सीवेज से प्रदूषित हो रहा नदी व नहरों का पानी सरकारी विभाग खेल रहे हैं मुकदमे व जुर्माने का खेल

सीवेज से प्रदूषित हो रहा नदी व नहरों का पानी सरकारी विभाग खेल रहे हैं मुकदमे व जुर्माने का खेल
June 19 08:54 2022

फरीदाबाद (म.मो.) बीते तीसियों साल से शहर का सारा सीवेज बिना संशोधित किये यमुना नदी, गुडग़ांव व आगरा नहरों में धड़ल्ले से डाला जा रहा है। यही काम दिल्ली सरकार भी कर रही है। यमुना नदी तथा उक्त दोनों नहरें दिल्ली से ही सारा अशोधित जल लेकर इस शहर में प्रवेश करती हैं। रही सही कसर फरीदाबाद नगर पूरी कर देता है। नदियों व नहरों के जल प्रदूषण को रोकने के लिये सीवेज को शोधित करने के बाद ही इसे नदियों आदि में डाला जा सकता है। इसे लेकर ‘कड़े’ कानून भी बनाये गये हैं। इसके लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल) बनाये गये हैं। इन पर सैंकड़ों करोड़ का सरकारी खर्च होता है और करोड़ों की काली कमाई भी इनमें बैठे अधिकारियों की होती है।

सीवेज शोधन के नाम पर सैंकड़ों करोड़ के एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) लगा जाते हैं जो सीवेज ट्रीट यानी शोधित करने के बजाय अफसरों व राजनेताओं की काली कमाई का साधन बनते हैं। इन प्लांटों को लगाने व चलाने के लिये ठेकेदार से इतनी मोटी कमीशनखोरी कर ली जाती है कि प्लांट कभी चलने लायक हो ही नहीं सकता। फरीदाबाद के तीनों प्लांट-मिर्जापुर, बादशाह पुर व प्रतापगढ़ इस हकीकत के जीते-जागते सबूत हैं।

दुर्भाग्य की बात तो यह है कि अमृत समान जल को ज़हर बनाने के लिये जिम्मेदार लोगों को न तो कैद होती है और न ही उनसे उस सार्वजनिक धन की वसूली होती है जो उन्होंने एसटीपी लगाने व चलाने के नाम पर गटक ली। उन पर दंडात्मक कार्यवाही इसलिये नहीं होती क्योंकि वे शासक वर्ग से ही होते हैं और इस नाते किसी भी प्रकार की कार्यवाही करने का अधिकार भी उन्हीं के पास होता है। ड्रामेबाज़ी के तौर पर एनजीटी तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुकदमे, जुर्माने आदि का खेल खेलते रहते हैं।

अभी मीडिया में आई खबरों के अनुसार बिना शोधित सीवेज नदी व नहरों में बहाने के जुर्म पर एनजीटी ने नगर निगम पर दो करोड़ 90 लाख का जुर्माना किया र्है जो कि आगामी तीन माह में जमा कराना होगा। दरअसल जुर्माना एनजीटी ने कुछ समय पहले किया था जो निगम द्वारा अदा न किये जाने के चलते बढ़-बढ़ कर इतना हो गया। यहां मजेदार एक बात यह भी है कि एनजीटी अथवा प्रदूषण बोर्ड ने स्वत: उक्त जल प्रदूषण का कोई संज्ञान नहीं लिया था। यह संज्ञान तो एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बाकायदा एनजीटी के सामने मुकदमा दायर करके दिलाया।

सवाल यह भी पैदा होता है कि यदि निगम यह जुर्माना न भरे तो एनजीटी किसका क्या बिगाड़ लेगा, क्योंकि यहां तैनात सभी अफसर तो चलते-फिरते  मुसाफिर  हैं? दूसरे यदि उक्त जुर्माना भर भी दिया जाये तो किसको क्या फर्क पडऩे वाला है? सरकार का पैसा सरकार को ही तो जायेगा और घूम-फिर कर वापस निगम में ही आ जायेगा? इस मामले में जब तक किसी को जिम्मेदार ठहरा कर उसकी जेब से वसूली व उसे जेल की सज़ा नहीं होगी तब तक प्रदूषण का यह कहर जनता पर यूं ही पड़ता रहेगा।

सारे मामले पर निगम के एसई ओमबीर सिंह का कहना है कि मिर्जापुर व प्रतापगढ़ के एसटीपी पब्लिक हेल्थ विभाग ने सन् 1996 में बनाये जिनकी मियाद 20 साल की थी। इसके पूरा होते ही तथा प्लांटों का कबाड़ा बना निगम के मत्थे मढ़ कर पब्लिक हैल्थ वाले चले गये। यहां सवाल यह पैदा होता है कि सीवेज ट्रीटमेंट का विषय नगर निगम का है या पब्लिक हैल्थ वालों का? यदि उन्होंने 20 साल नगर निगम के लिये यह काम कर दिया तो कोई गुनाह नहीं किया। जब निगम को पता था कि मियाद 2016 में पूरी होने वाली है तो उन्होंने स्थिति से निपटने की अग्रिम तैयारी क्यों नहीं की? अब भी एसई फर्माते हैं कि जून 2023 तक मिर्जापुर तथा प्रतापगढ़ की शोधन क्षमता क्रमश: 45 एमएलडी से 80 तथा 50 एमएलडी से 100 एमएलडी कर दी जायेगी। आज तक तो निगम का कोई काम निर्धारित समय पर हुआ नहीं, वर्ष भर बाद इसका भी पता चल जायेगा।

ट्रैक्टर टैंकर भी खलाये जाते हैं नदी-नहरों में

नगर निगम द्वारा जल स्रोतों में सीवेज डाले जाने के अतिरिक्त यही काम करीब 1000 प्राईवेट ट्रैक्टर टैंकरों द्वारा भी बीते कई वर्षों से किया जा रहा है। नहर पार के ग्रेटर फरीदाबाद में बनी सैकड़ों सोसायटियों में लाखों की संख्या में लोग आबाद हैं। दिल्ली बार्डर से लेकर धुर बल्लबगढ़ तक बसे किसी भी गांव में कोई सीवरेज व्यवस्था न होने के चलते जनता ने अपने-अपने सेप्टिक टैंक बनवा रखे हैं जिन्हें ट्रैक्टर टैंकरों द्वारा खलवाया जाता है।

इसी तरह तमाम आधुनिक सोसायटियां भी इसी व्यवस्था पर निर्भर हैं। सरकार ने अरबों रुपया बतौर ईडीसी बिल्डरों एवं फ्लैट वासियों से वसूल करके डकार लिया, जबकि इस पैसे से सरकार को सडक़ तथा सीवरेज आदि की व्यवस्था करनी चाहिये थी। सरकार की इस बेईमानी के चलते आज के युग में एक ऐसा आधुनिक शहर बसा दिया गया है जिसमें सीवरेज की कोई व्यवस्था नहीं है और वह भी देश की राजधानी के साथ सटा कर।

ट्रैक्टर टैंकरों द्वारा निकाला जाने वाला यह सीवेज सीधे यमुना नदी तथा आगरा नहर में बहा दिया जाता है। इसके अलावा क्षेत्र में जहां कहीं भी इन्हें खाली जगह मिलती हैं, वहां भी इन्हें खलाया जाता है। इसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में जगह-जगह सड़े सीवेज के लाब जैसे बन चुके हैं।

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Mazdoor Morcha
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