फरीदाबाद (म.मो.) शायद ही कोई ऐसा दिन होता होगा जिस दिन इस अस्पताल की लैब में कोई काम सही ढंग से होता हो, यहां जरूरत से आधे कर्मचारी और वे भी ठेकेदारी में रखे जाते हैं। जांच करने के लिये आवश्यक मशीनों-उपकरणों का नितांत आभाव रहता है। कमिशनखोरी के आधार पर खरीदी गई मशीने अक्सर खराब रहती है। रही-सही कसर, बीते पखवाड़े एसी ने खराब होकर पूरी कर दी। एसी भी खराब क्यों न हो जब वह भी कमिशनखोरी द्वारा ही खरीदा गया हो। ऐसे में मरीज़ों से खून आदि के सैंम्पल तो लिये जाते रहे लेकिन खराब मशीन व कम स्टाफ के चलते उन पर 20 दिन तक काम नहीं हो सका। एसी खराब होने से तमाम सैंम्पल बिगड़ गये तो मरीज़ों से दोबारा सैम्पल मांगे जा रहे हैं।
भ्रष्ट एवं कुप्रबंधन के चलते कभी यहां बिजली गुल रहती है तो कभी मशीने खराब रहती है तो कभी स्टाफ नहीं रहता, ऐसे में दोबारा या तेबारा सैम्पल देने के बाद क्या गारंटी है कि रिपोर्ट मिल जायेगी? इतना ही नहीं यदि रिपोर्ट मिल भी गई तो उसके भरोसे की कोई गांरंटी नहीं। अक्सर इनके द्वारा दी गई रिपोर्ट गलत पाई जाती है। ऐसे में डॉक्टर मरीज़ो को बाहर से टैस्ट कराने की सलाह देते हैं। बाहर का मतलब अस्पताल के ठीक सामने छोटी-छोटी दुकाने खोले बैठे लैबोरेट्री वाले होते हैं। हैरानी की बात है कि इतने बड़े सरकारी अस्पताल की लैब जो कुछ न कर सके वह बाहर बैठे छोटे-छोटे दुकानदार कर देते हैं। इस खेल में डॉक्टरों को भी काफी लाभ रहता है क्योंकि शाम तक तमाम टेस्टों से होने वाली कमाई का आधा हिस्सा सम्बन्धित डॉक्टरों तक पहुंच जाता है।
पिछले दिनों सरकारी नौकरी ग्रहण करने से पहले आवश्यक मेडिकल जांच करा कर प्रमाणपत्र लेने आये कुछ लोगों ने बताया कि लैबोरेट्री का उपकरण खराब होने के चलते उन्हें अगले दिन आने को कहा गया लेकिन जब उन्होंने बाहर से टैस्ट करा कर रिपोर्ट पेश की तो उसे मानने से इन्कार कर दिया। मतलब साफ था कि कुछ सुविधा शुल्क दिया जाय तो बात बने। इन्हीं लोगों ने बताया कि इस मेडिकल प्रमाणपत्र के लिये उनसे बतौर सरकारी फीस 500 रुपये वसूले गये थे। राजपत्रित अधिकारियों के मामले में यह फीस बढ़ कर 1500 रुपये हो जाती है। इसके बावजूद मेडिकल जांच के नाम पर अभ्यार्थियों को किसी न किसी बहाने दो से तीन दिन तक अस्पताल के चक्कर लगवाये जाते हैं। यही है खट्टर एवं विज सरकार का भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन।