लूट शौच के मज़े

लूट शौच के मज़े
October 08 14:08 2022

संजय सिन्हा
पुणे के फिनिक्स मॉल में घूमते हुए मेरी नजऱ ग्राउंड फ्लोर पर सबसे महंगी दुकानों के बीच एक शौचालय पर पड़ी। तमाम शानदार दुकानों के बीच फाइव स्टार शौचालय? आप देखते ही कह उठेंगे, वाह!

संजय सिन्हा के भीतर का पत्रकार रह-रह कर जागता है। उन्होंने तय किया कि भीतर जाकर देखा जाए, आखिर क्या है ये? बाहर एक बड़ा-सा जार रखा था जो रुपए से भरा था। जाहिर है, ऐसे जार, डिब्बे जहां रखे होते हैं, वो इस बात का प्रचार कर रहे होते हैं कि ये ‘गुड वर्क’ के लिए जमा किया गया धन है। इंगलिश में इसे चैरिटी कहते हैं, हिंदी में दान। मतलब दान दीजिए, शौच कीजिए। संजय सिन्हा को साफ-साफ पूछने की आदत है तो उन्होंने पूछ लिया कि भीतर जाने की कितनी फीस है।

“बीस रुपए। और अगर अमेरिकन एक्सप्रेस का कार्ड है तो उसे स्कैन करा कर फ्री भी जा सकते हैं। मतलब अमेरिकन एक्सप्रेस के साथ कोई समझौता है कि कार्डधारी के शौच का खर्च कंपनी भुगतेगी।

आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा बिना बात की कहानी क्यों सुना रहे हैं। देश में सुलभ शौचालय तो पहले से है, जहां जाने के बदले कुछ शुल्क दिया ही जाता रहा है। फिर कहानी क्यों? संजय सिन्हा अगमजानी हैं। भविष्य को पढ़ लेते हैं। बहुत साल पहले जब वो पूरी तरह जवान हो चुके थे, शादी हो चुकी थी, एक बच्चे के पिता भी बन चुके थे, तब जब वो फिल्म स्टार संजय खान के साथ एक टीवी सीरियल की शूटिंग में राजस्थान भ्रमण पर गए थे तो वहां मिनरल वाटर की बोटल में पानी पीने को उन्हें मिला था। बहुत से पत्रकार तो देख कर उछल पड़े थे, पर संजय सिन्हा सोच में डूब गए थे। उन्होंने उसी दिन अपने साथी से कहा था कि हमारे घर की रसोई का पानी जल्दी ही पीने योग्य नहीं रहेगा। अभी तो सिनेमा सितारा की पार्टी में ये पानी पीने को मिला है, पर ये अब घर में घुस जाएगा। आपकी जेब से रुपए ऐंठने वाले अब आपकी रसोई की पानी के साथ कुछ ऐसा करेंगे कि मुंह में जाने वाला पानी जहर लगने लगेगा।

बहुत पुरानी बात नहीं है। मेरी शादी के ही कुल 32 वर्ष हुए हैं तो ये समझ लीजिए कि कहानी कोई 30 साल पुरानी होगी। 30 साल पहले रसोई में आने वाला पानी पीने योग्य होता था। मटके में भर कर हम पीते थे। फ्रिज में रख कर पीते थे। किसी दिन गंदा पानी आया तो नल की टोंटी पर कपड़ा बांध दिया गया। बस इतनी ही छन्नी काफी थी।

फिर मिनरल वाटर आया। फिर वाटर फिल्टर आया। याद है न स्टील वाला फिल्टर? जिसमें एक डिब्बे में पानी भरते थे, वो छन कर नीचे आता था। फिर टाटा कंपनी का एक्वागार्ड आया। वो अल्ट्रा वायलेट किरणों से उन किटाणुओं को मार देते थे, जो पता नहीं किसे नुकसान पहुंचाते थे। फिर आरओ वाटर फिल्टर आया। केंट कंपनी के आरओ को हेमा मालिनी ने बहुत बेचा। और एक समय आ गया जब नल का पानी बिना आरओ, बिना एक्वागार्ड के जहरीला हो गया।

