परिवहन मंत्री मूलचंद का विभाग फिर से पुलिस के पहरे में

परिवहन मंत्री मूलचंद का विभाग फिर से पुलिस के पहरे में
September 13 14:05 2021

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
परिवहन विभाग के प्रधान सचिव पद पर तैनात शत्रुजीत कपूर के पदोन्नत होकर डीजीपी विजिलेंस लग जाने के बाद विभाग के मंत्री एवं बल्लबगढ से विधायक मूलचंद शर्मा को शायद एक बार यह उम्मीद बंधी हो कि अब उनका विभाग पुलिस के शिकंजे से मुक्त हो पायेगा और उनकी अपने विभाग में थोड़ी-बहुत चल पिल सकेगी। लेकिन बीते सप्ताह खट्टर ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए इस पद पर एडीजीपी कला रामचंद्रन को नियुक्त कर दिया। कला रामचंद्रन 1996 बैच की आईपीएस अधिकारी है; वे बीते कई वर्षों से भारत सरकार के आईबी में अपनी सेवायें दे रही थी उनकी तैनाती चंडीगढ में ही थी।
केन्द्र से वापस आने के बाद हरियाणा सरकार उनकी ईमानदारी, काबिलियत एवं इंटिग्रिटी को देखते हुए कोई अच्छी पोस्टिंग देना चाहती थी। भरोसेमंद सूत्रों की यदि मानें तो उन्होंने फरीदाबाद व गुडग़ांव का सीपी बनना इस लिये स्वीकार नहीं किया कि वे स्थानीय राजनेताओं के साथ ताल-मेल नहीं बैठा पायेंगी। इसी चक्कर में वे कुछ माह बिना किसी तैनाती के रहीं। अब महकमाना रद्दोबदल होने के चलते उनके लायक एक बेहतरीन पोस्ट सरकार को नज़र आई तो उन्हें यह नियुक्ति मिली।

शासक वर्ग के भीतर लूट-कमाई के बंटवारे की सटीक जानकारी रखने वालों का मानना है कि रामबिलास शर्मा के चुनाव हार जाने के चलते ब्राह्मण कोटे का मंत्री पद तो मूलचंद को मिल गया लेकिन खट्टर सबसे अधिक लूट-कमाई का परिवहन विभाग मूलचंद को नहीं देना चाहते थे। राजनीतिक दबाव व घेराबंदियों के चलते, मजबूरन खट्टर को न केवल परिवहन बल्कि माइनिंग विभाग भी मूलचंद को देने पड़े। विभाग तो दे दिये लेकिन मूलचंद के मुंह पर छीकी लगाने का काम करते हुए सर्वप्रथम आईजी अमिताभ ढिल्लों के नेतृत्व में एक अच्छी-खासी टीम खड़ी कर दी जिसका काम अवैध माइनिंग व ट्रकों यानी डम्परों की ओवरलोडिंग तथा अवैध माल ढोने को सख्ती से रोकना था। बीते वर्ष पाठकों ने नोट किया होगा कि किस तरह आये दिन पुलिस की ये स्पेशल टीमें अवैध माल ढोने वाले डम्परों से टकरम-टकरा हो रही थी। इसी दौरान मंत्री महोदय खुद भी सड़कों पर छापेमारी का नाटक करके यह दिखाते रहे कि वे भी मंत्री हैं और यह सारा अभियान उन्हीं के नेतृत्व में चल रहा है।

खट्टर द्वारा किया गया उपाय काफी नहीं था। राज्य भर में फैले हुए आरटीओ कार्यालय भ्रष्टाचार के अड्डे होने के साथ-साथ मंत्री महोदर की सेवा-पानी भी ठीक-ठाक कर रहे थे। इसके अलावा परिवहन विभाग में भ्रष्टाचार का थोक व्यापार चंडीगढ स्थित इसके मुख्यालय से चलता था। इन सब धंधों पर नकेल कसने के लिये खट्टर ने अमिताभ ढिल्लों को विभाग का आयुक्त तथा शत्रुजीत कपूर को प्रधान सचिव तैनात किया था। कपूर की कार्यकुशलता एवं ऊपरी स्तर पर सिस्टम को चुस्त-दुरूस्त करने में उनकी योग्यता के कायल तो खट्टर पहले से ही थे। इन दो शीर्ष नियुक्तियों के अतिरिक्त राज्य भर में तैनात आरटीओ पदों पर भी डीएसपी नियुक्त कर दिये गये। इस से पहले यह चार्ज जि़लों के एडीसी (अतिरिक्त उपायुक्तों) को भी देकर देखा गया था। लेकिन खट्टर सरकार को इससे संतुष्टि नहीं हुई तो ये तमाम पद भी पुलिस को ही सौंप दिये गये।

खट्टर की इस रणनीति से मंत्री महोदय के मुंह पर लगी छीकी कितनी कामयाब हो पाई यह तो नहीं कहा जा सकता, परन्तु निचले स्तर यानी जि़ला स्तर पर विभागीय भ्रष्टाचार में कोई कमी आई नहीं लगती। हां, अन्य राज्यों को जाने वाली एनओसी, परमिट फीस के ड्राफ्ट आदि में जो गबन आदि हो जाया करते थे, वे जरूर कम्प्यूटर व ऑनलाइन सिस्टम के चलते काबू में आ सके हैं। इसके अलावा उच्च स्तर पर होने वाली भारी-भरकम खरीद से मिलने वाले कमीशन की मॉनिटरिंग भी कुछ नियंत्रण में आ गयी होगी।
लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि क्या यह सब करने के लायक कोई आईएएस अफसर खट्टर के पास नहीं हैं? क्या हरियाणा में तैनात सभी आईएएस एकदम नाकारा व बेइमान हैं? यदि ऐसा है तो सरकार ने उन्हें क्यों पाल रखा है? सर्व विदित है कि कोई भी अफसर डकैतियां केवल तब ही मारता है जब उसके ऊपर बैठे राजनेता का आशीर्वाद एवं संरक्षण उसे प्राप्त हो। इसके चलते पूरे राज्य में ही भ्रष्टाचार का खुला तांडव हो रहा हो तो एक परिवहन विभाग या उसके ‘गरीब मंत्री के मुंह पर छीकी लगाने का क्या मतलब? आखिर उसने भी करोड़ों खर्च करके चुनाव जीता है, अगले चुनाव में फिर खर्च करना है, यह सब आखिर कहां से आयेगा, मात्र मिठाई बेचने से तो आने से रहा।

दूसरा अहम सवाल यह भी है कि उक्त तीनों पुलिस अधिकारी जब इतने ही बढिया हैं तो क्या पुलिस महकमे में इनके करने लायक कुछ नहीं? क्या पुलिस महकमे को इन अफसरों ने इतना पाक-साफ बना दिया कि अब इनकी वहां जरूरत नहीं, अब इनसे अन्य विभागों का शुद्धिकरण कराया जायेगा?

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