नगर निगम के लिये शर्मनाक : जलभराव से ‘निपटने’ का बीड़ा उठाया उपायुक्त ने

नगर निगम के लिये शर्मनाक : जलभराव से ‘निपटने’ का बीड़ा उठाया उपायुक्त ने
June 19 15:49 2022

फरीदाबाद (म.मो.) यहां तैनाती के अपने छोटे से कार्यकाल में उपायुक्त जितेन्द्र यादव ने भली-भांति समझ लिया है कि शहर में जल भराव को रोक पाना नगर निगम के वश की बात नहीं है। इनसे पहले यहां तैनात रही मंडलआयुक्त जी अनुपमा ने भी इस सच्चाई को पहचानते हुए तीन वर्ष पूर्व तत्कालीन निगम अधिकारियों की एक बैठक बुलाई थी। इसमें उनसे पूछा गया था कि जलभराव से निपटने के लिये क्या उपाय किये गये हैं? उस बैठक में निगमायुक्त अनिता यादव ने खुद न आकर अपने नुमाइंदे को भेजा था। मंडलायुक्त के सवाल का जवाब देते हुए एक्सईएन धर्म सिंह ने बताया था कि शीघ्र ही नालों की सफाई के लिये टेंडर जारी करने वाले हैं।

मंडलायुक्त ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा था कि बरसात का मौसम सिर पर आ चुका है और तुम लोग अभी टेंडर ही जारी करने जा रहे हो। जवाब में धर्म सिंह ने कहा था कि बस, एक दो दिन में टेंडर जारी हो जायेगा और उसके बाद तुरन्त काम हो जायेगा। वाकई ‘काम’ हो गया। क्या काम हो गया? टेंडर पास हो गये, बिल भी बन कर पास हो गये, रुपयों की बंदरबांट हो गई जबकि शहरवासी जलभराव से जूझते रहे। निगम अधिकारी केवल इतना ही काम जानते हैं जो वे हर साल करके दिखाते आ रहे हैं।

अब देखना है कि उपायुक्त महोदय जलभराव को बाढ़ का नाम देकर किस प्रकार इस मुसीबत से शहरवासियों को राहत दिला पायेंगे? इसे लेकर हाल ही में उपायुक्त ने जि़ले भर के अफसरों की बैठक बुलाई थी। इसमें जलभराव के 25 स्थान चिन्हित करके उन पर 25 ड्यूटी मजिस्ट्रेट तैनात कर दिये हैं। उनकी सहायता के लिये पूरा पुलिस विभाग, थानों के एसएचओ तथा तहसील के तमाम कर्मचारी तैनात होंगे। सिविल डिफेंस के 100 वालेंटियर भी तैनात किये हैं।

कहने को नगर निगम का तमाम स्टाफ भी इस काम में जुटेगा, लेकिन उनकी क्षमता तो केवल टेंडर पास करके कमीशन खाने तक ही सीमित रहती है। अजरोंदा चौक पर जब दो-दो फुट पानी भर जाता है तो निगम की ओर से सकर मशीनें यानी ऐसे ट्रैक्टर टैंकर जो पानी सक करके ले जाते हैं, को लगा दिया जाता है। इसके लिये मोटे-मोटे बिल बनते हैं और अच्छा-खासा कमीशन अफसरों की जेबों में आ जाता है।

इसलिये जलभराव का होना उनके लिये मुनाफे का धंधा है। बिजली विभाग वालों को भी आपूर्ति जारी रखने की हिदायत दी गई है ताकि डिस्पोजल की मोटरें चलती रह सकें। यहां समझने वाली बात यह है कि आंधी, तूफान, बारिश में बिजली की सप्लाई बनाये रखना इस विभाग के वश में नहीं है। इसी के मद्दे नज़र डिस्पोजलों पर जनरेटरों की ब्यवस्था की गई है। उपायुक्त को चाहिये कि इन जनरेटरों को सुचारु रखने को सुनिश्चित करें जो आम तौर पर संकट काल में चल नहीं पाते।

सारी बैठक में एक ही अक्ल की बात सामने आई कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने एस्कॉर्ट फैक्ट्री के सामने रेन हार्वेस्टिंग की व्यवस्था की है। वास्तव में यही व्यवस्था सर्वोत्तम भी है। लेकिन यह तभी सर्वोत्तम हो सकता है जब इसके निर्माणकर्ता भ्रष्ट एवं निकम्मे न हों। कहने की जरूरत नहीं कि पानी स्वत: ढलान की ओर बढता है। मूर्ख वास्तुकारों द्वारा बनाये गये नक्शों एवं अवैध निर्माणों ने पानी के प्राकृतिक बहाव को रोक दिया। इसके चलते अमृत समान बरसाती पानी जनता के लिये मुसीबत बन गया।

बरसात से पहले उफनते सीवरों को तो सम्भाल लीजिये!
बरसात का पानी तो सडक़ों पर भरेगा सो भरेगा उसमें जो सीवर का गंध घुलेगा वह मुसीबत को और भी बढ़ा देगा। सीवर व्यवस्था को चुस्त-दुरु स्त करने के लिये बरसात के आने की प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है। इसे तो हर समय ही व्यवस्थित रहना चाहिये। उसके अलावा बिना बरसात के भी जहां-जहां पानी खड़ा है उसे आज भी सम्भाला जा सकता है। बाटा मोड़ से दिल्ली की ओर चलें तो सडक़ किनारे सदा ही पानी खड़ा रहता है। इसी तरह बल्लबगढ़ से पलवल की ओर चलें तो जेसीबी प्लांट के सामने आज भी दो-दो फीट पानी खड़ा है। इसके अलावा और भी ऐसे अनेकों प्वाइंट हैं जिन्हें बरसात से पहले सम्भाल लेना चाहिये।

25 मैजिस्ट्रेट व पुलिस कैसे जलभराव रोकेंगे? सुनने में बड़ा हास्यास्पद लगता है कि मैजिस्टे्रट और पुलिस वाले खड़े पानी को कैसे खदेड़ेंगे? अब तक तो प्रदर्शनकारी भीड़ को तो इनके द्वारा खदेड़े जाते देखा गया है परन्तु पानी को ये बेचारे कैसे खदेड़ पायेंगे? हां, अब तक तो पुलिस वालों को, जाम में फंसे वाहनों को किसी तरह निकालने में मदद करते तो देखा गया है। बरसते पानी की परवाह न करते हुए घुटने-घुटने तक पानी में वाहनों को धक्का लगाते हुए भी पुलिस वालों को देखा गया है।

परन्तु मैजिस्ट्रेट साहब यहां क्या कर पायेंगे समझ से परे है। हां, यदि पर्याप्त समय रहते जलभराव से निपटने के उपाय एवं सुझाव उनसे पूछे जाते तो वे जरूर कुछ काम की बात बता सकते थे। वैसे जहां तक काम की बात का सवाल है नगर निगम वालों को वह कभी समझ आ ही नहीं सकती। जल भराव से निपटने के अनेकों उपाय ‘मज़दूर मोर्चा’ अनेकों बार प्रकाशित कर चुका है जिन पर कोई विशेष खर्चा भी नहीं। परन्तु बिना खर्चे वाले काम से निगमकर्मियों की जेब में क्या आयेगा? इसलिये उनके लिये तो हर वर्ष जल भराव तथा उसकी निकासी के नाम पर टेंडर जारी करने में ही शुभ-लाभ होता है।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles