फरीदाबाद (म.मो.) दिनांक 21 सितम्बर को खोरी गांव से उजाड़े गए सैंकड़ों गरीब मज़दूरों ने बीके चौक स्थित नगर निगम कार्यालय पर घंटों तक धरना देकर प्रदर्शन किया। प्रर्दशनकारी महिलाओं ने ह्दय विदारक विलाप करते हुए मज़दूर मोर्चा के कैमरे पर कहा कि उनकी पूरी जिंदगी की कमाई को लूटने व तहस-नहस करने के बाद आज सरकार उनसे खंडहरनुमा फ्लैट देने के एवज में मोटा पैसा मांग रही है।
विदित है कि उजाड़े गये गरीब मज़दूर ने अपनी उम्र भर की कमाई वहां प्लॉट खरीदने व मकान बनाने में लगा दी। बीते करीब डेढ दो साल से कोरोना के चलते बेरोजगारी बढऩे से वे पहले ही भुखमरी के कगार पर आ चुके थे। इस पर सितम यह कि जो कुछ उनके पल्ले था सब कुछ सरकार ने बर्बाद कर दिया। नौबत यह है कि आज ये लोग, कहीं बसने की जगह न पाकर अपने टूटे घरोंदों के मलबे पर, छोटे-छोटे बच्चों को लेकर बैठे हैं। गर्मी, सर्दी, बरसात सब कुछ इनके सिर पर से गुजर रही है। इसके अलावा आवारा जानवरों व असामाजिक तत्वों का खतरा इनके सिर पर हमेशा मंडराता रहता है।
इस स्थिति में लोग अपने ठिकाने छोड़कर कहीं काम की तलाश में भी नहीं जा सकते। समझा जा सकता है कि ऐसे में ये क्या खा-पी कर, कब तक जिंदा रह पायेंगे। कल्याणकारी राज्य होने का सरकारी दावा कितना खोखला है, इसे भाजपा सरकार ने बखूबी सिद्ध कर दिया है। शासन-प्रशासन को जो जंगल संरक्षण कानून, सुप्रीम कोर्ट द्वारा आज दिखाया जा रहा है, वह 30 साल पहले कहां था, जब भूमाफिया व जंगलात के कर्मचारी लोगों को यहां पैसा लेकर बसा रहे थे?
सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारी निगम कार्यालय के बाहर अपना ह्दय विदारक विलाप करते रहे परन्तु कोई भी निगम अधिकारी इनका ज्ञापन लेने तक बाहर नहीें आया।
जाहिर है कि बेदर्द शासन-प्रशासन इस तरह के प्रदर्शनों की कोई परवाह नहीं करता। भाजपा के शासन काल में यह तथ्य कई बार सिद्ध हो चुका है कि वह किसी प्रकार के जनआन्दोलन की कोई परवाह नहीं करती। वे समझते हैं कि प्रदर्शनकारी थक-हार कर अपने आप दफा हो जाएंगे।