नीलिमा झा बिहार के सातवीं बार बने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पटना जि़ले के बख्तियारपुर में जहां उन्होंने अपना प्रारम्भिक बचपन बिताया है, वहीं स्वतंत्रता सेनानी शीलभद्र की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के दौरान एक स्थानीय शंकर नामक युवक ने थप्पड़ मार दिया। इस घटना के बाद एक क्षण के लिये कुमार घबरा गये, किंतु तुरंत उन्होंने खुद को सम्भाला और उनके सुरक्षाकर्मी ने शंकर को पकड़ लिया। इससे पहले भी कई बार इनके ऊपर कभी चप्पल तो कभी पत्थर फेंके जा चुके हैं।
यह जो भी हुआ गलत हुआ, यह बहुत बड़ा अपराध भी है, नीतीश कुमार 50 वर्षों से राजनीति में हैं और बिहार के सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहींं ‘विकास पुरुष’ भी हैंं। इन पर हमले के बारे में जब बिहार, बख्तियारपुर के लोगों से बात की गई तो उन्होंने कहा, कि कई मसलों पर मुख्यमंत्री कुमार के प्रति नाराजगी है। मुक्का-थप्पड़ मारने को लेकर जनता का मानना है कि लोकतंत्र में यह सब होता ही है। जनता का विरोध करना बिल्कुल सही है। आखिर क्यों? जनता इनसे संतुष्ट नहीं है। युवाओं से मिलेंगे नहीं, मुख्यमंत्री, जनता दरबार लगायेंगे, किंतु जनता द्वारा बताई गई परेशानी का निदान नहीं करेंगे, उनकी पीड़ा को समझेंगे नहीं, लोगों द्वारा अपनी समस्या बताने पर मुस्कराते हुए वहां से निकल जायेंगे तो जनता परेशान क्यों नहीं होगी?
बिहार में कहने को शराब बंदी है किंतु ऐसा नहीं है, शराब खुलेआम बिक रही है, तस्करी भी हो रही है और जहरीली शराब पीकर लोग मर भी रहे। वहां मुक्का-थप्पड़ लगना भी कोई बड़ी बात नहीं है। पांच साल बाद चुनाव के समय ‘विकास पुरुष’ विकास के नाम पर वोट मांगने आयेंगे। उस समय तो ऐसा चापलूसी दिखायेंगे कि जनता गुमराह हो जायेगी, इन्हें वोट देगी और ये फिर मुख्यमंत्री बनेंगे।
इस बार अक्टूबर महीने में मैं बख्तियारपुर गई थी। वहां शाम के समय, मैं और मेरी छोटी बहन बाजार गई, बारिश बहुत तेज हो रही थी, बिजली भी चमक रही थी। वहां स्टेशन से लेकर पूरे मार्केट और मुख्यमंत्री जी का घर तक, ऐसा नरक बना था कि बताना मुश्किल है। हर जगह नदी बह रही थी और उसी के साथ नाली भी। पूरे मार्केट में गंदगी का भरमार था। बाजार में इस बीच कई दुकानों पर बैठी, रात को आठ बजे तक, इसी इंतजार में रही कि जब बारिश छूटेगी तो घर जाऊंगी, न कोई टेम्पू न रिक्शा। बाजार में सामान की खरीदारी तो कम हुई और भटकना ज्यादा। इस बीच मैं जितनी भी दुकानों पर गई हर दुकानदार से यही बात पूछी, भाई, नीतीश कुमार से तुम लोग क्यों नहीं कहते हो? उनका यहां गृह नगर है और पढ़ाई किये हैं। यहां जो बाहरी लोग आते हैं वो कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का घर यहीं है और तुम लोग भी ये बातें गर्व से कहते हो। आज यहां का ऐसा हाल है कि चार बूंद पानी पडऩे पर पूरे शहर नरक बना है, बाहर निकलने लायक नहीं है। उनसे कहो, व्यवस्था ठीक करें ताकि दिक्कत न हो, जनता परेशान है। इसमें गलती नीतीश का नहीं है तुम लोगों का है।घेराव क्यों नहीं करते हो?