देश में एक सरकार होती थी। सरकार है। किसी सरकार ने इन कंपनियों से पूछने की जहमत नहीं उठाई कि आप लोग जिस पानी को जहरीला, जानलेवा कह कर अपना फिल्टर बेच रहे हैं, वो पानी हम सप्लाई करते हैं। देश में जल मंत्रालय है। ऐसे कैसे आप हमारे काम को नकार कर अपना माल बेच सकते हैं। सरकार को कायदे से इन कंपनियों को सरकार के कार्य में दखल देने और उनके कार्य की मानहानि के खिलाफ सजा देनी चाहिए थी। पर कौन किसे टोकता? किसे रोकता?

बहुत बड़ी बात नहीं कह रहा, हो सकता है भविष्य में ऐसा हो भी जाए पर संजय सिन्हा अगर पानी मंत्रालय में होते तो उन सभी कंपनियों पर जुर्माना ठोक देते, जो नल से आने वाले पानी को जहरीला बताते हैं। कहते कि तुमने हमारे दिए पानी को खराब कैसे कहा?

वो अगर शिक्षा मंत्री होते तो सभी प्राइवेट संस्थानों पर जुर्माना ठोक देते कि तुमने हमारी शिक्षा की व्यवस्था को कैसे खराब कह कर अपनी समानांतर शिक्षा शुरू कर दी? यही मैं हेल्थ के मामले में करता।

पर अभी कोई ऐसा नहीं करता है। क्यों करे? सरकारी स्कूल खराब किए गए ताकि प्राइवेट का धंधा चले। सरकारी पानी को खराब किया गया, ताकि फिल्टर का धंधा चले। पानी बिके। सरकारी अस्पताल बिगाड़े गए ताकि प्राइवेट का कारोबार चमके।

बहुत सी बातें हैं। सब लिखने बैठूंगा तो कहानी इधर से उधर हो जाएगी। हवा बिकने लगी है ये तो आपको पता ही है। दिल्ली में तो घर में सांस लेने वाली हवा जहरीली हो चुकी है। हर कमरे में एयर प्युरिफायर की दरकार हो चुकी है।

कभी-कभी तो मुझे लगता है कि पंजाब में पराली भी एयरप्युरिफायर कंपनी वाले पैसे देकर जलवाते होंगे कि जलाओ, दिल खोल कर जलाओ। मेरा माल दिल्ली में बिकेगा। अब पटाखे भी लोग दिवाली पर नहीं छोड़ते। पर छूटते खूब हैं। कहीं वहां भीज्.?

छोडि़ए, अभी बात पुणे के एक शानदार मॉल में एकदम ग्राउंड फ्लोर जहां प्रीमियम दुकानें हैं, वहां तमाम शानदार दुकानों के बीच शौचालय?
मैं भीतर गया। लगा कि स्वर्ग में आ गया हूं। फाइव स्टार। न मन हो तो भी भीतर जाकर आदमी दस मिनट बैठ ले। चारों ओर खुशबू। एक आदमी हर पल सफाई में जुटा। बाहर काउंटर पर एक लडक़ी बैठ कर स्वागत करती हुई। बीस रुपए जार में डालिए, भीतर चले जाइए।

बगल में तीन सौ में स्टार बग्स की कॉफी पीजिए फिर बीस रुपए में हल्का हो लीजिए।

मैंने तीस साल पहले कहा था कि जिसने भी पानी में दुकानी ढूंढी है, वो कमाल का धंधेबाज है। और अब मैं कह रहा हूं कि जिसने शौचायल को शो रूम बनाया है, उसके तो हाथ चूम लूं। कहां से आइडिया आता है व्यापार का?

