फऱीदाबाद में मज़दूर पिस रहे हैं-‘श्रम विभाग’, ‘पूंजी विभाग’ बन गया

फऱीदाबाद में मज़दूर पिस रहे हैं-‘श्रम विभाग’, ‘पूंजी विभाग’ बन गया
January 31 00:42 2023

मालिक 60000 हड़प गया, लेबर इंस्पेक्टर जांच को तैयार नहीं

सत्यवीर सिंह
रीदाबाद। बृजेश कुमार एवं राकेश कुमार, दोनों भाई, सुपुत्र श्री शिवचरण राम ने,‘शिव मेटल्स, प्लाट न 25, गली न 8 ए, सरूरपुर औद्योगिक क्षेत्र, फऱीदाबाद कारखाने में,1 जनवरी 2020 से जुलाई 2020 तक, एल्युमीनियम मिस्त्री की हैसियत से काम किया था. उद्योगपति, सिद्धार्थ सिंह ने उनकी मज़दूरी का भुगतान नहीं किया. ‘मेरी नई फैक्टरी बन रही है. तुम जिंदा रहने लायक़, कुछ पैसे लेते जाओ, पूरा भुगतान बाद में मिलेगा’ कह कर टालता रहा. मज़दूर भी इस भाषा का मतलब जानते हैं, लेकिन फिर भी इस अमानवीय शर्त को स्वीकार करने को मज़बूर हैं, क्योंकि बेरोजग़ारी इतनी भयानक है कि कितने ही मज़दूरों को, आज, दो वक़्त की रोटी लायक काम भी मयस्सर नहीं हो रहा. कुल 90,000 रु का भुगतान बाक़ी हो जाने पर, दोनों मज़दूर उसकी असली नीयत समझ गए. ‘पिताजी बीमार हैं, आप हमारा सारा भुगतान कर दीजिए’, मज़दूरों की इस गुहार पर, मालिक ने उन्हें गन्दी गालियाँ दीं और दो थप्पड़ मारे. दोनों भाई, काम छोडक़र, ख़ाली हाथ, अपने गाँव जिला चंदौली, उ प्र लौट गए.

कोई भी उत्पादन मज़दूरों के बगैर होता नहीं, इसलिए सिद्धार्थ सिंह, उन्हें लेने उनके गाँव पहुँच गए. ब्रिजेश कुमार एवं राकेश कुमार के पिताजी गंभीर रूप से बीमार थे. उनकी रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन होना था. ऐसी भयंकर विपदा में भी मालिक ने उन्हें सिफऱ् 10,000 रु का भुगतान ही किया. बोला, बाक़ी पैसा, काम शुरू करने पर मिल जाएगा. दोनों मज़दूर फिर काम पर लौट आए और अगस्त 2020 में उन्होंने फिर काम किया. ये मालिक मज़दूरों को उनकी मज़दूरी का भुगतान ना करने, मज़दूरों को गन्दी गालियाँ देने, उन्हें मारने-कूटने के लिए, पूरे सरूरपुर औद्योगिक क्षेत्र में कुख्यात है. बेहाल-परेशान, दोनों भाई, बृजेश कुमार एवं राकेश कुमार, पुलिस एसीपी श्री दलबीर सिंह के पास पहुंचे. उन्होंने उनकी हालत पर तरस खाया और मालिक को उनका भुगतान करने को बोला. उसके बाद भी मालिक, सिद्धार्थ सिंह ने सिर्फ 20,000/ का भुगतान ही किया.

मज़दूरों का 60,000 रूपया दो साल से बकाया है. मज़दूर, अपने पिताजी के इलाज के लिए, बाज़ार से 5त्न मासिक ब्याज पर पैसा लेकर, उनके पिताजी के ईलाज पर लगा चुके हैं. अब वे उस ब्याज का भुगतान करने लायक़ ही कमा पाते हैं. उनके पिताजी शिवचरण राम, जो जीवन भर लाल झंडे वाली ही एक यूनियन के कार्यकर्ता रहे हैं, का ऑपरेशन पैसे के अभाव में टलता गया और रोग बढ़ता गया जिसके परिणामस्वरूप शुरू में कम पैसों में हो जाने वाला ऑपरेशन, पूरे 2 लाख में हुआ.

