बातों में सिर्फ इतना समझ आया कि वो कोई ‘तिरंगा मेरी शान’ नामक एनजीओ चलाते हैं। सोचनीय बात ये है कि तीन-तीन पुलिस अफसरों ने इस अवसर पर अपने विचार रखे लेकिन एक छोटा सा सीधा सा सुझाव अपने पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार दूर करने का नहीं दे सके कि सभी पुलिस थानों और कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगवाये जायें। जबकि ये और सभी जगह कैमरे लगवाने के लिये पूरा जोर लगाये रखते हैं और लोगों को हडक़ाते हैं। ऐसे आयोजनों में परिपाटी यह है कि मुख्य अतिथि के भाषण के बाद कोई नहीं बोलता है लेकिन यहां परम्परा तोड़ कर मुख्य अतिथि के बाद किन्ही अशोक तिवारी को बुलवाया गया। इन महाशय ने अपने सम्बोधन की शुरूआत ही हर हर महादेव के जयकारे के साथ की और जब बजाय भ्रष्टाचार के ये राम मंदिर पर बोलने लगे तो आयोजकों ने इन्हें आकर चुप करवा के खदेड़ दिया। बताया गया था कि ये महाशय रेलवे बोर्ड के मेम्बर हैं। पर उनकी बातों से तो वे आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद जैसे किसी कट्टर संगठन के मेम्बर जैसे लगे।

मजेदार बात तो यह रही कि किसी भी वक्ता ने स्वास्थ्य को लेकर कोई बात नहीं की। न कोई स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी पर चिन्ता जाहिर की और न ही कोई मेडिकल फैसिलिटी बढाने के लिये सुझाव दिये। ये तो तब है जब अभी हाल ही में कोरोना महामारी में हम लाखों लोगों को मरते देख चुके हैं और स्वास्थ्य सुविधाओं की भयंकर कमी पर खूब चिल्ल पौं मचा चुके हैं।

अन्त में वरुण श्योकंद ने आए हुए सभी वक्ताओं का धन्यवाद किया और फिर  शुरू हुआ सम्मानित करने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो थमने का नाम ही नहीं लिया। वैसे तो ये सम्मान समारोह कोविड योद्धाओं और समाज सेवियों का ही था पर एक महाशय मेंहदीरत्ता साहव को तो पत्नी पीडि़त संगठन बनाने के लिये ही सम्मानित कर दिया गया। ये कैसी समाज सेवा थी उसे समझने में हम असमर्थ रहे। सम्मानित होने वालों की लाईन बहुत लम्बी थी लेकिन समय पर खाना खोल देने से लोग खाना खाकर खिसकते रहे जिसमें मजबूरन आयोजन ढाई बजे के लगभग खत्म करना पड़ा। कुल मिला कर आयोजकों की दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने शहर के किसी भी ‘समाज सेवी’ को बिना सम्मानित किये जाने नहीं दिया। अब ये अलग बात है कि अनेकों समाज सेवियों का पता नहीं चल पाया कि वे किस क्षेत्र में और किस तरह से अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

जानिए शील मधुर की ईमानदारी को
समारोह के मुख्य अतिथि शील मधुर 90 के दशक में, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने राज्य में शराब बंदी लागू कर रखी थी, तो ये साहब इस शहर के पुलिस कप्तान हुआ करते थे। इनकी ‘फिराक दिली’ के चलते जिले भर में शराब का अवैध धंधा खूब फल-फूल रहा था। ऐसे में एक दिन ‘मज़दूर मोर्चा’ सम्पादक सतीश कुमार ने एक तस्कर से शराब की थैली खरीद कर शील मधुर को उनके दफ्तर में जाकर भेंट की।

उनके विस्मय को दूर करते हुए सतीश कुमार ने उन्हें बताया कि शराब की ये थैलियां थाना एनआईटी की बगल में स्थित गांधी कॉलोनी के एक घर से खुलेआम बेची जा रही है। थाने से उस घर का फासला बमुश्किल 50 गज़ ही होगा। शराब बेचने वाले ने यह भी बताया कि यह हर रोज करीब 1000 थैलियां लाकर बेचता है। दूसरे-तीसरे दिन 10-20 थैलियों के साथ एक आदमी भी पुलिस को देकर केस बनवा देता है। इससे पुलिस के काम की खानापूर्ति भी होती रहती है और उनका काम-धंधा भी चलता रहता है।
सारा विवरण सुनकर एसपी साहब बूरी तरह से झेंप गए और इस मामले में कड़ी कार्रवाई करने की बात कही। लेकिन इसके बावजूद धंधा ज्यों का त्यों चलता रहा।

भ्रष्टाचारी जज
मंच की शोभा बढाने वालों में ही हरि परण सिंह नामक एक सेवा निवृत अतिरिक्त सैशन जज भी मौजूद था। सभागार से बाहर निकलते ही बदरपुर सैद गांव के एक पंच ने इस संवाददाता को बताया कि पिछले दिनों किसी की जमानत कराने के लिये उनके पास गए थे तो उन्होंने सिफारिश करने के नाम पर 30 हजार रुपये मांगे थे।
नहर पार की सोसायटियों में रहने वालों ने बताया कि जुगाड़बाज़ी के दम पर ये कई सोसायटियों के प्रशासक बने हुए हैं। ऐसी प्रत्येक सोसायटी से इन्हें बिना कुछ किये धरे 25-30 हजार रुपये मासिक मिल जाते हैं। इसी तरह आरबीट्रेशन का धंधा भी इनका जोरों पर है।

इनके साथ कभी नौकरी में रह चुकेे एक न्यायिक अधिकारी ने बताया कि इनके भ्रष्ट आचरण का संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने समय से पहले इन्हें सेवा निवृत कर दिया था।
जिस भ्रष्टाचार उन्मूलन कार्यक्रम में ऐसे-ऐसे छंटे हुए भ्रष्टाचारी लोग आकर जनता का मार्गदर्शक बनने का ढोंग करेंगे तो कैसी सफलता मिलेगी, समझना कठीन नहीं। यह ठीक वैसा ही है जैसे बिल्ली को दूध की रखवाली सौंप दी जाय।

अजातशत्रु

 

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Mazdoor Morcha
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