फरीदाबाद (म.मो.) 15-21 अगस्त के अंक में ‘मज़दूर मोर्चा ने मंझावली स्थित यमुना पुल की सातवीं वर्षगांठ मनाते हुए इसका शिलान्यास करने वाले मंत्रियों को शर्मशार किया था। वैसे तो इन मोटी चमड़ी वाले नेताओं का शर्म से कोई ताल्लुक होता नहीं, परन्तु फिर भी इन बयानवीरों ने इस मुद्दे को ठंडे बस्ते से निकाल कर बयान देने तो शुरू किये, चाहे झूठे ही हो। इसी सप्ताह अखबारों में छपवाया गया है कि पुल तक पहुंच सड़क बनाने के लिये किसानों से ज़मीन खरीदने की बात चल रही है। वैसे इस तरह की बात चलने व इसके लिये कमेटी गठित करने सम्बन्धी बयान केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर कई बार दे चुके हैं। इसके अलावा पुल के निर्माण कार्य पूरा होने की डेडलाईन जनवरी 2022 भी घोषित कर दी गयी है। इस तरह की डेडलाईन पहले भी कई बार घोषित की जा चुकी हैं। सबसे पहली बार आधारशिला रखते वक्त केन्द्रीय सड़क मंत्री नितिन गडकरी ने यह दो वर्ष रखी थी।’मज़दूर मोर्चा ने इन बयानवीरों की हकीकत को समझते हुए उसी वक्त लिख दिया था कि ये दो वर्ष में पुल चालू करने की बात करते हैं, इतने समय में यदि ये लोग डीपीआर भी बना दें तो बहुत बड़ी बात होगी; वही हुआ भी दो साल में पुल तो क्या डीपीआर, जो एक कागजी कार्यवाही होती है, तक नहीं बना सके।
नई डेडलाईन घोषित करते वक्त बयानवीर नेता यह राग अलापना नहीं भूले कि पुल के बन जाने से नौएडा जाना कितना आसान हो जायेगा, कहां-कहां से आनेवालों को दिल्ली में घुसे बगैर नोयडा जाने से कितनी बचत होगी। अरे बयानवीरों इस होने वाली संभावित बचत का तो सब को पता है, यह क्यों नहीं बताते कि हमारी काहिली एवं हरामखोरी से अब तक, दिल्ली का चक्कर लगा कर नौयडा जाने वाले कितने अरबों रुपये का घाटा उठा चुके है और पर्यावरण को जो हानी हुई वह अलग से।