बृजेश कुमार एवं राकेश कुमार, जब यू पी की पूर्वी सीमा पर बसे अपने गाँव अमांव, जिला चंदौली से, मज़दूरी करने के लिए दिल्ली, फरीदाबाद के लिए निकले थे, तब उनके पिताजी कॉमरेड शिवचरण राम उनसे एक बात कही थी, ‘बेटा, मज़दूर के सामने जब भी मुसीबत आए, तो उसे लाल झंडे वाली यूनियन के पास जाना चाहिए. संगठन के लिए काम को अपने काम का हिस्सा समझना चाहिए, उनका असली दोस्त वही होता है.’ बृजेश और राकेश खुद भी, अपने गाँव में रहते हुए, हाथ में लाल झंडा लिए, अपने पिताजी के साथ, कई मज़दूर मोर्चों में शिरक़त कर चुके थे. फऱीदाबाद में, उन्हें अभी तक मज़दूरों के लाल झंडे वाला संगठन नजऱ नहीं आया था. मज़दूर मोर्चा के संपादक कॉमरेड सतीश कुमार ने ही उन्हें ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ से संपर्क करने का सुझाव दिया. ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ की टीम, 23 जनवरी को, दोनों मज़दूरों के साथ सुबह 10.30 बजे ‘शिव मेटल्स’, सरूरपुर’ पहुंची. मालिक से, मज़दूरों की मज़दूरी का भुगतान करने का आग्रह किया. भुगतान वह करता ही नहीं. दो लोगों को बात-चीत के लिए अपने ऑफिस में आने को कहा. ‘हम सब ही शामिल रहेंगे’ कहकर, पूरी टीम ही अंदर चली गई. पहले उसके कुछ मुस्टंडे वहां हमें डराने के लिए प्रकट हुए, आस-पास मंडराते रहे. जब हम नहीं डरे तो उसने पुलिस को बुलाया. पुलिस ने भी उसे मज़दूरों का भुगतान करने को कहा और जब उसने नहीं किया, तो पुलिस हमें ये बोलकर चली गई,’अपनी जायज़ मज़दूरी के भुगतान की मांग शांतिपूर्वक करना आपका हक है. अगर मालिक आपके साथ दुर्व्यवहार करता है, तो आप भी हमें 112 न पर फोन कर सकते हैं, हम आपकी सुरक्षा के लिए भी हाजिऱ हो जाएँगे.’ मतलब पुलिस भी मालिक की मंशा को जान गई थी.

कारख़ाने की महिला मज़दूर बाहर सडक़ पर काम कर रही थीं, उन्हें महीने में कुल 8,000/ रु वेतन मिलता है, पीएफ, ईएसआई, कभी किसी मज़दूर का नहीं कटा, जबकि उस वक़्त जब बृजेश और राजेश काम करते थे, तब कारखाने में कुल 30 मज़दूर काम करते थे. गन्दगी का अम्बार है. मालिक न्यूनतम वेतन, बोनस, ओवर टाइम का तो भुगतान करता ही नहीं, जो वेतन तय हुआ है, वह भी नहीं देता. हमने सहायक श्रमायुक्त कामना मैडम से शिकायत की कि लेबर इंस्पेक्टर को कारख़ाने में भेजा जाए. हमारे फोन करने के 10 मिनट बाद ही मालिक को ख़बर लग गई और वह बाहर चला गया. इंस्पेक्टर रमेश कुमार लगभग 1 बजे वहां पहुंचे. महिला मज़दूर बाहर काम क्यों कर रही हैं? इसका जवाब मिला, इनका मालिक कोई और है. इंस्पेक्टर साहब इस उत्तर से संतुष्ट हो गए. हमने बताया कि ये महिलाऐं ख़ुद अभी बता रही थीं कि वे ‘शिव मेटल’ में ही काम करती हैं, रमेश कुमार ने कोई ध्यान नहीं दिया.

