फरीदाबाद (म.मो.) हरियाणा फार्मेसी काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष केसी गोयल व सदस्यों अरुण पाराशर तथा बीबी सिंघल ने काउंसिल के मौजूदा अध्यक्ष धनेश अदलक्खा के विरुद्ध बड़ी प्रशासनिक अनियमिताओं के आरोपों के साथ साथ पांच करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया है। इन्हीं आरोपों की ताईद काउंसिंल के रजिस्ट्रार द्वारा किये जाने के बाद मजबूरन सीएम खट्टर को आईएएस अधिकारी प्रभजोत सिंह द्वारा जांच करानी पड़ी। करीब ढाई माह जांच करने के बाद आईएएस अधिकारी ने प्रशासनिक अनियमितताओं के आरोपों को तो सही पाया लेकिन पांच करोड़ के घोटाले बाबत कोई सबूत नहीं मिले। वैसे भी रिश्वतखोरी की रसीद न कोई लेता है न देता है, इसलिये सबूत काहे को मिलने थे।
काउंसिल की लूट कमाई को समझने के लिए इसके धंधे को समझना जरूरी है। इसका धंधा है फार्मासिस्ट का कोर्स पूरा कर लेने वालों का रजिस्ट्रेशन करना। यह रजिस्ट्रेशन हर पांच साल बाद रिन्यू भी कराना पड़ता है। रजिस्ट्रेशन एवं रिन्यूअल की सरकारी फीस तो नाममात्र की होती है लेकिन मोटी रिश्वत के बगैर इस काम का हो पाना बहुत कठिन है। इसके लिये बहाना यह होता है कि हर साल लाखों केस काउंसिल के पास आते हैं। ऐसे में अपना काम जल्द कराने के एवज में रिश्वत देना जरूरी है।
इस धंधे में मोटी रिश्वत दूसरे राज्यों से आने वालों से वसूली जाती है। मान लो किसी ने यूपी या बिहार से डिप्लोमा करके वहां अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया, लेकिन काम के लिए उन्हें हरियाणा में आना पड़े तो यहां फिर से रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा। ऐसे लोगों से मोटी वसूली, लाख तक भी हो जाती है।
इसके अलावा ऐसे अनेकों फार्मासिस्ट हैं जिनके पास कोई डिप्लोमा ही नहीं है, वे केवल अनुभव के आधार पर ही बतौर फार्मासिस्ट रजिस्टर्ड हैं, इनकी रिन्यूअल से भी मोटी लूट कमाई होती है। जानकार बताते हैं कि पहले फार्मासिस्ट की पढ़ाई के लिए कॉलेज नाममात्र के होते थे इसलिये तजुर्बे के आधार पर ही उन्हें लाइसेंस दे दिया जाता था। यह प्रथा 1970 तक चालू रही है। उसके बाद से डिप्लोमा आवश्यक बना दिया गया। इसके अलावा पहले प्रत्येक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट से मात्र दस रुपए वार्षिक लिये जाते थे जो अब बढ़ाकर 375 रुपए कर दिये गये हैं। जाहिर है इससे काउंसिल के पास अरबों रुपए का कोष एकत्रित हो गया है।
गौरतलब है कि यह वार्षिक उगाही तथा रिन्यूअल फीस प्रत्येक फार्मासिस्ट को देनी पड़ती है चाहे वह निजी दुकान चलाता हो या सरकारी नौकरी में हो। बार-बार की इस रजिस्ट्रेशन तथा रिन्यूअल का मतलब लूट कमाई के अलावा और कुछ भी नहीं है। शासक वर्ग द्वारा अपने चहेतों एवं पिट्ठुओ को आजाद एवं जनता को बर्बाद करने के लिये इस तरह के नियम और कानून बनाये जाते हैं। फार्मासिस्टों का कहना है कि इस तरह की लूट केवल उनकी काउंसिल द्वारा ही की जाती है जबकि डॉक्टरों तथा वकीलों की काउंसिल में ऐसी लूट नहीं होती।
काउंसिल की नियमावली के अनुसार रजिस्ट्रेशन का काम करने के लिए सरकार द्वारा एक अधिकारी बतौर रजिस्ट्रार नियुक्त किया जाता है। उसके काम में चेयरमैन का कोई दखल नहीं होता। लेकिन खट्टर सरकार द्वारा संरक्षित धनेश अदलक्खा रजिस्ट्रार के काम-काज में अपनी पूरी दादागिरी चलाते हैं। काउंसिल के खाते में पड़े अरबों रुपए को वे अपनी निजी सम्पत्ति मान कर चल रहे हैं।
रजिस्टे्रशन एवं रिन्यूअल में रिश्वतखोरी को रोकने के लिए जांच अधिकारी ने सुझाव दिया है कि हरियाणा वालों का काम एक माह में तथा दूसरे राज्यों से आने वालों का काम तीन माह में सम्पन्न होना चाहिए। सवाल यह पैदा होता है कि क्यों तो एक माह में और क्यों तीन माह में, एक या दो सप्ताह में क्यों नहीं? आज तो डिजिटल ऑनलाइन का जमाना है।
अपने क्षेत्र यानी फरीदाबाद में अपनी चौधर दिखाने के लिए स्थानीय लोगों के प्रमाण पत्र आदि धनेश दस्ती तौर पर अपने साथ ले जाते हैं और फिर उन लोगों को अपने घर पर बुलाकर चक्कर कटाते हैं। ऐसा करके धनेश बेशक अपनी ओर से उन पर एहसान जताने का प्रयास करते हैं लेकिन लोग उल्टे उन्हें कोसते हुए जाते हैं। जाहिर है जो कागज डाकिया लोगों के घर पर देकर जाता है, उसे लेने के लिए उन्हें किसी के चक्कर काटने पड़े तो तकलीफ तो होगी ही।