नासमझी और बेवकूफ हरकतों की वजह से घिर गए हैं मुसलमान
यूसुफ किरमानी
पियू रिसर्च की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक़ पूरी दुनिया में मुस्लिम आबादी 1 अरब 80 करोड़ है। आबादी के मामले में ईसाइयों के बाद यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है। इन दोनों समुदायों के बीच सदियों से चली आ रही रस्साकशी के अब नये आयाम सामने आ रहे हैं।
दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय प्रचार तंत्र से मुसलमान घिर गया है। कहीं वो अपनी नासमझी और बेवक़ूफ़ हरकतों से घिरे हैं तो कहीं बाक़ायदा साज़िश करके उन्हें घेरा गया है।
सामाजिक समानता, भाईचारे का संदेश देने वाले मज़हब इस्लाम को अचानक इस रूप में पेश किया जा रहा है कि दुनिया के हर देश में मौजूद हर मुसलमान आतंकवादी है। वह धार्मिक उन्मादी है। यह बात उन देशों में भी की जा रही है जहाँ मौजूदा दौर में मुसलमानों के कई धार्मिक स्थल तोड़ दिए गए। कई शहरों से उन्हें पलायन करना पड़ा। कई शहरों में एक-एक हफ़्ते तक वो दंगे का शिकार होते रहे। असंख्य लोग मार दिए गए और उनका सबकुछ लूट लिया गया। कुछ मामलों में तो उल्टा आरोपी तक बना दिए गए।
ये हालात हमें भारत में 1984 के सिख विरोध की याद दिलाता है। तब सारे सिख आतंकवादी और खालिस्तानी बताये जाते थे और दंगों में उनका सबकुछ लूट लिया गया। लोगों को याद होगा कि सिखों ने अपने ऊपर हुए ज़ुल्मों के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया गया था।
इस समय मुस्लिम विरोध का सबसे बड़ा अखाड़ा फ्रांस बना हुआ है।
फ्रांस में पिछले दिनों एक टीचर की उस वक्त बेरहमी से एक मुस्लिम लडक़े ने हत्या कर दी थी जब उसने अपनी क्लास में पैग़म्बर का मजाक उड़ाया था। पुलिस ने उस मुस्लिम लडक़े को पकड़ा और गोली मार दी। राष्ट्रपति मैक्रां ने इस घटना के लिए पूरे इस्लाम धर्म को ज़िम्मेदार ठहराया और इसे इस्लामिक आतंकवाद बताया।
इस घटनाक्रम के बाद पैरिस के आइफल टावर परिसर में दो मुस्लिम महिलाओं की हत्या कर दी गई। लेकिन मैक्रां ने इसके लिए न तो किसी धर्म को जिम्मेदार ठहराया और न ही घटना की निन्दा की। इसके बाद फ्रांस में फिर एक हत्या हुई और आरोपी मुस्लिम ही है।
फ्रांस के तमाम नागरिक संगठन और विपक्षी राजनीतिक दल मैक्रां के बयान और व्यवहार पर नाराज़ हैं। तुर्की ने फ्रांस के सामानों के बहिष्कार की अपील कर दी है।
फ्रांस की कंपनियों में खलबली मच गई है क्योंकि उनके महँगे उत्पाद सबसे ज्यादा सऊदी अरब में बिकते हैं। सऊदी अरब ने हाल ही में इस्राइल से दोस्ती की है। …सऊदी अरब के मुसलमानों में सऊदी अरब की राजशाही यानी आल-ए-सऊद ख़ानदान के प्रति ग़ुस्सा बढ़ रहा है। वहाँ तुर्की और ईरान की अपील का ज्यादा असर हो रहा है।
नफऱत फैलाने वाला प्रचार तंत्र सबसे पहले मुसलमानों को बताता है कि देखो तुम्हारे पैग़म्बर पर कॉर्टून बनाया गया है। किसी न किसी मुसलमान को इसमें पैग़म्बर की बेइज़्ज़ती नजऱ आती है। पैग़म्बर पर कूड़ा फेंकने वाली महिला को खुद पैग़म्बर माफ़ कर चुके हैं लेकिन उनकी सीरत पर चलने वाला मुसलमान कॉर्टून बनाने वाले को माफ़ करने को तैयार नहीं है। ऐसे बेवक़ूफ़ मुसलमानों को यह भी नहीं मालूम कि जिस नफऱत फैलाने वाले प्रचार तंत्र ने उसे यह जानकारी दी है, उसे नियंत्रित कौन कर रहा है और उसका इरादा क्या है? जिस दिन मुसलमान या कोई भी समुदाय नफऱत को नियंत्रित करने वाले सौदागरों को पहचान लेगा और उनके इरादे भाँप लेगा तो नफरती चिंटुओं की दुकान बंद हो जाएगी।
तो असली मुद्दा है नफऱत के सौदागर कौन हैं? उनके छिपे चेहरों के पीछे कौन हैं। फ्रांस में भारत की तरह आग नहीं फैली है। लेकिन मात्र फ्रांस की घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय बना दिया गया। जबकि भारत में सारे साम्प्रदायिक सौहार्द को ताक पर रखकर लिंचिंग की अनगिनत घटनाएँ हुईं।
इंडिया स्पेंड की 2017 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ 2014 में मोदी की सरकार आने के बाद मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की 93 फीसदी घटनाएँ हुई हैं। जून 2017 तक भाजपा शासित राज्यों में सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ लिंचिंग के 63 मामले हो चुके थे। जिसमें 32 मामले गोरक्षक दलों के हमले से जुड़े हैं। खुद यूएन और अमेरिकी सीनेट की रिपोर्ट में भारत में अल्पसंख्यकों की धार्मिक आजादी को ख़तरे में बताते हुए चिन्ता जताई गई थी।
भारत में जी न्यूज़, इंडिया टीवी, आजतक, रिपब्लिक टीवी, टाइम्स नाउ बाक़ायदा समुदाय विशेष के खिलाफ नफऱत का अभियान चला रहे हैं। हाथरस, बुलंदशहर में इन चैनलों को लव जिहाद नहीं दिखता क्योंकि आरोपी मुसलमान नहीं थे लेकिन बल्लभगढ़ में अगर आरोपी मुसलमान है तो उसे फ़ौरन लव जिहाद बता कर नफऱत का कारोबार चलाया जाता है। लेकिन यह समझ से बाहर है कि भारत में 35 करोड़ मुसलमान और सेकुलर और तटस्थ हिन्दू ऐसी मीडिया को फलने फूलने में क्यों मदद कर रहे हैं जो नफऱत के कारोबार में जुटे हैं। यही हाल फ्रांस के मुसलमानों का भी है।
मुसलमानों का असली दुश्मन उसके घर में रखा नफऱत फैलाने वाला टीवी, मोबाइल पर चलने वाली सोशल मीडिया ऐप है। मुसलमान का दुश्मन उसका पड़ोसी या किसी देश के बहुसंख्यक लोग नहीं हैं बल्कि फ़ेसबुक, वाट्सऐप, इंस्टाग्राम से नफरत का ज्ञान बघारने वाले लोग हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक)