जब मुख्यमंत्री होते हुए प्रताप सिंह कैरों बिना निमंत्रण शादी में पहुंच गए थे चौधरी देवीलाल के घर

जब मुख्यमंत्री होते हुए प्रताप सिंह कैरों बिना निमंत्रण शादी में पहुंच गए थे चौधरी देवीलाल के घर
March 20 00:28 2023

पवन बंसल
आज राजनीति के मायने बदल गए हैं। आज से 30 साल पहले राजनीति समाज सेवा का दूसरा रूप था। चुनावी राजनीति में आने वाले लोग एक जज्बे के तहत घर से पैसे खर्च करके भी लोगों की सेवा करते थे। आज ऐसा देखने को नहीं मिलता ।बहुत लोगों ने राजनीति को एक प्रोजेक्ट बना लिया है।

ऐसे ही राजनीतिक लोग सामाजिक मूल्यों और संबंधों को नजरअंदाज कर केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से या इसी मकसद से व्यवहार करने लगे हैं तो समाज में उसकी चर्चा जरूर होती है। आज जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक संबंधों को सामाजिक संबंधों पर हावी न होने दिया जाए। कोई किसी दल में है कोई किसी दल में, परंतु आपस में दिल में जरूर होना चाहिए विवाह शादी दुख सुख में जाने आने जाने की जरूरत और परंपरा को और मजबूत किया जाना चाहिए। उधार के रिश्ते सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को मजबूत नहीं कर सकते।

यद्यपि पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के पौत्र दिग्विजय सिंह चौटाला की शादी की रस्म अभी बाकी है लेकिन इसके लिए सार्वजनिक भोज 10 मार्च को सिरसा में आयोजित किया जा चुका है जिसमें जिसमें दादा ओम प्रकाश चौटाला चाचा अभय सिंह चौटाला शामिल नहीं थे। यद्यपि इससे पहले अभय सिंह के पुत्रों की के विवाह समारोह में अजय सिंह का परिवार शामिल नहीं हुआ था परंतु ऐसा हरियाणा के उन लोगों को अच्छा नहीं लगा जो इस परिवार के प्रति सहानुभूति और लगाव रखते हैं। जब परिवार दुख में एक हो सकता है तो सुख में भी होना चाहिए क्योंकि चौधरी ओम प्रकाश चौटाला की पत्नी स्नेह लता के निधन के समय भी तो सारा परिवार एक हुआ था।

बच्चों के विवाह जैसे अवसर पर परिजनों को आमंत्रित करना औपचारिकता तक सीमित नहीं होना चाहिए इसे और गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
इस मामले में पाठकों को एक घटना के बारे में बताया जा सकता है। स्वर्गीय चौधरी देवी लाल ने अपने दो पुत्रों ओम प्रकाश चौटाला और प्रताप सिंह चौटाला की एक ही गांव पंचकोशी में एक ही घर में शादी की थी। पंचकोशी पंजाब में कांग्रेस के बड़े नेता बलराम जाखड़ का गांव है। यह रिश्ता श्री जाखड़ के परिवार में ही हुआ था। यह बात 1950-60 के दशक की उस समय की है जब स्वर्गीय प्रताप सिंह कैरों पंजाब के मुख्यमंत्री हुआ करते थे ।चौधरी देवीलाल के श्री कैरों से संबंध बनते बिगड़ते रहते थे। इस शादी में चौधरी देवीलाल ने मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों को निमंत्रण नहीं भेजा। मुख्यमंत्री होते हुए भी सरदार प्रताप सिंह कैरों ने एक ऐसा फैसला लिया जिसकी आज भी हरियाणा और पंजाब के बड़े बुजुर्ग बड़े सम्मान और अदब से चर्चा करते हैं। सरदार प्रताप सिंह कैरों चौधरी देवी लाल द्वारा नहीं बुलाए जाने के बावजूद शादी में पहुंच गए और उन्होंने शादी में शामिल सभी लोगों के सामने चौधरी देवीलाल को कहा कि आपने बेशक मुझे नहीं बुलाया लेकिन यह बच्चे मेरे भी बच्चे हैं इनकी खुशी के अवसर पर हाजिर होने से मैं खुद को नहीं रोक पाया। इस पर चौधरी देवी लाल को यह कहने को मजबूर होना पड़ा कि सरदार जी आपने बहुत अच्छा किया।

