डेनमार्क से मिली 12 करोड़ की भीख से बना कोविड वार्ड रामभरोसे फरीदाबाद (म.मो.) कोरोना की दूसरी लहर की बेकाबू हो जाने के चलते जब मरने वालों की संख्या गिनना तक सरकार के लिये भारी हो गया था तो महान भारत देश के महान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी दुनिया के सामने हाथ पसारा। जवाब में अन्य देशों के अलावा यूरोप के एक छोटे से देश डेनमार्क ने इस भीख के कटोरे में 12 करोड़ तो नकद व कुछ अन्य जरूरी साजो-सामान भी दिया।
इन्हीं 12 करोड़ में से 4 करोड़ रुपये फरीदाबाद के हिस्से में आ गये। इसी रकम से बीके अस्पताल परिसर में 102 मरीज़ों के लिये अस्थायी वार्ड का निर्माण कराया गया। यह सारा निर्माण कार्य इस्पात का होने के चलते टाटा कम्पनी से करवाया गया। झोंपड़ीनूमा कक्षों के अलावा सडक़, बिजली, पानी, सीवरेज़ इत्यादि के काम पर करीब डेढ करोड़ रुपया अलग से खर्च किया गया है। बेशक अस्पताल प्रशासन अपने इस निर्माण कार्य को बेहतरीन बता रहा है, लेकिन धरातल की सच्चाई को समझें तो आने वाले समय में, खास कर बरसात के मौसम में सडक़ों की स्थिति अच्छी रहने वाली नहीं दिखती।
डेनमार्क से मिली भीख से निर्माण कार्य तो जैसे-तैसे करा लिया गया। अब सवाल यह पैदा होता है कि मरीज़ों के इलाज के लिये क्या यह निर्माण कार्य ही पर्याप्त रहेगा? क्या इन 102 बिस्तरों पर आने वाले मरीज़ों के लिये डॉक्टरों व अन्य स्टाफ और आवश्यक साजो-सामान की आवश्यकता नहीं पड़ेगी? शायद खट्टर सरकार ऐसा ही सोच रही है। इसी लिये खबर लिखे जाने तक इस वार्ड के लिये न तो किसी कर्मचारी की नियुक्ति की गई है और न ही कोई साजो-सामान खरीदा गया है। हो सकता है कि इसके लिये भी सरकार फिर से भीख का कटोरा लेकर घूमे। सम्भव है कि खट्टर साहव सोच रहें हों कि कोरोना वार्ड तो बना ही दिया है आने वाले मरीज़ों को बगल के ईएसआई अस्पताल की ओर धकेल देंगे। ऐसे में नये स्टाफ आदि पर खर्चा करने की क्या जरूरत है? वैसे खर्चा करने के लिये खट्टर सरकार के पास पैसे बचे ही कहां है? मोठूका गांव स्थित अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज के लिये भर्ती की गई 106 नर्सों को बीते चार-पांच माह से वेतन ही नहीं मिला है। उस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कुछ भी करने लायक न होने की स्थिति में ये तमाम नर्सें बीके अस्पताल में तैनात कर दी गईं हैं।
हरियाणा से भी छोटा है डेनमार्क मात्र 58 लाख की आबादी वाला यह छोटा सा देश है। इसके मुकाबले हरियाणा की आबादी करीब सवा दो करोड़ है। भारत की आबादी, रुतबा व बड़ी-बड़ी डींगों के साथ-साथ मोदी के जलवों की तो बात ही क्या है। पूरी दुनियां में घूम-घूम कर देश का डंका बजा कर सम्मान बढ़ाने वाले मोदी जी से कोई यह पूछे कि इस तरह से भीख मांगते हुए उन्हें कोई शर्म नहीं आई?
हवाखोरी के लिये साढे आठ हजार करोड़ का हवाई जहाज व 12 करोड़ की नई कार खरीदने वाला यह कैसा फकीर है जो महामारी से देश की मरती हुई जनता के लिये दुनियां भर में हाथ पसारे फिरता हो? विदित है कि कोरोना के नाम पर इस ‘फकीरचंद’ ने एक विशेष (पीएम) राहतकोष स्थापित करके देश भर के सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों से तो खरबों रुपये वसूले ही साथ में देश भर के सरकारी कर्र्मचारियों से भी भारी-भरकम जबरन वसूली कर ली। लेकिन उसका हिसाब देने को तैयार नहीं।