रात में कफ्र्यू दिन में रैलियां, अच्छा मजाक है

रात में कफ्र्यू दिन में रैलियां, अच्छा मजाक है
January 05 02:55 2022

मज़दूर मोर्चा व्यूरो
कफ्र्यू के साथ ऐसा मज़ाक शायद ही किसी ने कहीं देखा होगा? जिस कफ्र्यू शब्द का नाम सुनते ही सिहरन पैदा हो जाती थी वह अब एक मज़ाक सा लगने लगा है। कोरोना की तीसरी लहर के नाम पर पूरे एनसीआर में रात 11 बजे से प्रात: पांच बजे तक के कफ्र्यू की घोषणा प्रशासन द्वारा कर दी गयी है। लोग सवाल करते हैं कि क्या कोरोना रात को ही शिकार पर निकलता है? क्या वह उल्लू की तरह सूर्य की रोशनी में अंधा हो जाता है जो अपना शिकार नहीं ढूंढ सकता? क्या वह दिन की भीड़-भाड़ व रैलियों में एकत्र हुए लोगों का शिकार करने से डरता है, इसलिये रात के अंधेरे में अकेले-दुकेले शिकार को ही दबोच सकता है?

वैसे चिंता की कोई बात नहीं, लोग भी शासन की इस हास्यास्पद घोषणा को कतई भी गंभीरता से नहीं ले रहे। आमतौर पर रात में और वह भी सर्द रात में कोई भी व्यक्ति बिना काम घर से निकलने को राजी नहीं। हां, कुछ लोग शौकिया डिनर आदि के लिये होटलों में जाते हैं जबकि अधिकतम लोग मजबूरन, रात-बिरात होटलों-ढाबों पर खाना खाने को जरूर आते हैं। वास्तव में होटल-ढाबों का यही व्यवसाय भी है।

अपने इस व्यवसाय को चलाये रखने के लिये इन लागों ने भी कफ्र्यू को गोली देनी शुरू कर दी है। बिना कफ्र्यू के समय में ये लोग पुलिस को थोड़ी हल्की खुराक देते थे अब कफ्र्यू के नाम की ज़रा एक्स्ट्रा खुराक देने लगे हैं। इसी के चलते फरीदाबाद स्थित सडक़ किनारे वाले तमाम ढाबे व चाय की दुकाने रात भर चलती रहती हैं।
‘कफ्र्यू’ शब्द अपने आप में एक खौफ का पैगाम लिए होता था। इसका मतलब हर कोई यह समझता रहा है कि इस दौरान घर से निकलना खतरे से खाली नहीं। पुलिस गिरफ्तार कर लेगा, टार्चर भी करेगी। इसका इस्तेमाल केवल अति गंभीर परिस्थितियों में ही किया जाता रहा है। वह भी तब जब कानून व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण से बाहर होने लगे। यदि इसे
इस तरह मज़ाक के तौर पर लिया जाने लगेगा तो इसका महत्व ही खत्म हो जायेगा।

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