ये मेरी भविष्यवाणी है कि एक दिन हर मॉल में ऐसे शौचालय होंगे। क्योंकि सरकार जगह-जगह शौचालय सुविधा मुहैया कराने में नाकाम रही है, सडक़ पर उतरने पर रोक लगा दी गई है तो ये खुशबूदार व्यापार चल निकलेगा। आज बीस रुपए हैं। कल सौ भी आप देंगे। जाएंगे कहां? मॉल में आ गई तो भागेंगे कहां?

व्यापार का एक नियम होता है, दूसरे से अच्छा।

मेरा पानी सरकारी पानी से अच्छा। मेरा स्कूल सरकारी स्कूल से अच्छा। मेरा अस्पताल सरकारी अस्पताल से अच्छा। सरकार हवा पर कंट्रोल नहीं कर पाई है तो नाक में एयर प्युरिफायर लगा लो।

और अब मेरा शौचालय सरकारी शौचालय से अच्छा।

आदमी खाना छोड़ सकता है, शौचालय जाना नहीं। जाना ही है। निर्लज्ज लोग तो कहीं चले जाएंगे, पर लज्जायुक्त लोग, साफ-सफाई पसंद लोग कहां जाएंगे? खाएंगे फाइव स्टार में तो जाएंगे सुलभ में?

ये व्यापार है। शानदार सोच के साथ शानदार व्यापार।

अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड अभी हमारे देश से बहुत पीछे है। वहां के लोग नल का पानी पीते है। हर सडक़, दुकान, पेट्रोल पंप पर मौजूद शौचालय को फ्री रखे हुए हैं। मूर्ख साफ-सफाई भी रखते हैं। एयर प्युरिफायर बेचते ही नहीं। कहते हैं हवा साफ है। अस्पताल में प्राइवेट का चक्कर नहीं। इंग्लैंड में तो सरकारी, प्राइवेट सब जगह इलाज ही मुफ्त है। पगले लोग। धंधा ही नहीं आता है।

और स्कूल? अमेरिका में सरकारी स्कूल ही इतने अच्छे हैं कि सारे बच्चे मुफ्त स्कूल हो आते हैं। किताबें भी स्कूल वाले देते हैं। यूनीफार्म का चक्कर ही नहीं। बस फ्री। सब फ्री करेंगे तो फिर धंधा कैसे चलेगा?

भारत एमबीए वालों का देश है। आइए मॉल में बीस रुपए में आनंद प्राप्त कीजिए. फाइव स्टार शौचालय का।

अभी इंट्रोडक्टरी प्राइस है। आगे की आगे देखेंगे। पर संजय सिन्हा की भविष्यवाणी याद रखिएगा- ये भविष्य का बिजनेस है। एक बार लगाइए, ताउम्र खाइए। मुमकिन है आने वाले दिनों में रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, अस्पताल, स्कूल हर जगह ये सुविधा (शुल्क) लागू हो जाए। एक बार चीजों को ठीक से प्राइवेट होने दीजिए, फिर चाहे हर कार्य की फीस देनी हो होगी।

बोलू्ंगा तो कहेंगे कि बोलता हूं पर हवाई जहाज में टिकट लेने के बाद भी सीट लेने के पैसे देने लगे हैं न? दीजिए। दीजिए। हमारा आपका जन्म देने के लिए ही हुआ है। लेने वाले नहीं लजाएंगे, देने वाले लजा कर चुप रह जाएंगे। और हां, हवा,पानी बेचने का धंधा इस सरकार में नहीं हुआ है इसलिए मुझे ये कह कर ठोकने मत चले आइएगा कि मैं आज की बुराई ले आया हूं। ये सब बहुत दिनों से चल रहा है। आप चाहें तो पुराने वाले को ठोक सकते हैं। फिलहाल तो तैयार रहिए….

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Mazdoor Morcha
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