फरीदाबाद (म.मो.) शहर भर में फैले व्यापारिक अस्पतालों की लूट-मार व लापरवाही से मरीज़ों को मौत के घाट उतारने के मामलों की जांच करने के लिये खट्टर सरकार ने वर्ष 2017 में एक बोर्ड का गठन किया था। इसमें चार सरकारी डॉक्टर और चार प्राइवेट डॉक्टरों के अलावा भारतीय मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष डॉक्टर हसीजा व जि़ले के सिविल सर्जन बतौर अध्यक्ष होते हैं। अब तक इसमें आई लगभग 88 शिकायतों में से इस बोर्ड को कोई भी अस्पताल या डॉक्टर दोषी नहीं मिला।
सैनिक कॉलोनी निवासी तरूण चोपड़ा द्वारा मैट्रो अस्पताल के खिलाफ इस बोर्ड में की गई शिकायत ने तो इस बोर्ड को बिल्कुल ही नंगा करके रख दिया। तरूण की माता जी का देहांत मैट्रो अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही एवं लालच के चलते हो गया था। इस बाबत तरूण ने सीधे स्वास्थ्य मंत्री अनिल बिज को शिकायत भेजी थी। वहां से चिकित्सा सचिव द्वारा हरियाणा के स्वाथ्य महानिदेशक के माध्यम से यह शिकायत फरीदाबाद के सिविल सर्जन को भेजी गई थी। उन्होंने यह शिकायत सुनवाई के लिये अपने बोर्ड में लगा दी। इसकी पहली सुनवाई 16 सितम्बर 2021 को हुई तथा पांचवीं सुनवाई 12 नवम्बर 2021 को हुई। मजे की बात तो यह है कि तरूण हर सुनवाई में पेश होता रहा जबकि मैट्रो ने इसे कोई तवज्जो न देते हुए मात्र दो पेशियों में अपनी हाजरी लगवाई। पांच पेशियों के बाद विशिष्ट डॉक्टरों ने हतप्रभ करने वाला यह फैसला सुनाया कि वे इस काबिल ही नहीं हैं कि इस केस में कोई आदेश पारित कर सकें। यानी खोदा पहाड़ और निकली चुहिया, और वह भी मरी हुई।
इस बोर्ड का यह कहना है कि वे इस लायक ही नहीं हैं कि शिकायत में ‘स्लेलुप्स’ बिमारी का उल्लेख किया गया है उसके बारे में वे कुछ नही जानते; लिहाज़ा इस शिकायत को अन्यत्र कहीं ज्यादा पढे-लिखे एवं काबिल डॉक्टरों के पास भेजा जाए।
इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार ने यहां जो डॉक्टर बैठा रखें हैं वे किसी काम के नहीं हैं। मैट्रो अस्पताल के जो डॉक्टर उस बिमारी का इलाज कर रहे थे वे बोर्ड में बैठे इन तमाम आठ डॉक्टरों से कहीं अधिक काबिल एवं उच्च प्रशिक्षित रहे होंगे। तो क्या सरकार को भर्ती करने के लिये केवल नालायक डॉक्टर ही उपलब्ध होते हैं? यदि ऐसा है तो खट्टर साहब ने ऐसा बोर्ड क्या सोच कर बनाया था?