पलवल (म.मो.) 13 नवम्बर 2021 को गांव फिरोजपुर का 21 वर्षीय पवन हाइवे पर ट्रक द्वारा कुचले जाने से मारा गया था। यह हादसा नहीं था बल्कि पुलिस द्वारा लूट के लिये रचा गया एक चक्रव्यूह था जिसकी बलि पवन चढ़ गया। इसका पूरा विवरण 21-27 नवम्बर 2021 के अंक में प्रकाशित किया गया था। ग्रामीणों द्वारा हाइवे जाम कर देने के बाद भारी पुलिस बल व एसडीएम पलवल वैशाली मौके पर पहुंची। ग्रामीणों को समझा-बुझा कर तथा मृतक के परिजनों को वाजिब मुआवजा देने का लालच देकर धरना समाप्त करा दिया था।
उसी मुआवजे को लेने 17 जनवरी 2022 को ग्रामीण अपने विधायक नयनपाल रावत के साथ एसडीएम के पास पहुंचे थे। मुआवजा तो गया ऐसी-तैसी में, न तो किसी ने देना था न ही कोई सम्भावना है। हां, गांव वालों को यह समझा दिया गया कि पूरे शहर का कूड़ा उनके गांव की पंचायती ज़मीन पर डलेगा। किसी भी विरोध को सख्ती से दबा दिया जायेगा। ग्रामीण अपना सा मुंह लेकर लौट आये। अगले ही हफ्ते अनेकों ट्रकों में लद कर शहर भर का गंद उनकी ज़मीन पर डाल दिया गया। किसी भी संभावित विरोध से निपटने के लिये दो बसों व अनेकों जिप्सियों में पुलिस बल मौके पर तैनात कर दिया गया था। गांव वालों की हिम्मत नहीं पड़ी कि चूं भी कर पाते। विदित है कि इससे कुछ माह पूर्व जब पलवल नगर परिषद ने यहां कूड़ा डालना शुरू किया था तो ग्रामीण वहां धरना देकर बैठ गये थे और कूड़े को वहां गिरने से रोक दिया था।
पिछले दिनों हुई सीमाबंदी के तहत अनेकों गांवों के साथ-साथ फिरोजपुर गांव को भी नगर परिषद ने शामिल कर लिया गया था। कहने को तो इसे गांवों का शहरीकरण कहा जाता है। यानी कि जो शहरी सुविधायें नगर परिषद अपने नगर वासियों को देता है वही सब नागरिक सुविधायें ग्रामीणों को भी उपलब्ध कराई जायेंगी। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल भिन्न है। इसके पीछे शासक वर्गों का असल उद्देश्य ग्राम पंचायतों के खातों में जमा धन राशि व उनके पास मौजूद पंचायती ज़मीनों को हड़पना है। इसी प्रक्रिया के तहत गांव की बीसियों एकड़ बेशकीमती ज़मीन को कूड़ा घर बना दिया गया है।
नगर परिषद के चुनाव सर पर हैं। अनेकों महत्वाकांक्षी राजनीतिक खिलाड़ी पार्षद बनने की इच्छा पाले तो घूम रहे हैं लेकिन गांव के साथ हो रही इस धोखाधड़ी एवं अन्याय के विरुद्ध जबान खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। उन्हें डर लगता है कि कहीं सरकार, स्थानीय विधायक एवं अफसर नाराज न हो जायें। उन्हें जनता के हितों के लिये संघर्ष करके चुनाव जीतने की अपेक्षा सरकारी आशीर्वाद से जीत का ज्यादा भरोसा है।