सरकारी भोंपुओं के लिए फौज की नौकरी रोजगार नही

सरकारी भोंपुओं के लिए फौज की नौकरी रोजगार नही
July 11 06:43 2022

देश सेवा के नाम पर कॉन्टै्रक्ट सेवा
मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
एक कुशल सेल्समैन की भांति अपनी अग्निपथ योजना को बेचने के लिये मोदी ने अपने तमाम भोंपूओं को लगा रखा है। तमाम बड़े उद्योगपति, तीनों सेनाध्यक्ष तथा तमाम लगुए-भगुए इस योजना को बेचने के लिये तरह-तरह के कुतर्क आये दिन पेश कर रहे हैं। उनमें से एक कुतर्क यह भी है कि फौज की नौकरी कोई रोजगार नहीं, यह तो देश सेवा है। चलो मान लेते हैं कि यह केवल देश सेवा है, तो क्या मोदी जी अपने रोजगार के आंकड़ों में अग्निवीरों को नहीं गिनेंगे? बिल्कुल गिनेंगे, आगामी डेढ साल में दस लाख नौकरी देने का जो झांसा दिया है, उसमें डेढ़ दो लाख तो अग्निवीर ही गिने जायेंगे।

सरकारी भोंपू यह भी बताते हैं कि इजराइल में हर लडक़े-लडक़ी को अनिवार्य रूप से डेढ़ साल फौज की नौकरी करनी होती है। इसी तरह उत्तर व दक्षिण कोरिया आदि कई देशों में तमाम नागरिकों के लिये कुछ समय के लिये फौज की नौकरी अनिवार्य है। ब्रिटेन में युवराज को राजगद्दी पर बैठने से पहले फौज की नौकरी करना अनिवार्य है। इसी शर्त को निभाते हुए कुछ वर्ष पूर्व प्रिंस फिलिप बतौर फौजी अफगान युद्ध लडऩे भी पहुंचे थे। लेकिन ये भोंपू यह नहीं बताते कि फौज की नौकरी के दौरान तथा उसके बाद उन्हें क्या-क्या उपलब्ध कराया जाता है?

यहां बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि यह देश सेवा उन गरीबों के जिम्मे ही क्यों है जिनके पास रोजी-रोटी का कोई अन्य विकल्प नहीं है? तमाम बड़े उद्योगपतियों व राजनेताओं के बेटों को इस सेवा का अवसर क्यों नहीं दिया जाता? अमितशाह का नालायक बेटा क्रिकेट बोर्ड का सचिव बनकर करोड़ों बटोर सकता है, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का बेटा अमेरिका से एलएलएम की डिग्री ला सकता है और मुकेश अम्बानी का बेटा बेठे-बिठाये खरबोंपति बन सकता है; इन्हें भी तो जरा दो-चार साल के लिये अग्निपथ पर चलाकर देश सेवा का मौका दिया जाना चाहिये।

र्वैसे गम्भीरता से देखा जाय तो फौज की नौकरी कोई रोजगार हो भी नहीं सकती। फौज़ कोई उत्पादक प्रक्रिया नहीं निभाती। इसे दुश्मन से लडऩे के लिये तैयार रखा जाता है। मान लो यदि बांग्लादेश और पाकिस्तान अखंड भारत के अंग बन जायें तो इन तीनों देशों में सेना की क्या जरूरत रह जायेगी? जाहिर है कि ऐसे में तमाम फौजियों को देश के लिये उत्पादक सेवाओं में लगाकर देश की अर्थव्यवस्था को उन्नत व जनता को सम्पन्न किया जा सकेगा।

शासक वर्गों ने बड़ी कुटिलता के साथ देश में एक ऐसा युवा वर्ग तैयार कर लिया है जो फौज एवं अर्धसैनिक बलों में रोजगार तलाशने के अलावा और किसी काम का नहीं रह गया है। हां, यदि उसे तहसील जैसे महकमे में चपरासी की या पुलिस में सिपाही की नौकरी मिल जाये तो वह फौज की तरफ झांके भी न। अपनी कुटिल नीतियों के चलते शासक वर्गों ने देश की जनता को असली उत्पादक रोजगारों से वंचित कर दिया है। तमाम सरकारी शिक्षण संस्थानों, स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तथा बड़े राष्ट्रीय प्रोद्योगिक संस्थानों (आईआईटी) में आधे से अधिक पद रिक्त पड़े हैं। इसी तरह अस्पतालों में डॉक्टरों व पैरा मेडिकल स्टॉफ के 70 प्रतिशत तक पद खाली पड़े हैं। संक्षेप में केन्द्र व राज्य सरकारों के करीब डेढ करोड़ पद आज के दिन खाली पड़े हैं।

साधन सम्पन्न लोग अपने बच्चों को महंगे निजी स्कूलों में पढ़ाने के बाद उच्च शिक्षा के लिये विदेशों में भेज देते हैं जिस पर देश की विदेशी मुद्रा भारी मात्रा में खर्च हो जाती है। इन हालात में गरीब एवं वंचित परिवारों के बच्चे शिक्षा व चिकित्सा बल्कि पौष्टिक भोजन तक से भी महरूम रह जाते हैं। इनमें से जो थोड़े-बहुत जैसे-तैसे दसवीं-बारहवीं तक पढ़ कर निकल पाते हैं उनके सामने शासक वर्ग ने उस फौज की नौकरी के अलावा कोई वैकल्पिक रोजगार छोड़ा ही नहीं जिसे वह रोजगार मानने से ही इनकार करता है। देशभक्ति की चाश्नी में लपेट कर फौज की कठिनतम एवं जोखिम भरी नौकरी करना उसकी मजबूरी बना दी गई है।

जनरल पुरी अपनी पे स्लिप तक नहीं देखते
बतौर सरकारी भोंपू लेफ्टीनेंट जनरल एवं रक्षा मंत्रायल में विशेष सचिव पुरी ने प्रेस को सम्बोधित करते हुए एक बड़ा झूठ यह भी बोला कि वे तो कभी अपनी पे स्लिप देखते ही नहीं। जरूरत भी क्या है, लाखों रुपये का वेतन हर महीने बैंक में पहुंच जाता है, घर व चूल्हे-चौके तक सारा खर्च सेना के खाते से चुपचाप उनके यहां पहुंच ही जाता है। वेतन से कहीं ज्यादा खर्चे तो सेना के खाते से वेसे ही मिल जाते हैं। वेतन तो केवल उनकी जमा पूंजी में बढोत्तरी करने के लिये ही होता है।

इसके बरक्स जिन युवाओं को वे उक्त उपदेश दे रहे हैं उनकी तो सारी गुजर-बसर ही नौकरी से मिलने वाले वेतन पर निर्भर है। पूर्व सेनाध्यक्ष एवं केन्द्रीय मंत्री वीके सिंह ने तो पल्टी मारने में कमाल ही कर दिया। जो पहले दिन अग्निपथ के बारे में कुछ बोलने से बचने के लिये कह रहे थे कि वे तो इसके बारे में अभी कुछ जानते ही नहीं, अगले ही दिन वे इसके बड़े वकील बन गये। ये वही वीके सिंह हैं जो सेवा निवृत्ति के वक्त एक वर्ष की सेवा और प्राप्त करने के लिये सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गये थे। आज वही मात्र चार साल की सेवा को पर्याप्त बता रहे हैं।

 

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Mazdoor Morcha
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