अन्दर के हाल देखकर भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा. वहां कोई भी रजिस्टर मेन्टेन नहीं होता, लेकिन इंस्पेक्टर साहब को ये सब जाँच करने की कोई ज़रूरत महसूस नहीं हुई. मालिक के ड्राईवर को उन्हें फोन लगाने को कहा और तुरंत बोले, ‘मैं लंच करने जा रहा हूँ , तब तक मालिक भी आ जाएगा’. इंस्पेक्टर रमेश कुमार जी का लंच पूरे ढाई घंटे में संपन्न हुआ. जव वे वापस आए तो उनके दिल से मालिक के प्रति प्रेमरस और करुणारस की गंगा बह रही थी. हम लोगों से बात करने में भी उन्हें कोई रुचि नहीं थी. दोनों मज़दूरों को अन्दर बुलाया और हमें उनके साथ जाने से रोका. मालिक और उसकी मित्र मंडली द्वारा धमकाए जाने के बीच, इंस्पेक्टर साहब ने हुक्म सुनाया, “जब मालिक तुम्हें दस-दस हज़ार के दो पोस्ट डेटेड चेक दे रहा है, तो ले क्यों नहीं लेते? ‘सर, आप हमारी शिकायत पर कोई ध्यान क्यों नहीं दे रहे?’ पूछने पर जवाब मिला, तुम्हारी शिकायत तो मेरे पास है ही नहीं. ‘ये लीजिए शिकायत’, कहने पर बोले, ‘मैं, ऐसे शिकायत नहीं लेता, दफ़्तर में आकर दो’. पहले उन्हें लगा था कि हमारे पास लिखित शिकायत नहीं है!! इंस्पेक्टर साहब के आदेश को मानते हुए, 24 जनवरी को इन मांगों के साथ शिकायत दे दी गई. कार्यवाही तो दूर की बात है, श्रम कार्यालय में शिकायत की पावती लेने के लिए भी काफ़ी ज़द्दोज़हद करनी पड़ती है.

1) 60,000 / की जगह 20,000/ देने के जिस समझौते की बात मालिक कर रहा था और जिससे प्रेरणा पाकर इंस्पेक्टर साहब, मज़दूरों को अपनी मेहनत-मज़दूरी के 40,000/ छोड़ देने के लिए जोर डाल रहे थे, वह क्या है? किस विवाद का है? उसकी एक प्रति हमें भी उपलब्ध कराई जाए.

2) बृजेश कुमार और राकेश कुमार की मज़दूरी के बाकी बचे पैसे 60,000/ रुपये, दो साल के 5त्न मासिक ब्याज की दर के साथ तत्काल दिलाए जाएँ.

3) ‘शिव मेटल्स’ नाम की इस फैक्ट्री द्वारा देश के श्रम कानूनों का अनुपालन ना करने के, हमारे आरोप की गंभीर जाँच की जाए. हमें इस कंपनी से काम छोड़ चुके मज़दूरों के विडियो भी प्राप्त हो रहे हैं, जिनमें वे बहुत बड़ी रक़म बक़ाया होने और इस मालिक द्वारा मज़दूरों को मारने-कूटने के आरोप लगा रहे हैं. हम ये विडियो भी आपको भेज रहे हैं. इस जाँच के बाद, इंस्पेक्टर रमेश कुमार के इस सवाल का जवाब मिल जाएगा जो उन्होंने बुलंद आवाज़ में मज़दूरों से किया था, “मज़दूर अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास तो जाते हैं, लेकिन हमारे पास नहीं आते!!”

4) फऱीदाबाद में मज़दूरों का शोषण-दमन-उत्पीडन अपने चरम पर है. मज़दूर गुस्से में उबल रहे हैं. सभी श्रम क़ानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करो. श्रम विभाग अभी मौजूद है; मज़दूरों और मालिकों, दोनों को ये बात मालूम पडऩी चाहिए. मज़दूरों को भी इंसान समझा जाए.

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Mazdoor Morcha
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