यदि आज भी कोई व्यक्ति स्वर्गीय प्रताप सिंह कैरों के इस कदम का अनुसरण करें तो उसे निश्चित तौर पर समाज की वाहि वाहि प्राप्त होगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।
वर्ष 2000 से पहले दीपेंद्र हुड्डा का पहला विवाह हुआ तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा विधायक होते थे। सरकार थी ओम प्रकाश चौटाला की। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सभी 90 विधायकों को शादी का निमंत्रण भेजा। मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को भी। परंतु उस शादी में चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के परिवार का कोई सदस्य नहीं पहुंचा। बताते हैं कि प्रतिनिधि के रूप में संपत सिंह को भेजा गया था। उस समय श्री चौटाला के इस कदम को लोगों ने सही नहीं माना था। लोग तो यह चाहते थे कि ओम प्रकाश चौटाला इस विवाह में खुद शामिल होते?

हर वर्ष की तरह पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने नई दिल्ली में एक भोज का आयोजन किया जिसमें भारतीय जनता पार्टी के कई सांसद और नेता शामिल हुए। कुछ लोगों ने इसे राजनीतिक चश्मे से देखा होगा लेकिन इसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए क्योंकि आपको कोई व्यक्ति आमंत्रित करता है तो संबंधों के मद्देनजर ही करता है यदि आप संबंध और उसके महत्व को अहमियत देते हैं तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

इस कार्यक्रम में शामिल हुए सोनीपत के भाजपा के सांसद रमेश चंद्र कौशिक से एक सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि ऐसा किया जाना आवश्यक है। हमें याद रखना चाहिए कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के भतीजे के विवाह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे। सामाजिक संबंधों को प्राथमिकता दिए बिना हम एक नहीं हो सकते ऐसा किया जाना भविष्य में भी जरूरी है।

सोनीपत जिले के लोग जानते हैं कि इस क्षेत्र के दो पुराने बड़े नेता पूर्व मंत्री स्वर्गीय चौधरी लहरी सिंह और पूर्व सांसद पंडित चिरंजी लाल शर्मा गन्नौर से आमने-सामने चुनाव लड़ते थे। हार जीत होती रहती थी लेकिन दोनों आपस में एक दूसरे के घर जाते थे दुख सुख में एक दूसरे का साथ देते थे।

1952 और 1957 में इन दोनों ने आमने सामने एक ही हल्के से चुनाव लड़ा और चौधरी लहरी सिंह दोनों बार चुनाव जीत गए। 1962 के चुनाव में जब सोनीपत जिला रोहतक लोकसभा का हिस्सा होता था चौधरी लहरी सिंह ने जनसंघ के टिकट पर रोहतक से लोकसभा का चुनाव लड़ा था तब पंडित चिरंजी लाल शर्मा गनौर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में आ गए। वे यह चुनाव जीते और पहली बार पंजाब विधानसभा पहुंचे थे। बताते हैं कि आपस में परस्पर प्रतिद्वंदी होते हुए भी चौधरी लहरी सिंह ने पंडित चिरंजी लाल शर्मा की उस चुनाव में मदद की थी। सोनीपत के लोगों को ध्यान है कि एक बार चौधरी देवीलाल का जन्मदिन सोनीपत में मनाया जा रहा था तो कांग्रेस में होते हुए भी पंडित चिरंजी लाल शर्मा स्टेज पर चले गए थे। उन्होंने कहा था कि चौधरी देवीलाल से उनके पारिवारिक संबंध हैं। दोनों 1962 में पंजाब विधानसभा के सदस्य थे दोनों निर्दलीय जीत कर गए थे।

हरियाणा के देहात के लोग इन चीजों को बहुत संवेदनशील तरीके से देखते और महसूस करते हैं। ऐसी घटनाओं की चर्चा होना स्वाभाविक है। इसलिए राजनीतिक लोगों को अपने सामाजिक संबंधों को सींचते रहना चाहिए।

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