फरीदाबाद (म.मो.) इन्स्पेक्टर सूरजपाल करीब दो सप्ताह पूर्व ही थाना सूरजकुंड का एसएचओ तैनात हुआ था। इसी थाना क्षेत्र से बड़ी मात्रा में होने वाली शराब तस्करी करने वाले गिरोह ने जब नये एसएचओ को घास नहीं डाली व मिलने तक नहीं आये तो बुधवार की रात को एसएचओ साहब तीन पुलिसकर्मियों को लेकर खडिय़ा खान वाले उस ठेके पर जा पहुंचे जहां से दिल्ली के लिये शराब निकलती है। एसएचओ ने वहां मौजूद तीन-चार कारिंदों को जब थानेदारी दिखाई तो उन लड़कों ने अपने आका बंटी व सरजीत को फोन लगाया, तुरंत ही पचासों लड़कों का गिरोह मौके पर पहुंच गया। गांव अनंगपुर के इन लड़कों की जानकारी रखने वालों की मानें तो उन्होंने एसएचओ को न केवल गालियां दीं बल्कि धक्का-मुक्की व थप्पड़-चट्टू भी लगा दिये।
इसी खुंदक में दो-तीन दिन बाद एसएचओ साहब गांव में सरजीत के घर पहुंच गये, साथ में वही तीन पुलिसकर्मी। सरजीत को गिरफ्तार करने का बहाना था मुकदमा नम्बर 267 जो 2020 में उसके विरुद्ध कच्ची शराब तोडऩे को लेकर दर्ज किया गया था।
सरजीत को घर से निकाल कर ज्यों ही जिप्सी में बैठाया जा रहा था, उसने पुलिस से हाथापाई शुरू कर दी। इसे देखते ही उसके घर की महिलायें व गिरोह के अन्य लड़के पुलिस पर टूट पड़े, अच्छी-खासी पिटाई के बाद पुलिस बैरंग थाने लौट आई।
एसएचओ सिर में लगी चोट की मरहम पट्टी कराने जब बीके अस्पताल आये तो किसी पत्रकार ने उनसे पूछताछ कर ली तो इस फजीहत का राज खुल गया, वरना इस फजीहत को भी बुधवार की रात वाली फजीहत की तरह एसएचओ पी जाता।
सुधी पाठक भली-भांति समझ गये होंगे कि एसएचओ का लक्ष्य न तो शराब तस्करी रोकना था और न ही सरजीत को कोई सज़ा दिलाना था, उनका एकमात्र उद्देश्य तो अपनी सेटिंग करना था। वरना, यदि तस्करी रोकना मकसद होता तो एसएचओ पूरी फोर्स लेकर मजबूती के साथ तस्करों पर धावा बोलता। और तो और बुधवार रात को तस्करों के हाथों हुई अपनी फजीहत को लेकर भी एसएचओ ने कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं की।
तस्करों के प्रति नर्मी का कारण सुधी पाठकों ने पिछले अंकों में पढ़ लिया होगा कि थाना डबुआ में तैनाती के दौरान सोहनपाल के विरुद्ध गंभीर शिकायतों के फलस्वरूप उन्हें सीपी अरोड़ा द्वारा लाइन हाजिर कर दिया गया था। फिर यकायक उन्हें सूरजकुंड जैसे अति मलाईदार थाना सौंप दिया गया। यह सब यूं ही नही हो गया। इसके लिये स्थानीय सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर ने सीपी से सिफारिश की तो उन्होंने साफ कह दिया था कि सोहनपाल पुलिस लाइन से बाहर निकालने लायक नहीं है। इस पर कृष्णपाल ने मुख्यमंत्री खट्टर को कहा जिन्होंने आगे डीजीपी प्रशान्त अग्रवाल से कह कर सोहनपाल को सुरजकुंड थाने का एसएचओ तैनात करा दिया। बतौर सीपी हनीफ कुरैशी की तैनाती के दौरान जब सोहनपाल पाली चौकी इन्चार्ज थे तो गंभीर शिकायतों के चलते निलम्बित कर दिये गये थे, परन्तु मंत्री कृष्णपाल द्वारा उन्हें तुरन्त न केवल बहाल करा दिया गया था बल्कि पदोन्नत करा कर इन्स्पेक्टर भी बनवा दिया गया था। दरअसल सोहनपाल गूर्जर होने के नाते कृष्णपाल के मामा राजपाल के प्रति अति वफादार एवं ताबेदार रहे हैं। मामा के इशारे पर वह कुछ भी कर गुजरने को सदैव तत्पर रहते हैं। ऐसे वफादार को भला मामा जी कैसे लाइन में रहने दे सकते थे।
थाना सूरजकुंड के रास्ते होने वाली शराब तस्करी फार्म हाउसों में चलने वाले अवैध धंधे तथा कई अन्य काले-पीले धंधे मामा की मोटी कमाई के स्रोत हैं। इस लूट कमाई से पुलिस को जाने वाली मोटी मंथली को भी खुद पचाने के लिये मामा ने अपने इस वफादार को सूरजकुंड में तैनात कराया था। मामा द्वारा जिसे लाइन से निकलवा कर सूरजकुंड जैसा थाना दिलवाया हो तो फिर भला उसे मामा के कारोबार से मंथली किस बात की? लेकिन सोहनपाल एसएचओ होते हुए भला कैसे चुपचाप इस लूट में से अपना हिस्सा छोड़ सकता था, लिहाजा ये सब फजीहत भरे कांड होने लगे। कांड तो हुए लेकिन उसके बावजूद पुलिस ने वह सब कुछ नहीं किया जो ऐसे में पुलिस को करना चाहिये था। क्यों? क्योंकि मामा की ओर से आदेश प्राप्त हो गये थे कि वे खुद सरेंडर करा देंगे और उन्हें चुपचाप व बाइज्जत कोर्ट में पेश करा दिया जाए।
यहां सीपी साहब पर भी सवाल उठना लाजमी है। आखिर जि़ले भर की पुलिस के मुखिया तो वे ही हैं। मान लिया कि उनके न चाहते हुए भी डीजीपी के आदेश पर सोहनपाल को थाना सूरजकुंड सौंप दिया गया परंतु सीपी कोई एक एसएचओ के भरोसे थोड़े ही इलाका चला रहे हैं। उनके पास अफसरों व अन्यकर्मियों की लम्बी-चौड़ी फौज है। वह और कुछ नहीं तो खडिय़ा खान के ठेके सहित तस्करी के तमाम रास्तों को सील कर सकने की शक्ति रखते हैं। यदि वे वास्तव में ही ईमानदार हैं और शराब तस्करी को रोकना चाहते हैं तो फिर ज़रा खुल कर मैदान में आएं। ईमानदार एवं कर्मठ हैं तो दिखने भी चाहिए।