फरीदाबाद (म.मो.) चार बूंद पानी की बरसी नहीं कि शहर में सैलाब आ जाता है। रेलवे अंडरपास डूब जाते हैं। सडक़ो पर ट्राफिक जाम हो जाता है। ऐसे में बरसात जैसा कुदरत का अनमोल तोहफा अभिशाप नज़र आने लगता है। इसके लिये बरसात नही बल्कि मूर्ख, लालची व भ्रष्ट योजनाकार एवं शासन-प्रशासन जिम्मेवार हैं। इनकी नालायकी एवं आपा-धापी के चलते विकास का जो मॉडल बनाया गया है, वह जिम्मेवार है।
पानी अपना रास्ता सदैव खुद बनाता आया है, लेकिन जब विकास के नाम पर उसका रास्ता रोक दिया गया तो जल भराव की स्थिति बन खड़ी हुई। इसी शहर में 150 से ऊपर छोटे-बड़े तालाब होते थे जिनमें बरसाती पानी बहकर जमा हो जाता था। इसके चलते भू-जल स्तर भी बना रहता था। परन्तु लालच एवं भ्रष्टाचार ने पहले तो इन तालाबों को सीवर तथा मलबे से भर कर सड़ाया और फिर बेच खाया। ऐसे में बरसाती पानी जाये तो जाये कहां? इसकी निकासी के लिये करोड़ों रुपये खर्च करके जो भूमिगत नाले बनाये गये थे वे केवल कागजों तक ही सीमित रह गये।
अब भी यदि अक्ल से दुश्मनी न हो और ईमानदारी से काम करने की नीयत हो तो इस समस्या से निपटा जा सकता है। उदाहरण के लिये सेक्टर 14 में मार्केट के सामने वाली, करीब आधा किलो मीटर लम्बी सडक़ पर जरा सी बारिश में सवा फुट तक पानी खड़ा हो जाता है। करीब दस साल पूर्व जब इस सडक़ को सीमेंट कंक्रीट का बनाया गया तो यह साथ लगते पार्क से करीब डेढ़ फुट ऊंची हो गई। इसके परिणामस्वरूप बरसात का सारा पानी बहकर पार्क में भरने लगा और सडक़ पर एक बूंद पानी न रहता। एक-दो दिन में पार्क का सारा पानी ज़मीन में उतर जाता।
इसे और जल्दी ज़मीन में उतारने के लिये दो रेन हार्वेस्टर सिस्टम भी लगाये गये थे। जिनमें आज तक एक बूंद पानी की नहीं उतर सकी है और न ही कभी उतरेगी क्योंकि वे बनाये ही केवल बिल पास करके कमीशन खाने के लिये थे। पार्क में दूसरी समस्या सड़े हुए सीवेज़ से होने लगी। पार्क में बरसाती पानी तो ठीक परन्तु उसके साथ बहकर आने वाला सीवेज़ बुरी तरह से सडऩे लगा। सीवर लाइन चलाना तो निगम के बस का है नहीं लिहाजा पार्क में 60 लाख रुपये की मिट्टी भरा कर समस्या का समाधान कर दिया गया। परिणामस्वरूप अब फिर से इस सडक़ पर एक से सवा फुट तक पानी खड़ा हो जाना आम बात हो गई है।
अब करने वाला काम जो इस शासन-प्रशासन के बस का नहीं है, एक तो सीवर लाइनों को सुचारु करे जो ये कभी कर नहीं सकते। यदि इसे सुचारु कर लें तो सेक्टरों के तमाम पार्कों को सडक़ से नीचा करके सारा बरसाती पानी उनमें लिया जाय और सही ढंग के रेन हार्वेस्टर लगाये जायें। वैसे खट्टर महोदय ने करीब तीन साल पहले इस शहर में 1000 रेन हार्वेस्टर लगाने की बात कहीं थी, लेकिन आज तक उनमें से कोई एक भी कहीं लगा हो, देखा-सुना नहीं गया।