न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक पूंजीवाद कृषि ‘सुधारों’ के नाम पर अमेरिकी तर्ज पर किसानों को ज़मीन से बेदखल करके उनकी ज़मीनों को पूंजीपतियों के हवाले कराने का इच्छुक रहा है। कृषि का मशीनीकरण करके तमाम किसानों को खेती-बाड़ी से फारिग कर शहरी मज़दूर बनाना चाहता है जिससे बेरोजगारी बढेगी और औद्योगिक मज़दूर सस्ते मिलेंगे। भारत में जहां 70 प्रतिशत लोग खेती करते हैं वही अमेरिका में मात्र तीन प्रतिशत लोग ही इस पर निर्भर हैं।
यद्यपि यह काम कांग्रेस के एजेंडे पर भी था लेकिन उनकी कमज़ोर क्रियान्व्यन स्थिति को भांपते हुए भारतीय एवं वैश्विक पूंजीपति वर्ग ने कांग्रेस की जगह किसी ऐसी पार्टी एवं नेता को आगे लाने की योजना बनाई जो इस ‘सुधार’ कार्य को पूरा कर सके। संघ द्वारा पोषित भाजपा और उसमें मोदी को सबसे फिट समझा गया। संघ एवं भाजपा के पास दो सबसे बड़े हथियार के रूप में थे, धर्म की अफीम और प्रचार द्वारा जनता को भ्रमित करने का नायाब नुस्खा। पूरे पांच साल हिंदुत्व की अफीम खिला व राष्ट्रवाद की घुट्टी पिला कर मोदी पूरी तरह से आश्वस्त हो गये थे कि अब उनके द्वारा लाये जाने वाले कृषि कानूनों के विरुद्ध कोई आवाज़ उठाने वाला नहीं होगा, परंतु किसानों ने उन्हें न केवल पूरी तरह से गलत साबित कर दिया बल्कि उनकी कुर्सी तक पर संकट छा गया।
किसान आन्दोलन का चुनावी लाभ उठाने के लिये तो सभी दल तरह-तरह की लफ्फाजी कर रहे हैं, लेकिन एमएसपी की गारंटी वाला कानून बना कर देने का वायदा कोई पार्टी नहीं कर रही। दरअसल इस तरह का कानून बनाने का बायदा करके कोई भी पार्टी पूंजीवादियों खास कर वैश्विक पूंजीवाद यानी अमेरिका से सीधी दुश्मनी नहीं ले सकती।