स्वस्थ और भ्रष्टाचार मुक्त समाज पर बोले ओपी शर्मा व ब्रह्मदत्त ज्योति संग, फरीदाबाद

स्वस्थ और भ्रष्टाचार मुक्त समाज पर बोले ओपी शर्मा व ब्रह्मदत्त ज्योति संग, फरीदाबाद
May 10 17:05 2022

(24 अप्रैल को हुए एक भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम में दो मुखर वक्तव्य प्रकाशित होने से रह गये थे। जिन्हें अब प्रकाशित किया जा रहा है।)

जहां पुलिस पीडि़त को मुज़रिम बनाती है और मुज़रिमों को कुर्सी पर बिठाती हो, वहां इन्साफ़ की उम्मीद लगभग बेमानी सी हो जाती है। वर्तमान पुलिस प्रणाली में जो सब से ख़तरनाक बात खुल कर बाहर आ रही है वह यह है कि पुलिस ज़्यादातर केसों का ताना बाना इस प्रकार बुनती है कि वह पूरी तरह जुर्म का संरक्षण देती महसूस की जा सकती है और मुज़रिमों को जो संरक्षण या सहायता पुलिस ख़ुद प्रदान नहीं कर सकती, वह अदालतों द्वारा मुहैय्या करवाती है और जिस के लिए वह पूरी तरह से सक्षम हो चुकी है।

समाज की दयनीय स्थिति पर चिंता जताते हुए देश के उच्चतम-न्यायालय ने वर्ष 1993 में एक कमेटी का गठन किया था और उस कमेटी द्वारा समय की वित्त परिस्थियो का आंकलन करके जो निष्कर्ष सामने लाया गया वो सचमुच भयावह था। उन्होंने कहा था कि देश में भिन्न-भिन्न स्तरों पर एक सुनियोजित माफिया रूल कर रहा है। माफिया ने सरकारी मशीनरी और टूल्ज़ को लगभग निष्क्रिय कर दिया है। कानून व्यवस्था के भयंकरत्तम दौर में होने के बारे में अपना व्यक्तव्य जारी रखते हुए ओपी शर्मा ने कहा, जब भी कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार का शिकार होता है तो वह पुलिस विभाग या सम्बन्धित विभाग के मुखिया के पास जाता है परन्तु यदि दुर्भाग्यवश यह तमाम मुखिया ही इस कुव्यवस्था का संचालन कर रहे हों तो बेचारा पीडि़त कहां जाएगा? सच तो यह है कि यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि देश में करप्शन शीर्षस्थ संस्थानों और व्यक्तियों तक पहुंच चुकी है। यह भी सत्य है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा 1993 में गठित कमेटी द्वारा व्यवस्था के बारे में इतनी कठोर टिप्पणी लिखे जाने के बाद भी इस प्रकार की अन्य कमेटी का भी गठन किया गया परन्तु यदि सभी ओर व्याप्त चिंताजनक स्थिति पर नजऱ डालें तो लगता है ऐसी किसी भी कमेटी का शून्य प्रतिशत सकारात्मक प्रभाव भी दिखाई नहीं देता। ओपी शर्मा ने अपने स्वाभाविक अन्दाज़ में आगे कहा कि अगर मुल्क, समाज, अपनी संस्कृति और अस्मिता को बचाना चाहता है तो हमारी युवा पीढ़ी को खुल कर आगे आना होगा। यहां यह कहना ज़रूरी है कि जो विघ्वंसक शक्तियां पूरी तरह संगठित होकर देश को बर्बाद करने में जुटी हुई हैं। उन्हें अपने विरुद्ध उठने वाली कोई भी आवाज़ अच्छी नहीं लगेती। वे अब अपनी पूरी ताकत से अपने विरोधियों पर प्रहार करेंगी। लाठी गिरफ़्तारी, जेल और निजि हमले किए जा सकते हैं। यदि नौजवान पीढ़ी सचमुच बेख़ौफ़ होकर इस दमन का विरोध करेगी तो नतीजे शीघ्र और अवश्य अपना असर दिखाऐंगे। यह भी सच है कि आक्रान्ता चाहे कितनी भारी संख्या में क्यों न हों, इन के पांव नहीं होते। उदाहरण के तौरपर यदि 500 नवयुवक मज़बूत इरादे से विरोध पर उतर आऐं तो 5000 ज़ालिमों की भीड़ भाग खड़ी होती है। इसलिए हमें उठना होगा संगठित होना होगा और प्रतिरोध के स्वरों से वायुमण्डल को गुंजायमान करना होगा। सत्याग्रह विरोध और अपनी संस्कृ ति से अथाह प्रेम ही, हमे बर्बाद होने से बचा सकता है। इसी संदर्भ में डॉ ब्रह्मादत ने कहा कि देश को क्रान्ति की आवश्यकता जितनी अब है शायद जंग-ए-आज़ादी में भी उतनी नहीं थी।