इस पर वो लोग कहने लगे कि नीतीश यह सब बातें भूल चुके हैं। उन्हें सिर्फ चुनाव के समय याद आता है, उसी समय आते हैं और हाथ जोड़ कर खड़े हो जाते हैं। उस समय सभी उनके अपने लगते हैं और चाचा, भइया, बेटी का रिश्ता जोडऩे लगते हैं व कहते हैं कि इस चुनाव के बाद सब कुछ ठीक हो जायेगा। फिर जीतने के बाद कहां दर्शन देते हैं? हम लोग भी मज़बूर हैं, सोचते हैं कि बाहरी नेता को वोट देंगे तो चुनाव जीत कर चला जायेगा। इनका तो यहां अपना घर है, लोकल हैं, कल को कोई काम होगा तो इन्हें कह सकते हैं दूसरे को तो कहने जायेंगे नहीं, इसलिये इन्हीं को वोट देते हैं। लेकिन यह तो और बड़ा हरामी निकल गया।
अभी भी बारिश का सारा गंदा पानी नीतीश जी के घर के अंदर जा रहा होगा किंतु उन्हेें क्या मतलब? वो तो आराम से राजधानी में हैं। नरक तो हम लोग भुगत रहे हैं। यहीं पर जिस हाईस्कूल में पढ़ाई किया जिसमें कि उनके पिताजी सेक्रेटरी थे आज इसका भी बिल्डिंग ढह कर गिर रहा है। अभी हम लोग सामने चले जायेंगे तो पहचानेगा नहीं। कोई भी व्यक्ति यही सोचता है कि मेरा अपना आदमी जीतेगा तो इससे कई गुणा ज्यादा फायदा होगा। पहले परिवार को, फिर अपना नजदीकी रहेगा उसे, इसके बाद समाज को, तब देश को आगे बढायेगा। मैं बोली कि इस चुनाव में कुछ भी कहे नहीं मानना, बार-बार सत्ता में उसी नेता को नहीं लाना चाहिये।
कुमार को शंकर द्वारा थप्पड़ मारने वाली घटना भी आश्चर्य की बात है। एक कहावत है कि अपने घर में कुत्ता भी शेर होता है, वहीं उनके अपने घर से चंद कदमों की दूरी पर ऐसी घटना हुई जहां वो अपने पुराने सहयोगियों से मिल रहे थे। वहां के अलावा कहीं दूसरे जगह इस तरह की घटना होती तो अलग बात थी, जैसे कई स्थानों पर इनके साथ हमला हुआ भी है। जनता में आक्रोश का मुख्य कारण है बिहार में बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी। बिहारी मेहनती होते हैं, वे काम के सिलसिले में जब दिल्ली, बाम्बे जाते हैं तो वहां भी लोग बिहारी कहकर व्यंग्य करते हुए हीन दृष्टि से इनका मजाक उड़ाते हैं। कई तरह की बातें सुनने से इनके अंदर हीन भावना आ जाती है। अब पहले वाली बात नहीं रह गई, युवा पढ़-लिख कर समझदार हो गये हैं । कुमार उनके साथ जैसा बर्ताव कर रहे हैं वो ठीक नहीं है।
पढ़ाई करने के बाद नौकरी नहीं मिलने पर युवा का मन विचलित हो जाता है और ऊपर से महंगाई की मार। गुस्सा आना स्वाभाविक है ऐसे में युवा क्या करें? कुछ तो गलत रास्ते पर उतर जाते हैं जैसे चोरी, डकैती, पॉकेटमारी। किंतु जो शरीफ हैं वह मजबूर हैं, बेचारा पढ़ लिख कर नौकरी नहीं मिलने पर क्या करेगा? पागल होना स्वाभाविक है।
मां-बाप तो अपनी जरूरत की भी पुर्ति न कर, ज़मीन, गहना, बेच कर, कर्जा लेकर, उसके लिये उच्च शिक्षा का प्रबन्ध करते हैं कि कल को मेरा बच्चा सुखी रहेगा। इसके बाद नौकरी न मिलने पर इसका जिम्मेवार कौन होगा, बच्चे के माता-पिता या मुख्यमंत्री जी? तो ऐसी परिस्थिति में युवा, मुख्यमंत्री को ही थप्पड़ मारेगा, न कि अपने बाप को? इसलिये मुख्यमंत्री जी को इस घटना पर सोचना चाहिये कि थप्पड़ लगने का कारण क्या हो सकता है? कारण स्पष्ट है कि जनता संतुष्ट नहीं है। नीतीश कुमार को फिर चुनाव वहीं से लडऩा है और काम कुछ नहीं करना सिर्फ भाषण में मीठी बातें बोलने के अलावा। इसीलिये तो अपने सुरक्षाकर्मी से कहा कि शंकर को कुछ नहीं करो, इसकी मेडिकल जांच कराओ।
शंकर द्वारा, कुमार को थप्पड़ मारने की खबर से पूरे बख्तयारपुर शहर में अफरा-तफरी मच गई। वहां के दुकानदारों ने अपनी सारी परेशानियों को भूलकर एकजुटता का परिचय देते हुए बाजार को पूरे दिन बंद रखा। बच्चे, बूढ़े, जवान समेत बख्तियारपुर के हर तबके के लोग इस बंदी में शामिल रहेे। घटना से आहत व्यापारी काली पट्टी बांधकर विरोध जताते हुए कड़ी निंदा किये। यही लोकतंत्र है। लेकिन युवा के रोजगार का क्या?
वह पागल नहीं आक्रोषित था नीतीश कुमार के मुंह पर थप्पड़ मारने वाला शख्स बख्तियारपुर के स्थानीय निवासी श्याम सुंदर वर्मा के पुत्र शंकर वार्मा उर्फ छोटू, उम्र 32 साल ने स्थानीय एवं अति प्रतिष्ठित रामलखन सिंह यादव कॉलेज से वर्षों पूर्व बीए पास किया था। अति मेधावी एवं शिक्षित होने के बावजूद जब उसे कहीं कुछ काम नहीं मिला तो उसने डीजे संचालन का धंधा शुरू किया। बीते दो साल में कोरोना के चलते धंधा इस कद चौपट हो गया कि शंकर कर्ज में डूब गया। शंकर के पिता इसी कस्बे में बहुत पुराने समय से फोटोग्राफी का स्टूडियो चला कर गुजर-बसर करते आ रहे हैं। लेकिन कोरोना महामारी ने उन्हें भी नहीं बक्शा, उनका भी धंधा चौपट हो गया। इन हालात में शंकर के भीतर पनप रहा आक्रोश उस समय फूट पड़ा जब इसी कस्बे के मूल निवासी नीतीश कुमार एक माल्यार्पण का पाखंड करने इलाके में आये। आज इसी तरह का आक्रोश देश भर के बेरोजगार युवाओं में उफन रहा है,न जाने कब यह बड़े पैमाने पर फूट पड़े।