नीलम बाटा रोड पर ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय के सभागार में भ्रष्टाचार और उस के सम्भावित निवारणों पर बोलते हुए देश के विख्यात समाज-सेवी और मुखर एक्टिविस्ट पद्मश्री डॉ ब्रह्मादत ने मौजूदा सरकार, प्रशासन, राजनीतिक दलों और कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे सूडो राजनेताओं पर भीषण प्रहार किए। उन्होंने अपने अभिभाषण में कहा कि अब, जब कि भ्रष्टाचार अपनी चरमसीमा पर पहुंच चुका है, कुछ भी मांगने से नहीं मिलने वाला। अब तो हमें अपने अधिकारों को किसी भी ढ़ंग से पाना होगा, हासिल करना होगा। ज़ुल्म के खि़लाफ़ शिकायत करना थानों में एफ़आईआर दर्ज करवाना मन्त्री या मुख्यमन्त्री को लिखना सब उपाय प्रभावहीन हो चुके हैं इस में कोई शक नहीं कि, आरटीआई एक सशक्त हथियार हो सकता था परन्तु जिस तरह मौजूदा सरकारें इसे प्रभावहीन और आम आदमी की पहुंच से बाहर कर रही है, यह भी अपना महत्व खो देती नजऱ आ रही है।

क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को भी यदि निर्धारित कानून प्रक्रिया के अनुसार, लागू नही किया जाता है तो इसका दोष सम्बंधित अधिकारी पर आता है और उसके खि़लाफ़ कार्यवाही कर दंडित करने की भी प्रक्रिया, कानून में हैं, जिसका पालन किया जाता है। कहने का आशय यह है कि, कानून को कानूनी तरह से ही लागू किया जाना चाहिये। यदि कानून कानूनी प्रावधान को दरकिनार कर के, मनमजऱ्ी से लागू किया जाएगा तो, उसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह होगा कि सिस्टम, विधि केंद्रित न होकर व्यक्ति केंद्रित हो जाएगा, और यदि उसे लागू करने वाला व्यक्ति अयोग्य, सनकी और जिद्दी रहा तो राज्य एक अराजक समाज में बदल जाएगा। यदि कानून को लागू करने वाले सिस्टम में, कोई ख़ामी है तो उसका समाधान किया जाना चाहिए, नए कानून बनाये जा सकते हैं, पुराने कानून रद्द किए जा सकते हैं और विधायिका ऐसा करती भी हैं, पर कानून का विकल्प, बुलडोजऱ, सनक या जि़द कदापि नही हो सकता है, इससे अराजकता ही बढ़ेगी। डॉ ब्रह्मादत ने सम्पूर्ण समाज और विशेषकर युवा पीढ़ी को भ्रष्टाचार के विरुद्ध शंखनाद करने का आह्वान किया। डॉ साहब ने समाज में सर्वत्र हो रहे दमन और अन्याय के अनेकों उदाहरण विस्तार से बताते हुए उठने, बढऩे और समर्पण के साथ सक्रिय होने को, भविष्य का मूल मन्त्र बताया। उन्होंने यह भी कहां की, देश को युवा क्रान्ति की आवश्यकता जितनी अब है शायद जंग-ए-आज़ादी में भी उतनी नहीं थी।

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Mazdoor Morcha
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